प्रियतम

प्रियतम

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इस आने वाले दिन में उसका इंतजार खत्म होने वाला था। वह इस बीत रही पूर्णिमा की रात के चाँद के साथ अपने प्रियतम के सौंदर्य का वर्णन कर रही थी। वह पूरा चाँद उसे अपने अस्तित्व के पूरे होने का एहसास करा रहा था मानो कह रहा हो कि “अब तुम्हारा इंतजार खत्म होने वाला है। अब तुम्हारे प्रियतम से तुम्हारा विरह इस प्रकृति और ईश्वर ने समाप्त करने की योजना बनाई है।”


वह सोच रही थी कि अपने जीवन का एक दिन भी तो उसने अपने प्रियतम को नहीं दे पाई, फिर भी वह उसके प्रेम को अपने जीवन के संघर्ष में अपनी इच्छाशक्ति का आधार बनाकर अपने देश की रक्षा करने निकल पड़ा है और खुद वह भी तो उसके विजयी होकर सही सलामत लौट आने की दुआ कर रही थी। उसने मन बनाया था कि वह अपने प्रियतम से अपने दिल में छुपे हुए उस प्रेम की अभिव्यक्ति करेगी जो उसके प्रियतम की वीरता और साहस को सुनकर ही उसके मन में स्थान बना चुका था। वह उसे बतायेगी कि वह उसे अपना जीवन साथी बनाने को किस तरह ईश्वर के समक्ष नतमस्तक हैं और उससे उसके जीवन में स्थान लेने की इच्छा रखती है।


इस तरह अपने मनोभावों को सपनों के रूप में देखते हुए वह सुबह के सूरज की लालिमा में अपने मुख पर उभरते तेज को निखार रही थी इस आशा के साथ कि आज अपने प्रियतम से उसका विरह अपने अंत की ओर बढ़ रहा था, लेकिन प्रकृति ने यह विरह सदा सदा के लिए उसका भाग्य में अंकित कर दिया था। उसने देखा था अपने प्रियतम का पार्थिव शरीर, जो युद्ध के शस्त्रों से अपने शरीर को त्यागने को विवश था लेकिन अपने साहस और वीरता से शत्रुओं का विनाश करने में सफल रहा।


उसे गर्व महसूस हो रहा था कि उसके प्रियतम ने प्रेम की पराकाष्ठा को प्राप्त कर उसे अमरता के शिखर पर पहुंचा दिया लेकिन अपने प्रेम की इस अभिव्यक्ति का इस तरह अधूरा रह जाना उसके मन के दर्द को आँसुओ में पिरोकर आँखो को छलका रहा था।



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