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Rashmi Sinha

Inspirational

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Rashmi Sinha

Inspirational

परिवार

परिवार

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दिशा रात भर, बेचैनी में करवटें बदलती रही थी। कौन सा तूफान उसके मन में उठता जा रहा था, जो उसे चैन से सोने नहीं दे रहा था।

    अतीत का एक दृश्य उसको बेचैन कर दे रहा था।

वो एक प्रतिभाशाली छात्रा थी, और माता पिता उसकी प्रतिभा को एक दिशा देने के लिए कटिबद्ध थे।

  इंटर में मेरिट में आने के बाद उसके पिता ने उसे होस्टल में डालने का निर्णय लिया, वहां से ही उसके सपनों को एक दिशा मिल सकती थी।

ग्रेजुएशन और फिर पोस्ट ग्रेजुएशन करते हुए उसको होस्टल में रहते 5 वर्ष व्यतीत हो चले थे।

     मां की जिद थी कि अब वो घर वापस आ जाये, और आगे की प्रतियोगिताएं उनके साथ ही रहते हुए दे।

   शायद उसके विवाह योग्य हो जाने के कारण ही ऐसा था। पिता का भी समर्थन था, उसे होस्टल से निकल कर घर आना पड़ा।

        भली भांति याद है दिशा को, उस समय उसे होस्टल से घर आने की इच्छा बिल्कुल भी न थी और मां उसे खलनायिका सी नजर आती।

 कई बार वो उन्हें कटु शब्दों में सुना भी देती, क्या लगता है आपको? मैं यहां खुश रहूंगी? मैं यहां कभी खुश नहीं रहूंगी। और मां एक उदास चेहरे के साथ वहां से हट जाती।

     पर यहां आने से दोनों की ही इच्छा पूर्ण हुई, उसने प्रतियोगी परीक्षा निकाल एस डी एम का पद संभाला, और शादी एक आई ए एस से तय हुई।

     अब दोनों ही खुश थे, दिशा ने संकल्प से मिलने पर स्पष्ट कहा दिया था, कि वो नौकरी किसी भी हाल में नहीं छोड़ेगी।

    संकल्प राजी था। क्योंकि उसकी पोस्टिंग उसी राज्य में थी, जहां दिशा थी। दो साल गुजर गए, दिशा, संकल्प के एक पुत्र भी हुआ, प्रखर---

     दिशा ने दो वर्ष सबैटिकल लीव लेकर प्रखर का पालन-पोषण किया। फिर एक आया रखी।

     संकल्प का ट्रांसफर हैदराबाद हो गया था, जहां दिशा नहीं जा सकती थी।

      अब पति पत्नी अलग अलग जगहों पर रह रहे थे। प्रखर दिशा के ही पास था। छुट्टियों में मिलते और फिर अपनी अपनी पोस्टिंग के स्टेशन पर----

     समय गुजरता रहा ,प्रखर अब 8 वर्ष का था।

और सीनियर हो जाने के बाद, दिशा को उसको समय देना मुश्किल होता जा रहा था।

    समाधान एक ही था, प्रखर को होस्टल में रखने का। धन बाधा न था।

  संकल्प की सहमति थी। आज दिशा प्रखर को हॉस्टल छोड़ कर आई थी, आठ वर्षीय प्रखर का रोना देखकर उसका भी आत्मविश्वास डगमगा गया, उसे पुचकार कर, चुप कराकर, पुनः जल्दी उसने का कह कर वो वापस आ चुकी थी।

     तो ये थी उसके रोने और रात्रि जागरण की वजह। इतिहास खुद को दोहरा रहा था। बार बार उसे मां याद आ रही थी, उतरे हुए मुँह वाली मां-----

"तुम क्या समझती हो, मैं यहां खुश रहूंगी?" 

     और वो बांध तोड़कर निकले हुए आंसू, उसका रोना रुक ही नहीं रह था-----

     क्या वो खुश थी अब? संकल्प एक जगह, प्रखर दूसरी जगह, और वो स्वयं तीसरी जगह------

   क्या ये परिवार था? क्या ये खुशी थी?

क्या सचमुच दिशा की खुशी???

सुबह होते ही सूजी आंखों, और मुँह पर पानी के छींटे मार ,वो किसी निर्णय पर पहुंच चुकी थी।

    इस्तीफा दे अब वो संकल्प के साथ रहने का संकल्प ले चुकी थी।

   कदम बढ़ रहे थे, स्टेशन की ओर----

वहां पहुंच कर वो संकल्प को भी बुला लेगी---



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