जन्मदिन मुबारक
जन्मदिन मुबारक
जब अपना ही होश नहीं था तब अपनी मां को खो दिया था। दादी, बड़ी बहनों और फिर सौतेली मां ने पाल-पोस कर कब विदा कर दिया मुझे पता ही नहीं चला। मां तो सौतेली थी ही पर पिता के प्यार से भी उपेक्षित-सी रही।
आज अपने पति और तीनों बच्चों के साथ प्यार में ऐसे डूबी हूं कि 44वां सावन कब दस्तक दे गया, पता ही नहीं चला। "फेसबुक-युग" ने इंसान की जिंदगी को इस कदर बदल कर रख दिया है कि कौन अपना है, कौन पराया पता ही नहीं चलता। हां सारी दुनिया आपके जन्मदिन पर शामिल जरूर हो जाती है।
कल रात मैं नींद के आगोश में चली ही गई थी कि ठीक बारह बजे पति और बच्चों ने "हैप्पी बर्थडे" गाना मोबाइल पर बजाकर मुझे चौंका दिया था। अभी पूरी तरह से आंखें खुली न थी कि बड़ी बिटिया और दामाद का फोन भी आ गया। बच्चों ने "फेसबुक" पर छोटी-सी फ़िल्म भी पोस्ट कर दी दी थी और कुछ ही मिनटों में अपनों की और "फेसबुक दोस्तों" की शुभकामनाएं आनी शुरू हो गई थीं। मन आंदोलित था।
सुबह जन्मदिन के उल्लास को चार चांद लग गए जब "फेसबुक" पर "कमैंट" के साथ-साथ पिता का फोन आया और मां ने भी शुभकामनाओं एवं दीर्घायु की झड़ी लगा दी। आंखें भर आईं थीं, जब पति ने यूं ही पूछ लिया था कि बचपन में सौतेली बहन के जन्मोत्सव पर तुम्हें कैसा महसूस होता था, जबकि तुम्हारा जन्मदिन तो मनाया ही नहीं जाता था ?
मैंने कहा - "आज सारी नाराज़गियां खत्म हो गई।"