प्रेरणा परसाई से
प्रेरणा परसाई से
बचपन में अखबारों में सम्पादक के नाम पत्र लिखते लिखते व्यंग्य लेखन की शुरुआत हो गई। हमें ऐसा लगता है कि व्यंग्य कभी भी कहीं भी हो सकता है बातचीत में, सम्पादक के नाम पत्र में, कविता और कहानी आदि में भी। अपने को भाग्यशाली कहते हुए तनिक भी संकोच नहीं होता चूंकि जब हमने पहला व्यंग्य लिखा तो उसे परसाई जी ने पढ़ा, सराहा और प्रेरित किया। परसाई जी का लम्बे समय तक आशीर्वाद मिला।
व्यंग्य लिखने में सबसे बड़ी सहूलियत ये है कि "जैसे तू देख रहा है वैसे तू लिख"।
समसामयिक जीवन की व्याख्या उसका विश्लेषण उसकी सही भर्त्सना एवं बिडम्बना के लिए व्यंग्य से बड़ा कारगर हथियार और कोई हमें नहीं लगा, इसलिए हम सब व्यंग्य लिखते हैं।
समाज में फैली विषमता, राजनीति में व्याप्त ढकोसला, भ्रष्टाचार, दोगलापन आदि सहन नहीं होता तो कलम चलती है। जो गलत या बुरा लगता है उस पर मूंधी चोट करने की हिम्मत आती है और कहीं न कहीं से लगता है कि हमारी कलम ईमानदार, नैतिक और रुढ़िविरोधी को नैतिक समर्थन दे रही है। पर इन दिनों व्यंग्य लिखने वालों की संख्या दिनों दिन बढ़ रही है और व्यंग्य की लोकप्रियता कुछ लोगों को अखर रही है समाज के कुछ ठेकेदारों के लिए व्यंग्य और व्यंग्यकार आंख की किरकिरी बन गए हैं इसलिए सभी साहित्यकारों को एकजुट होकर इनके इरादों को नाकाम करना चाहिए।