Dhan Pati Singh Kushwaha

Inspirational

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Dhan Pati Singh Kushwaha

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परमार्थ के कारने संतन धरा शरीर

परमार्थ के कारने संतन धरा शरीर

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हमें सदैव याद रखना है हम सब का इस पावन धरा पर आगमन विशिष्ट उद्देश्य के लिए हुआ है। यह सारा ब्रह्मांड एक सुव्यवस्थित ,नियत रूप का शक्ति द्वारा निश्चित नियमों का पूरी तरह पालन करते संचालित हो रहा है। संसार का हर व्यक्ति अपने आप में अद्वितीय और अति महत्त्वपूर्ण है। किसी भी को अपने को बड़ा निरीह अथवा परमशक्ति शाली नहीं समझना चाहिए अर्थात हम इनफीरियरिटी और सुपीरियरिटी धारणा से मुक्त रहना है। दूसरे व्यक्ति के प्रति भी हम पूर्वाग्रह से मुक्त रहें। दूसरे व्यक्ति को वहीं सम्मान दें जिसकी दूसरों से अपने लिए अपेक्षा करते हैं।


हमारे परमप्रिय मित्र प्रेम शंकर जी ऐसा विशिष्ट व्यक्तित्व रखते हैं कि आप उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रख सकते बड़े ही मृदुभाषी ,मिलनसार और सहयोगी। हम मित्र मंडली के लोग आपस हास परिहास के समय अक्सर कहा करते हैं कि भगवान ने आपको इस संसार में भेजने से पहले बड़ा सोच- विचार किया होगा तभी तो उनके बड़े ही महत्त्वपूर्ण प्रोजेक्ट को पूरा करने में अपना जीवन समर्पित किए हुए हैं जो हम सब लोगों के लिए अनुकरणीय और प्रेरणादायक है।वे राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की काव्य पंक्ति ' वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे ' सुनाकर हम सबकी बोलती बंद कर देते।


अभी -अभी हम ऑफिस पहुंच ही रहे थे कि कि मेरे मोबाइल पर उनका फोन आया था बस के केबिन में आ जाओ। मैं तुरन्त बॉस के केबिन में पहुंचा। बॉस के साथ सबेरे-सबेरे ही उनका वाद-विवाद होता देख हम हतप्रभ थे। वे नाराजगी भरे लहजे में बॉस से कह रहे थे।-"शकुंतला जी हमारे अपने इस सामूहिक परिवार की सदस्या हैं।आयु और अपने ममतामयी व्यवहार न स्नेह मामले पर गौर करें तो वे हम सबकी मां के समान हैं । कार्यालय में हम सबको शीतल जल और गर्मागर्म चाय कितने प्यार और स्नेह के साथ देती हैं।आज उनका स्वास्थ्य अचानक खराब हो रहा है तो हमें वही व्यवहार करना चाहिए जिसकी हम अपने लिए अपेक्षा करते हैं।"


मेरी ओर देखकर प्रेम शंकर जी मुझसे बोले-" अभी हम दोनों गाड़ी में शकुंतला जी को अस्पताल ले चलते हैं।उनका स्वास्थ्य खराब हो रहा है। उन्हें तुरंत अस्पताल में भर्ती करवाने की आवश्यकता है। "


मेरी हाथ में छुट्टी का फॉर्मेट देते प्रेम शंकर जी बोले-"सर को आज की छुट्टी के लिए हम दोनों आवश्यक विवरण भरते हुए इस फार्म पर हस्ताक्षर करके दे देते हैं क्योंकि शकुंतला जी के घर से इनके परिवार के लोगों को के आने में विलंब भी हो सकता है तब तक हमें अस्पताल में रुककर वहां उनकी भर्ती की प्रक्रिया और सारी देख-रेख करनी होगी।हम दोनों की छुट्टी के लिए मैंने मौखिक रूप से सर की आज्ञा ले ली है। यह लिखित औपचारिकता भी पूरी कर दो। "

हम दोनों अपनी कार में शकुंतला जी को लेकर अस्पताल में भर्ती करवाने के लिए निकल पड़े। प्रेम शंकर जी यह नाराजगी वाला स्वरूप आज पहली बार देखा था।उनका यह स्वरूप भी उनके स्वभाव के अनुरूप उद्देश्यपूर्ण और परमार्थ के लिए ही था। उनके इस नये रूप से मेरे मन में उनके प्रति श्रद्धा भाव पहले से ही कई गुना अधिक बढ़ गया। परमपिता परमेश्वर का मन ही धन्यवाद दिया कि मुझे ऐसे महापुरुष का सानिध्य प्रदान करने की अनुकम्पा की।


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