परिवार
परिवार
याद है वो कहानी, सुनती थी जो पापा की जुबानी।
जिसे सुनकर मैं आह्लादित हो जाती थी।
दादाजी हंस पड़ते थें।
दादी मां कटाक्ष करती थी।
चाचा लोग और भैया व्यंग्य बाण छोड़ते थे
बहनें निर्विकार सुनती थी और मां
मां बेहद गंभीर मुद्रा में स्वेटर बुनते बुनते कुछ बुदबुदाने लगती थीं .....!
तब नहीं मालूम था उसका मतलब लेकिन अब सब समझती हूं।
मां ईश्वर से प्रार्थना करती थीं
कि जिस यकीन से मैं पापा को निहारती हूं कहानी सुनते सुनते जो सपने देखने लगती हूं। "वो सब सच हो जाएं " पापा के प्रति जो आस्था है , विश्वास है वो कायम रहें उम्र भर क्योंकि मां को पता था। मेरे हाथ में भाग्य रेखा नहीं थी और जीवन रेखा भी बहुत बार टूटी हुई थी। सब लोग शंकित थे मेरे जीवन और भविष्य को लेकर। मगर मां साकारात्मक सोच रखने वाली विदूषी महिला थी और पापा एक कर्मयोगी उन्हें अपने कर्मों पर भरोसा था। दोनों ने अपने अपने तरीके से मुझे जीना सीखाया और अपने जेहन में एक सपना पैदा करना सीखाया और फिर उस सपने को पूरा करने के लिए संकल्पित होना सीखाया। सपनों में जीना और जीवन में उन सपनों को हकीकत करना सीखाया।
आज 40/45 साल बाद मैंने पाया है वो कहानी कितनी सच्ची थी। सुनाना चाहती हूं फिर वही कहानी अपने पापा की जुबानी। कितनी अच्छी और कितनी सच्ची थी वो कहानी .....! जबकि वो एक मनगढ़ंत कहानी थी। सिर्फ मुझे खुश रहने लिए मेरे आंखों में वो चमक देखने लिए और वो उत्सुकता जो मेरे मस्तिष्क में कौंधने लगता था ..... पढ़ लेते थे मेरे पापा .....!
पापा की कहानी -एक दिन यूं ही दूध मलाई खाकर बड़ी हो जाएगी मेरी गुड़िया रानी। पढ़ लिखकर पारंगत होकर ज्ञानी कहलाएगी। खाकर पकवान और मेवा मिष्ठान बन जाएगी बुद्धिमान। फिर आएगा एक दिन उसके सपनों का राजकुमार और ले जाएगा अपने साथ दुनिया की सैर कराएगा।चुन चुनकर हीरे मोती और जवाहरात लाकर देगा। सबसे सुंदर सबसे अच्छा घर होगा उसके सपनों का। होंगे उसमें सब संगी-साथी और होगा सुख साधन । धरती का स्वर्ग कहलाएगा गुड़िया के घर का आंगन। हर दिन होगा चहल-पहल और मौसम बसंत बहार का। चिड़ियों के मधुर संगीत से भोर होगा उसका। सूरज की किरणें आकर माथे से बाल हटाएगीं। आंख खोलकर गुड़िया रानी राजा का दर्शन पाएंगी। मीठी मुस्कान से होगा शुरू दिन और रात होगी मनोहारी ..........!
यह एक मनगढ़ंत कहानी थी जो शत प्रतिशत सत्य हुई। मिला मुझे राजकुमार जो दुनिया की सैर कराया। चुन चुनकर श्रेष्ठ चीजों से घर मेरे सजाया। घर बना है स्वर्ग से सुंदर। देव मिलें हैं पति रूप में और बाल गोपाल मेरे बच्चें संगी साथी साथ मेरे हैं। आंगन में है फुलवारी। खुलते आंख दर्शन हो उनके खड़े मिलें लेकर चाय पानी ... दिन भर गाएं गीत प्रेम के संध्या में मुझे घुमाएं। हुई रात जब थक मैं जाऊं थपकी देकर सुलाते। कभी लोरी कभी झिड़की और डांट कभी वो पिलाते पर मीठी नींद सुलाते। बाहों का सिरहाना देकर पास मुझे बुलाते। मुझे मीठी नींद सुलाते।
कितना सच हुआ वो सपना जो मैंने देखा था ...!!
मां , पापा और परिवार ही हमारा खुशियों का खजाना है। इतनी बड़ी सी दुनिया में सबसे खूबसूरत है मेरा घर , मेरा परिवार और मेरा सुखी संसार। नहीं हैं मेरे मां पापा मगर फिर भी दरो दीवार पर , फूल पौधों पर खुले आसमान में चांद तारों के साथ देख लेती हूं उन्हें भी मुस्कुराते हुए और आनंदित हो जाती हूं।
परिवार से जो मिलती है ताकत , हौसला और प्रेरणा वह हमें फर्श से अर्श पर पहुंचा सकती है। बहुत बड़ी कमी होने के बाद भी परिवार का साथ और सहारा हमें ऊंचे से ऊंचे मुकाम पर पहुंचा सकता है। इंसान एक सामाजिक प्राणी है। समाज परिवार के संगठन से ही बनता है। परिवार के सदस्यों के बीच एक-दूसरे के प्रति स्नेह , अपनत्व और फिक्र होती है तो उस परिवार का हर एक सदस्य अपने जीवन में कामयाबी हासिल कर सकता है। अपने लोग हमारे साथ खुशियां ही नहीं बांटते हैं बल्कि हमारा दुःख , दर्द , तकलीफ़ और परेशानियां भी बांट लेते हैं और एक अलौकिक ऊर्जा से भर देते हैं जो आत्मविश्वास पैदा करता है और हम आशावान होकर निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर होते चले जाते हैं जिसका परिणाम बेहद सुखद होता है। हम सफलता के उच्चतम शिखर तक पहुंच जाते हैं। दर्जन भर उदाहरण है ऐसे शख्सियतों का जो कुछ भी नहीं बन सकते थें लेकिन आत्मविश्वास , लगन और परिवार के सहयोग से एक मिसाल बनकर अपने सफलता का परचम लहरा रहे हैं। परिवार सिर्फ रक्त संबंध से जुड़े हुए लोगों का हुजूम नहीं है अपितु परिवार में वो लोग भी शामिल होते हैं जिनसे मानसिक रूप से जुड़ाव रहा हो सामाजिक , धार्मिक या नैतिक संबंध हो। परिवार का अर्थ बहुत वृहद है किन्तु वर्तमान समय में परिवार की परिभाषा ही बदल गई है अभी परिवार का अर्थ है पति-पत्नी और बच्चें बस।
