STORYMIRROR

Sandeep Sharma

Drama

3  

Sandeep Sharma

Drama

अंतिम संस्कार

अंतिम संस्कार

3 mins
235

रात का एक बज रहा था, जब मेरी आंख खुली मोबाइल की घंटी सुनकर। मौसम भी बहुत ज्यादा खराब था। बादलों की गड़गड़ाहट के बीच बिजली भी कौंध रही थी। मानों आज ही गिरेगी बिजली और फटेगा बादल।

गहरी सांस लेकर रिया ने मोबाइल में मैसेज पढ़ा। पानी पिया। फिर बड़बड़ाई - "आखिर कब तक चलेगा ये अमानवीय कृत्य। इंसानियत मर चुकी है। क्या कोर्ट-कचहरी ही एक रास्ता रह गया है घर की चौखट को बचाने का ? क्या करूं ? कुछ भी समझ में नहीं आता।" पता नहीं अपनी बड़ी बहन के परिवार को बचाने के उपाय सोचते-सोचते रिया को कब नींद आ गई।   

कई बार इंसान रिश्तों के भंवर में ऐसे फंस जाता है कि चाहकर भी भंवर से न खुद निकल पाता है और न रिश्ते की गरिमा को बनाए रख पाता है। रिया भी ऐसे ही भंवर में उलझी हुई थी। दो सगी बहनें जब जिठानी-देवरानी के संबंध में जकड़ जातीं हैं तो हर छोटी परेशानी विकराल रूप धारण कर लेती है। मामला उस समय और बिगड़ जाता है जब जन्म देने वाले मां-बाप भी इस दुनिया से कूच कर गये हो।

तीस बरस कम नहीं होते जुल्म-ओ-सितम की भयावह दुनिया में पल-पल जीने की चाह लिए हुए। शायद ऐसा तब होता है जब बेमेल विवाह होता है। रिया की बड़ी बहन की शादी जिस लड़के से हुई उसमें सच्चाई ऐसे छिपाई गयी मानों लड़के को शादी के लिए लड़की ही न मिल रही हो। रिया की बड़ी बहन आगे पढ़ना चाहती थी। आगे बढ़ना चाहती थी। माता-पिता के सामने बेबस ने शादी के बाद अपनी सारी ख्याइशें पूरी की।

उस दिन आस-पड़ोस के लोग भी बेहद खुश थे जब रिमा को पीएचडी की उपाधि मिली थी। अगर कोई खुश नहीं था तो सिर्फ़ दसवीं पास रिमा का पति रमेश। शराब के नशे में चूर रमेश ने भरे समाज के सामने कहा था - "जूतियां सिर पर नहीं रखी जाती।"

वक्त ठहरता नहीं है। न ठहरा है। न ठहरेगा। वक्त बदला लेकिन रिमा के दाम्पत्य जीवन में न कभी दीपावली आई और न होली। बस अपने तीनों बच्चों को अच्छे दिन आने का दिलासा देते-देते उसने अपनी इच्छाओं की होली जरूर जलाई। बच्चे कब बड़े हो गए रिमा को पता ही नहीं चला। उसके लिए तो तीनों अभी तुतलाती जुबान ही बोलने वाले शिशु थे। उसे तो उस समय पता चला जब बड़ी बिटिया ने मां को पिता रमेश से थप्पड़ खाने के बाद गले लगाते हुए कहा था - "जब रिश्ते नासूर बन जायें तो उन्हें दफ़ना देना चाहिए।"

अपनी जवान बेटी की बात रिमा को आंदोलित करती रही। इसलिए नहीं कि रिश्ते को दफ़न और कफ़न का वक्त आ गया है बल्कि इसलिए क्योंकि बिटिया दाम्पत्य शब्द का अर्थ समझने लगी है। मां तो आखिर मां होती है। अपने बच्चों को सदैव अपने आंचल में छिपाए रहती है।

रिया उठी और चल दी रिश्ते का अंतिम संस्कार करने।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama