प्रतिस्थापन
प्रतिस्थापन


वो बृहस्पति वार था… और होली का दिन!
होश में आते ही मैंने आस-पास नज़र दौड़ाई, वो शायद पीo जीo आईo अस्पताल का ही कोई वार्ड था। मेरे सिर में बहुत दर्द था, हाथ लगा कर देखा तो पट्टी बंधी हुई थी। पूरा जिस्म भी बुरी तरह से दुःख रहा था। एक जुनियर डॉक्टर मुझे होश में आते देख फ़ौरन मेरी तरफ़ लपका…
"कैसा महसूस हो रहा है अब?" वह मुस्कुरा कर बोला।
मैंने अनसुना करते हुए कहा, "मेरे साथ जो तीन लोग और थे वे कहाँ हैं?"
"जो तुम्हारे साथ बाक़ी दो को यहाँ लाया था, उसको मामूली चोट आई थी, फ़र्स्ट-ऐड के बाद अब ठीक है और वार्ड के बाहर बैठा हुआ है।"
मैं तुरंत समझ गया, वो अनिरुद्ध की बात कर रहा था, जो एक्सीडेंट से पहले गाड़ी में मेरे साथ पीछे बैठा हुआ था। फिर हम दोनों ने मिल कर एक गाडी रुकवाई थी, अपनी गाड़ी की ड्राइविंग सीट पर बेहोश पड़े बलजीत, और उसके बराबर वाली सीट से बहते हुए ख़ून से लथपथ इन्दर को निकाल कर दूसरी गाड़ी में डाला था और किसी तरह पीo जीo आईo ले आए थे...
"तो बलजीत और इन्दर कहाँ हैं?” मैंने स्पष्ट किया, “मतलब, वो दो लोग जिनको हम यहाँ लाए थे।"
"जो एक्सीडेंट के वक़्त गाड़ी चला रहा था, उसकी बायीं टांग की एक हड्डी टूट गई है; कुछ और चोटें भी आई हैं! अभी माइनर ओo टीo में है, प्लास्टर वगैरह के लिए..." डॉक्टर ने बताया।
"और दूसरा… इन्दर! वह कहाँ है?"
इससे पहले कि वह कुछ बोलता, एक कांस्टेबल और अनिरुद्ध के साथ एक सब-इंस्पेक्टर ने अंदर प्रवेश किया और मेरी तरफ़ देख कर डॉक्टर से बोला, "होश आ गया है, इसका भी ब्यान ले लेते हैं!"
डॉक्टर ने सहमति में सिर्फ़ सिर हिला दिया...
इंस्पेक्टर ने मुझे बोलने का इशारा किया, कांस्टेबल हाथ में पकड़े गत्ते के ऊपर लगे कागज़ पर कलम घिसने के लिए तैयार हो गया।
दिमाग पर थोड़ा ज़ोर डाला तो मुझे सारा कुछ तरतीब से याद आने लगा -
"हम चार दोस्त चंडीगढ़ के डीo ऐo वीo कॉलेज में एक साथ पढ़ते हैं। सेक्टर ४४ बी में मेरे घर के पास एक पार्क में होली खेलने का इंतज़ाम किया था सेक्टर वालों ने इस बार। हम चारों का भी वहीं होली मनाने का प्लान बना। अनिरुद्ध नज़दीक ही सेक्टर ३३ डी में रहता है, जहाँ से वह अपनी बाइक पर आ गया। बलजीत सेक्टर २१ ऐ में स्थित अपने घर से पंचकुला में रहते इन्दर को अपनी गाड़ी पर लेकर आ गया था। फिर हमने मिल कर ख़ूब धमाल मचाया, जम कर रंगों से खेले और खाया-पीया..."
सब मेरी बात ध्यान से सुन रहे थे!
"जब घर लौटने का समय हुआ तो इन्दर बोला, 'यार, बलजीत वैसे भी मुझे पंचकुला तक छोड़ने आ ही रहा है, क्यों ना थोड़ा आगे जा कर मीट का आचार खा कर आएं?'
बात शिमला के रास्ते में परवाणू की हो रही थी, जहाँ का मीट-मुर्गे का आचार बहुत मशहूर है; और हम सब ठहरे नॉन-वेज के श
ौक़ीन! ४0 किलोमीटर की ही बात थी, सबने फ़टाफ़ट हाँ कर दी...
