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Aniket Guru

Abstract Romance Tragedy

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Aniket Guru

Abstract Romance Tragedy

प्रेम : जिस्म या रूह

प्रेम : जिस्म या रूह

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आज फिर जब रितिका घर आई तो उसकी आंखे भरी हुई थी, समान का थैला उसने पास रखी मेज पर रखा और कमरे में चली गई 

रानी सब समझ गई और वो उसके पीछे ही कमरे में चली गई

' रितिका , क्या हुआ... रो मत यार देख लोगो का तो काम है कहना एक दिन खुद ही चुप हो जायेगे ।' रानी ने रितिका के सिर पर हाथ सहलाते हुए कहा

'...... कब तक रानी आखिर कब तक ?? मैं ये सब सहू , मैने कोई गुनाह किया है क्या ? जो लोग हमेशा ताने मारते है ?? रितिका ने खुद के आंसुओ को पोछते हुए कहा

' रितु मैं जानती हूं तूने कोई गुनाह नहींं किया, पर ये समाज ऐसा ही है जिसने भी अपने दिल की बात सुनी ये उसे समाज का दुश्मन ही मानता है, मेरी तरफ देख मैं खुश हू तू खुश है फिर हमे किसी और से क्या करना.....' रानी ने रितिका को अपनी ओर घुमाते हुए कहा।

रितिका ने रानी को गले लगा लिया और 5 साल पहले जो हुआ उसे याद करने लगी....प्लेटफार्म पर ट्रेन के आने व जाने की सूचना करने वाले स्पीकर और लोगो की भीड़ को चीरते हुए जब रितिका ने पहली बार रानी की आवाज को सुना था ," सुनिए गांधी ग्राम के लिए आने वाली ट्रेन निकल गई क्या ?"

रितिका का ध्यान कही और था उसने एकदम से नजर घुमाते हुए कहा -" जी नहींं आने वाली है, मैं खुद भी गांधीग्राम ही जा रही हूं"

"अच्छा" रानी ने राहत की सांस लेते हुए कहा।

और धीरे धीरे बड़बड़ाने लगी " शुक्र है भगवान सही समय से पहुंच गई।"

कुछ देर में ट्रेन पटरी पर लग गई सभी यात्री अंदर जाने लगे रानी ने रितिका को हल्की सी मुस्कान देते हुए धन्यवाद किया और दोनो अंदर जाकर साथ बैठ गई।

इस दो घंटे के सफर में रितिका और रानी बहुत अच्छी दोस्त बन गई रितिका ने बताया वो गांधीग्राम में अस्पताल में नर्स के तौर पर काम करती है और रानी गांधीग्रम में रहती थी उसका वही घर था दोनो ने फिर कभी मिलने के वादे के साथ एक दूसरे से फोन नं. बदल लिया और गांधीग्राम में अपने अपने घर चली गई ।

समय गुजरा और हफ्ते भर बाद दोनो ने एक दूसरे से मिलने का मन किया ।

उस शाम दोनो एक काफीशॉप में मिली और फिर साथ साथ कब वक्त निकल गया पता ही नहीं चला 

अब अकसर दोनो एक दूसरे को मिलती और कभी कभी रानी रितिका के घर भी साथ रुक जाती

नजदीकिया इतनी बढ़ गई की एक दिन रितिका ने अपने दिल की बात रानी को बोल दी ।

शाम का समय था रानी रितिका के घर थी दोनो एक दूसरे का हाथ पकड़े लेटी हुई थी

रितिका ने रानी का हाथ अपने दिल पर रखते हुए कहा -" रानी मेरी बात का बुरा मत मानना पर मैं तुझे कभी खोना नहीं चाहती तू मेरी दोस्त भी है और मेरी जान भी.... पर क्या तू मुझसे शादी करेगी ?? " इतना बोलकर रितिका ने आंखे बंद कर ली और रानी की प्रतिक्रिया का इंतजार करने लगी।

रानी ने दोनो हाथो से उसके हाथ को पकड़ते हुए कहा -" रितिका ऐसा नहींं है की मैं तुझे प्यार नहीं करती पर ये बहुत मुश्किल है की मैं तेरे साथ हमेशा रहूं, ये जमाना और समाज हमे कभी नहीं समझ पाएगा और न कोई इस रिश्ते को अहमियत देगा ".... रानी की आंखे आंसू से भर आई समय गुजरता गया दोनो का प्यार और गहरा होता गया बिना ये सोचे की ये समाज इस तरह के रिश्ते के लिए कभी राजी नहींं होगा

