परजीवी

परजीवी

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आज सुबह की सैर के वक्त राजेश भाई मिल गए।उन्होंने ही मुझे आवाज दी।मै तो उन्हे पहचान ही नहीं पायी,क्या ये वही राजेश भाई है।जिन्हे पूरा मोहल्ला अमिताभ बच्चन कहता था।लम्बा कद,तीखे नैन नक्श,आकर्षक व्यक्तित्व,कालेज के हीरो। तीन बहनो के अकेले भाई,लाड़ले,एक गिलास पानी भी अपने हाथ नही लेते। राजेश भाई की सबसे छोटी बहिन मेरी प्रिय सहेली थी।इस हिसाब से मै भी उन्हे भाई कहती थी।हम चारो पर राजेश भाई की सतर्क निगरानी रहती थी।मज़ाल है कोई लड़का हम लोगो की तरफ आँख उठाकर भी देख ले।खैर नहीं उसकी।दबदबा था उनका । समय के साथ हम चारो भी शादी होकर अपनी अपनी गृहस्थी मे रम गई।मेरा मायके आना जाना भी कम हो गया।सुना राजेश भाई का भी ब्याह हो गया।बड़ी उत्सुकता थी भाभी को देखने की।जो कई लड़कियों के सपनो का राजकुमार था।उसे कैसी प्रिंसेस मिली ।पर सम्भव न हो पाया।मैने सुना की भाभी उनसे उन्नीस क्या दस ग्यारह भीनहीं थी।अपने पिता की ज़िद के आगे उन्हे झुकना पड़ा था। मै भी अपने घर बार मे रम गई। आज राजेश भाई इस हाल मे मिले।हालांकि हमारे साथ के सभी लोग उम्र दराज हो गए थे।पर भाई तो जैसे ---दुख हुआ उन्हे देख कर,सिर पर छुट पुट सफेद बाल,चमड़ी लटकी हुई,आँखो पर मोटा चश्मा,कमर धनुष की तरह झुकी,हाथ मे छड़ी,और कृशकाय शरीर। "भईय्या आप तो बहुत कमजोर हो गए ,पहचान मे ही नहीं आ रहे"मैने कहा।उनकी आँखो के कोर भर आये।बोले"अरे मीनू,तुम्हारी भाभी के जाने के बाद मै अकेला हो गया हूँ । बेटा बाहर है।बहू के बच्चे छोटे है।जॉब और बच्चो मे व्यस्त रहती है।मुझे चाय,पानी,खाना लेना,सभी बातो पर उस पर निर्भर रहना पड़ता है। "भईय्या अब बहू भी व्यस्त रहती है।आपकी सेवा के लिये समय कैसे निकाले ।अपना काम तो आपको खुद ही करना पड़ेगा" "तू तो जानती है मीनू मैने कभी एक गिलास पानी भी अपने हाथ से नही लिया।तेरी भाभी भी जब तक जिन्दा रही ,मैने घर का कोई काम नही किया।" काश आंटी ने बेटा है कहकर लाड़ न कर बेटियोँ के साथ राजेश भाई को भी घर का कुछ काम करने दिया होता तो ये इस तरह परजीवी और दुखी न होकर स्वस्थ और प्रसन्न होते।


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