चारो बलजीत की गाड़ी में - मैं आगे उसके साथ वाली सीट पर और इन्दर पीछे अनिरुद्ध के साथ - बैठे और चल दिए।
रास्ते में एक वाइन शॉप के पास अनिरुद्ध शरारत से बोला, ‘यारो, एक-एक बियर हो जाए?’
हम में से कोई भी शराब-सिगरेट को हाथ तक नहीं लगाता… इसलिए बात को मज़ाक में टाल दिया गया तो मेरे साथ बैठा बलजीत हंसते हुए बोला, ‘सुना है बियर शराब नहीं होती, भाई लोगो!’
बातों-बातों में पिंजौर से थोड़ा आगे निकल कर इन्दर बोला, ‘कम से कम चाय ही पिला दो भाई!’
सब की सहमति पर बलजीत ने आगे सड़क के किनारे बने एक छोटे से ढाबे के पास गाड़ी रोकी, सब नीचे उतरे। अनिरुद्ध ने ऑर्डर दिया, ‘उस्ताद चार कड़क चाय, अदरक डाल कर!’
दुकान वाला हम रंगे-सियारों की टोली को देख कर मुस्कुराया और चाय बनाने लगा।”
"फिर?" इंस्पेक्टर ने मुझे चुप होता पाकर पूछा...
"चाय पी कर हम गाड़ी में बैठने लगे तो इन्दर मुझसे बोला, ‘पहाड़ी रास्ता शुरू हो रहा है, पीछे बैठ कर ठीक से दिखता नहीं, तू अब पीछे मेरी सीट पर बैठ, मैं आगे बैठूंगा!’
मैं कुछ कह पाता इससे पहले ही वो आगे बलजीत के साथ बैठ चुका था। मैं चुपचाप अनिरुद्ध के साथ पीछे जा बैठा, और बलजीत ने गाड़ी परवाणू की तरफ़ बढ़ा दी...
चारो हंसी-मज़ाक करते आगे जा रहे थे कि तभी इन्दर चिल्लाया, ‘अरे बलजीत, संभाल!!’
सामने से एक छोटी लारी तेज़ी से हमारी ओर बढ़ी आ रही थी, ढलान पर शायद ड्राइवर गाड़ी को नियंत्रित नहीं कर पा रहा था। देखते ही देखते वो गाड़ी सड़क की दूसरी तरफ़ पहुँच कर ठीक हमारे सामने आ गई। बलजीत ने बचने के लिए अपनी गाड़ी को पूरा दायीं तरफ़ काट दिया...
धड़ाम से एक बहुत ज़ोर की आवाज़ हुई! हमारी गाड़ी की बायीं साइड उस गाड़ी से टकरा गई थी!"
मैं ख़ामोश हो गया।
इंस्पेक्टर ने पास खड़े अनिरुद्ध और मुझे देखते हुए कहा, "तुम दोनों ने बड़ी हिम्मत दिखाई लड़को, ख़ुद ज़ख़्मी थे मगर फिर भी किसी तरह अपने दोस्तों को यहाँ तक ले आए।” थोड़ा रुक कर वो आगे बोला, "और हाँ, हमने उस लारी के ड्राइवर और क्लीनर को गिरिफ़्तार कर लिया है... दोनों ने शराब पी रखी थी; साले कहते हैं कसौली में अनलोड करने के बाद होली मना कर वापिस लुधिआना जा रहे थे।"
"इन्दर कहाँ है, सर?" मैं बेसब्री से बोला।
मुझे उसकी बहुत फ़िक़्र होने लगी थी, "ठीक तो है ना वो?"
जवाब डॉक्टर ने दिया, "मुझे अफ़्सोस है, हम उसको बचा नहीं पाए…"
न मेरी आँखों से आँसू निकले, और ना मुंह से कोई बोल।
हैरान-परेशान, मैं ख़ुद को इन्दर की जगह बैठा सोचकर सिर्फ़ यह समझ पाने की कोशिश कर रहा था कि कैसे कोई किसी और के हिस्से की मौत को यूँ अपना सकता है?!
***
एक सत्य घटना पर आधारित...