परफेक्ट पार्टनर
परफेक्ट पार्टनर
"माँ मैं आपके जैसे शादी नहीं करना चाहती। मैं अपने लिए अपना सोलमेट ढूंढ़ना चाहती हूं - परफेक्ट पार्टनर, मेरे दिल का सच्चा साथी। "
"अच्छा, सुनने में तो बड़ा अच्छा लग रहा है पर तुम ढूंढोगी कैसे अपने सोलमेट को।"
"वहीं तो माँ समझ नहीं आ रहा कि कैसे ढूंढू उसे। बस शादी करनी है ऐसे ही किसी से।"
"कुछ तो सोचा होगा, क्या होनी चाहिए विशेषताएं उस सोलमेट में।"
"माँ मुझे समझे जो, मुझे नौकरी करने दे आराम से, मेरा ख्याल रखे और घर बाहर की ज़िम्मेदारी बराबर संभाले मेरे साथ - बस वही।"
"हम्म, और तुम्हें लगता है कि तुम्हारे पापा मेरे सोलमेट नहीं हैं।"
"आपको पापा सोलमेट लगते हैं। क्या माँ आप भी, बिल्कुल सती सावित्री पत्नी की तरह पति कि तारीफ़ ही करनी है बस। बिल्कुल अलग अलग हो आप दोनों स्वभाव में। वो उत्तर तो आप दक्षिण। फिर आप लोग सोलमेट कैसे।"
"हँस मत, ध्यान से सुन। सही कहा तूने कि वो उत्तर तो मैं दक्षिण। तेरे पापा घूमने के शौकीन और मैं घर रहने की। बाकी भी तकरीबन सारी बातें अलग हैं हम दोनों की। पर हर बार सिर्फ अपनी पसंद पूरी हो तो ज़िन्दगी का मज़ा कम होने लगता है- वहीं लगी बंधी सी, कुछ नया नहीं। पर कभी दूसरे के चेहरे पर खुशी लाने का मज़ा और कभी अपनी बात मनवाने का मज़ा तो उत्तर दक्षिण फितरत वाले ही उठा सकते हैं।"
"रही नौकरी करने देने की बात भी सही नहीं है। सही तो तब है कि अगर तू नौकरी करना चाहे तो भी हमसफ़र साथ हो और नौकरी ना करना चाहो तो भी हमसफ़र साथ हो। जैसे कि जब मैंने तुम्हारे लिए नौकरी छोड़ने का फैसला किया तब तुम्हारे पापा मेरे साथ थे जबकि सब समझा रहे थे कि आया लगा लो बच्चे को संभालने को पर तेरे पापा ने ये फैसला मेरे ऊपर छोड़ कर सिर्फ ये बोला कि तुम जो भी फैसला लेगी उसमें मैं तुम्हारे साथ हूं। उस वक़्त अपने जीवनसाथी पर कितना गर्व हुआ था मुझे ये तुम समझ सकती हो।"
"फिर तुम्हारे बाद दूसरा बच्चा ना करने में भी सिर्फ हम दोनों ने ही फैसला किया, किसी दूसरे के विचारों को अपने बीच में नहीं आने दिया।"
"और रही थोड़ी खट्टी मीठी लड़ाई वो तो कई बार असली होती है तो कई बार जब लड़े बड़े दिन हो जाते हैं तो हम झूठी मूठी भी कर लेते हैं। इसका मज़ा तुम शादी के बाद ही समझ सकती हो।"
"और विचार मतभेद तो चलता ही रहता है। शायद ही कोई ऐसा रिश्ता हो जो सौ प्रतिशत एक जैसा सोचें। यहां तक कि माँ बेटी की सोच भी अक्सर अलग हो जाती है। तो क्या इस से सोलमेट सोलमेट नहीं रहता।"
"मेरी नजर में सोलमेट वो है जो आपके साथ चलकर खुश हो, आपकी इज़्ज़त करे, आपसे प्यार करे और आपसे जुड़े रिश्तों की कद्र करे और आपको वैसे ही कबूल करे जैसे आप हो ना कि आप को बदलने की कोशिश करे। ज्यादा सोचना रिश्ते से हमारी अपेक्षाएं बढ़ा देता है और रिश्ते कि खूबसूरती ख़तम कर देता है। कुछ बातें मान ली, कुछ मनवा ली और बस बन गया एक खूबसूरत रिश्ता।"
तभी पापा आ गए और बोले,"लगता है मेरी तारीफ कर रही हो माँ बेटी बैठकर।"
माँ ने दिखावटी मुंह बनाकर कहा, "कुछ तारीफ करने लायक हो तो करूँ भी। हुंह"
आज माँ के मुंह बनाने पर पहली बार मुझे उसमें छिपी छेड़खानी समझ आई जो मुझे पहले नहीं दिखती थी और ना ही उनके रिश्ते की खूबसूरती। पर माँ के छेड़ने पर पापा की आँखों की चमक ने बता दिया कि उन्हें ये खूबसूरती नज़र आती है।
और मेरी आँखों की चमक और मुस्कुराहट ने माँ को भी समझा दिया था कि मुझे भी रिश्ते की खूबसूरती और सोलमेट सब समझ आ गया था। मैं ने हँस के मम्मी पापा को एक साथ गले लगा लिया।