और एक दिन वो दिन आ ही गया जब रितिका और रानी का रिश्ता जमाने के सामने आ ही गया

रितिका के घर उसे देखने को लड़के वाले आ रहे थे और इस बात से रितिका बिलकुल बेखबर थी जब रितिका घर पहुंची तो उसकी मां ने उसे हस्ते हुए कहा - "बेटा अच्छा हुआ तू आ गई चल अब जल्दी तैयार हो जा, आज तुझे देखने वाले आ रहे है।"

रितिका के चेहरे का रंग उड़ गया वो कुछ कह पाती उससे पहले ही उसके पापा ने आकर उसे तैयार होने को कह दिया

मन तो था नहींं पर पापा को न कहने की उसमे हिम्मत नहीं थी

दिन गुजर गया शाम होते ही रितिका रानी को मिलने गई और उसने रानी को सारी बात बताई 

उसी दिन रानी ने फैसला ले लिया की अब वो बिल्कुल इंतजार नहीं करेगी और रितिका के पापा से सारी बात करेगी 

उसी शाम जाकर रितिका और रानी ने अपनी बात रितिका के पापा और पूरे परिवार के सामने रखी

इस बात में कोई शक नहीं था की इस बात का बवाल नहीं होगा रितिका की मां ने सुनते ही रानी का हाथ पकड़ कर घर से बाहर का रास्ता दिखा दिया और रानी को कमरे का और रितिका के पिता से शिकायत करने लगी -" मैं तो कहती थी शादी कर दो ,शादी कर दो पर एक न सुनी अब करवा दी बदनामी इस बात को कोई सुनेगा तो क्या कहेगा , छी... इस बात को सोचने में भी गंदगी लगती है। हे राम मैं मर क्यों न गई इस सबको सुनने से पहले , "

"मैं जल्दी ही शादी की बात करता हु रामलाल जी से " रितिका के पिता ने सांत्वना देते हुए कहा

घर के बाकी सदस्य भी इस बात से स्तब्ध हो गए थे ।

दिन देरी न करते हुए रितिका की शादी तय हो गई और शादी का दिन भी आ ही गया पर रितिका के दिल और दिमाग में अब भी रानी ही बसी हुई थी इधर रानी भी हर संभव कोशिश कर रही थी रितिका तक पहुंचने की

रितिका ने कोशिश करके घर से बाहर निकल गई और सीधी रानी के घर पहुंची, रितिका जाकर रानी को गले लगाकर बहुत रोई रानी उसे संभालती रही 

फिर दोनो ने शहर छोड़कर भाग जाने की सोची और वह से भाग निकली

जब तक घर वाले रानी के घर सीमा उसे ढूढने आते वो दोनो शहर से जा चुकी थी

और इस अनजान शहर में आकर दोनो बस गई फिर जिंदगी जीने लगी और एक दिन दोनो ने जाकर मंदिर में शादी कर ली

समलैंगिक विवाह को देश में कोई सही नहीं मानता ना मानेगा फिर भी दोनो ने मिलकर ये कदम उठाया 

और आज समाज की उत्पीड़ना का सामना कर रही है।

रानी ने रितिका को माथे पर चूमा तो रितिका का ध्यान टूट गया और वो आज की जिंदगी में वापिस आ गई।

कुछ देर साथ बैठ कर रितिका को प्यार से समझाने पर रितिका समझ गई और रानी भी खाना बनाने के लिए उठ गई - " रितु जल्दी से नहा ले, फिर खाना खाते है वैसे भी मुझे एक नई जॉब मिली है तेरे से बात करनी थी ।"

"हा आ रही , तू भी जल्दी बना ले बहुत भूख है ।" रितिका ने रानी को जबाब दिया

कभी इस शहर कभी उस शहर रहकर दोनो जिंदगी गुजार रही, लोगो को शायद ये रिश्ता एक घिनौना रिश्ता लगता होगा पर उन दो दिलों का क्या जो एक दूसरे के लिए एक दूसरे के जिस्म में धड़कते है।प्यार दो जिस्मों का तो नहीं होता ये तो दो रूहों का रिश्ता है फिर समलैंगिक रिश्ते में प्यार की परिभाषा क्या है ?

क्या समाज में बैठे कुछ लोगो के स्वार्थ और झूठे अभिमान के लिए अपनी जिंदगी और इच्छाओं को मारकर जीना सही है ?

रितिका और रानी आज खुश है जहाँ भी है जैसे भी है बहुत खुश है क्या अगर किसी और से शादी करके दोनों खुश होती ? या उस इंसान को खुश रख पाती ?


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