तीन लड़कियाँ
तीन लड़कियाँ


दरवाजे पर हल्की सी दस्तक हुई , मैं बैठ कर अपना आफिस का काम कर रहा था, कुर्सी से उठकर जाकर दरवाजा खोला तो
'नमस्ते बाबू जी मेरा नाम सरिता है मुझे श्यामलाल ताऊ ने भेजा है' सामने खड़ी लड़की ने जबाब दिया
'अच्छा , आओ अंदर आओ ' मैउसे अंदर आने को कहकर दरवाजे से एक तरफ हट गया
वो तीन लडकिया थी जिनमे से ये बड़ी लड़की थी जिसका नाम सरिता था , दूसरी मानसिक विकृत थी लालो , और तीसरी बहुत छोटी थी जिसका नाम प्राची था
मेरा ट्रांसफर यह इस शहर में पिछले सप्ताह हुआ था , खाने पीने को परेशान रहता तो अपने चौकीदार से किसी काम वाली बाई को भेजने को कहा था पर उसने ये तीन लडकिया भेज दी
बड़ी लड़की सारा काम करती और सबसे छोटी लड़की बीच वाली लड़की को संभालती थी
एक दिन मुझसे रहा नही गया और मैने पूछ लिया कि तुम इसको घर छोड़ आया करो न ये छोटी बच्ची परेशान नही होगी , तो उसने बताया कि मेरी माँ बचपन मे ही मर गई थी पिता भी कुछ सालों बाद चल बसे , तब से में ही घर मे काम करती हूं और घर का काम चलता है , उसे अकेला नही छोड़ सकती कही कोई परेशानी आई तो को संभालेगा उसलिए साथ ही ले जाती ह बाबू जिगर आपको बुरा लगा हो तो मैं कल से नही लाऊंगी , उसने बहुत ही असहजता से कहा
' अरे , नही नही तुम तो मेरी छोटी बहन जैसी हो कोई बात नही ले आया करो , बेटा तुम तीनो बहनों के सहारे मुझे ये घर घर लगता है ,
मैन उसे अपनापन का एहसास दिलाते हुए कहा
फिर उसने मुझे कभी बाबू जी नही कहा वो तीनो मुझे भैया बोलने लगी थी राखी के त्योहार पर मुझको राखी बांधती ,
समय बीत गया दो साल में वहां रहा , सरिता मेरी सगी बहन सी बन गई थी
एक दिन मेरा ट्रांसफर दूसरे शहर को हो गया , मैं घर गया सोचा सरिता को बता दूंगा पर मुझसे कहा न गया अब इन बहनो की आदत हो गयी थी, में जाकर सोफे पर चुपचाप बैठ गया
तभी अचानक प्राची ने आकर मेरी चुप्पी तोड़ी ' भैया , आपके लिए खाना बना रखा है दीदी और हम सब दो दिन नही आएंगे ,!
'क्यों' ??? मैने अचरज से पूछा
'वो हम सब माताजी पर जा रहे है सब लोग जा रहे है मोहल्ले से, बताया है कि माता जी के यहां लालो भी ठीक हो जाएगी , ' उसने बहुत मासूमियत से कहा और चली गई
मैं दूसरे दिन समान पैक करके निकल आया और कुछ सामान और रुपये शयमलाल को दे आया कि ये सरिता को दे देना
फिर कभी उन बहनों से मिलना नही हो पाया , शादी में भी मेने निमंत्रण भेजा पर कोई नही आया, फिर 25 साल बाद.....
एक दिन एक पत्र आया जिसमे एक पता लिखा था और उस पर लिखा था यह आकर मिलो
जब मैं उस पाते पर गया तो एक बड़ी सी कोठी के आगे जाकर मैन अपनी गाड़ी रोकी , दरवाजे पर एक चौकीदार ने कहा -' राजीव ,' मैन कहा- हाँ
तो अंदर दरवाजा खुला और में अंदर गया , घर के अंदर बहुत अच्छी सजावट थी घर मे नौकर घूम रहे थे , सामबे एक बड़े से सोफे पर एक औरत बैठी थी उसने खड़े होकर मेरा अभिवादन किया और बैठने को इशारे में कहा
जैसे ही उसने पहले शब्द बोला भैया जी, मैं सरिता....
मेने अपना चश्मा उतारा मेरी आँखों मे आंसू छलक गए
'बेटा..... तुम.... 'मुजगे कुछ शब्द ही न आये
उसन्द बताया कि किस तरह मेरे दिए पैसे से उसने खुद के घर पर छोटा मोटा काम शुरू किया और फिर धीरे धीरे उसी काम से उस शहर की सबसे मशहूर दर्जी बन गई धीरे धीरे इतनी मशहूर हुई कि आज जिस बाबू जी नाम के मशहूर दर्जी पर मेरी पत्नी अपने और मेरे कपड़े सिलवाने जबरदस्ती ले जाती थी उसकी मालकिन कोई और नही सरिता थी
बाद में लालो को भी इलाज से थोड़ा बहुत अंतर मिल गया था वो समझने लगी थी आज भी वो उसके साथ थी ,सरिता ने शादी कर ली थी प्राची को बाहर बड़े शहर पड़ने भेज दिया था ,, और मुझे ढूढने की हर कोशिश कर रही थी ,, और मेरे सम्मान में ही उस बड़े काम को उसने बाबू जी नाम दिया था
.... आज राखी थी उसने मुझको राखी बांधी, लालो ने भी अब तो राखी बांधना सिख लिया था मैने उसे उपहार में शगुन दिया , कुछ देर समय बिता कर में घर निकल आया
आज मैं खुश था मुझे मेरी खोई बहनें वापिस मिल गई थी।