Sandeep Sharma

Fantasy

4  

Sandeep Sharma

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पृथ्वी की सैर

पृथ्वी की सैर

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    द्वार खुला देख वो बाहर निकल आया। नीचे झांक कर देखा तो वह अपने आप को रोक नहीं पाया। धरती पर उतरते ही उसने सबसे पहले पृथ्वी की मिट्टी को अपने माथे पर लगाया और दण्डवत धरती को प्रणाम किया। गहरी सांस लेकर उसने चारों तरफ देखा। हालात को देखकर उसकी आँखें छलक आईं। उसे अनायास ही याद आया कि सौ वर्ष की आयु में उसने पृथ्वी को त्याग दिया था। उस वक्त धरती पर रहने वालों ने जो बर्ताव किया था इस पवित्र भूमि के साथ उसका भयानक रूप आज देख कर वो बेहद निराश हुआ। जिस जगह वो धरती पर अवतरित हुआ वो कभी इस देश की राजधानी हुआ करती थी। 

     कुछ पल बाद वो तेजी से आगे बढ़ा और पहुंच गया उस इलाके में जहां उसने पृथ्वी पर जीवन के अंतिम दिन गुजारे थे। उस वक्त तो आपाधापी मची हुई थी। इनसान इनसान का दुश्मन हो गया था। हां एक झटका लगा था उस वक्त के इनसानों को जब वो पचपन साल का रहा होगा तब अचानक एक महामारी ने जिस तरह से कहर बरपाया था, उससे खौफ खा कर इनसान दहल गया था। लेकिन वो खौफनाक मंजर इनसान के दिल-ओ-दिमाग से जल्दी छूमंतर हो गया था। इसके बाद सारी दुनिया में जो कुछ हुआ उसकी याद करके दिल दहल जाता है।

      उसने अपने मन को समझाया और निकल गया आगे। लोग तो थे। पर कम थे। खंडहरों के बीच कुछ रहने लायक मकान थे जिनमें परिवार रह रहे थे। नया मकान कोई नजर नहीं आया। कुछ कदम चलने के बाद वो ठहर गया। बहुमंजिला इमारत ठीक-ठाक हालत में थी। पहले उसमें लिफ्ट हुआ करती थी पर अब गायब थी। सीढ़ियों से ऊपर गया। दरवाजा खटखटाया। एक सुंदर सी कन्या ने दरवाजा खोला। पूछा - "किससे मिलना है बाबाजी आपको ?" शिष्टाचार देखकर आँखें नम हो आईं। अपने आपको संभालते हुए वो बोला - "तेरे दादा जी से।" कन्या अंदर ले गयी। अपने बेटे को देखकर उसे अच्छा भी लगा और चिंता भी हुई। बहुत कमजोर हो गया था बेटा। उसकी अवस्था को देख कर बोला - "बेटा तुम भी सौ के आसपास हो गये हो।" हामी भरते हुए बेटा बोला - "मैंने आपको पहचाना नहीं बाबा जी ?" उसने मुस्कुराते हुए कहा - "बेटा मृत आत्माओं से संबंध नहीं पहचाने जाते। जीवित अवस्था में मैं तुम्हारा जनक था।" इतना कहकर वो अंतर्ध्यान हो गया।


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