परदेसिया
परदेसिया
सुबह-सुबह शोर शराबा सुनकर नींद भाग गई। पता लगा कि पड़ोस के मकान से आवाजें आ रही थीं। एक तो कड़कड़ाती सर्दी उपर से सुबह-सुबह की बात। उठने का मन तो नहीं हो रहा था पर पड़ोस की बात थी। बिना गए काम भी नहीं चलता। अनमने ढंग से उठाया और चल पड़ा। वहाँ पहुंचा तो माजरा कुछ ऐसा था कि देखकर दिल दहल जाए।
सुगिया जमीन पद बैठी रो रही थी। उसके सारे कपड़े गीले थे मानों उसे ड्रम भर पानी से नहला दिया गया हो। घर के सभी लोग उसे घेरे खड़े थे। कोई कुछ बोल नहीं रहा था। बस सब कातर भाव से उसे देखे जा रहे थे। ध्यान से देखा तो सुगिया की साड़ी कई जगह से जली हुई थी। सिंथेटिक की होने के कारण जलकर सिकुड़ गई थी। सबकुछ देखते हुए भी कुछ समझ न पाया। बगल में उसके चाचा खड़े थे। आगे का हाल जानने के लिए मैंने उनकी ओर मुंह किया और
क्या हुआ चाचा? सब इसे घेरे खड़े हैं, ऊपर से गीली है। सर्दी के मारे यदि ठंड लग गई तो निमोनिया हो सकता है। इसके कपड़े तो बदलवाइए।
“का बताई बच्चा ! जाने का हुआ कि भक्क से ढिबरी इसके ऊपर गिर गई और ई जल कर मरने से बची। उ तो भला हुआ कि रोहित उस समय पढ़ रहा था, जैसे ही उसकी साड़ी में आग पकड़ी, दौड़कर पानी डाला और फिर आग बुझाई। सबको चिल्ला-चिल्ला कर बुलाया लिया। समझे में नहीं आ रहा है कि आखिर इतनी असावधानी कैसे हो गई, उहो सुबह-सुबह?”- चाचा बोले।
मैंने आनन-फानन में सबको हटाया और फिर सुगिया को अंदर भेजा। उसके साथ अपनी पत्नी को भी भेजा कि जाकर इसके कपड़े बदलवा दें और गरम कपड़े पहनवा दें। मैंने रोहित से कहा कि गरमा-गरम चाय बनाए, थोड़ी काली मिर्च, अदरख और इलायची डालकर। अदरख वाली गरम चाय पीने से सर्दी कम लगती है।
“चलिए अब सब ठीक हो जाएगा। अब मैं आ गया हूँ। कोई और दिक्कत होगी तो उसका इलाज कर दूंगा, आपलोग अब अपने-अपने घर जाइए। इस समय मरीज को अकेले रखना और फिर उसका सही से इलाज करना जरूरी है। ”- यह कहकर आस-पास के जमा लोगों को समझा कर हटाया।
सब अपने-अपने घर चले गए। सुगिया के परिवार वाले भर रह गए। उसका बड़ा बेटा रोहित चाय बनाने में लग गया। बाकी लोगों को भी मैंने समझा कर इधर उधर कर दिया। मेरी पत्नी सुगिया के साथ उसके कमरे में चली गईं। उसके कपड़े वगैरह बदले गए और उसे बिस्तर पर लिटा दिया। अब तक रोहित चाय ले आया था, चाय हाथ में लेकर मैं भी सुगिया के कमरे में चला गया।
यह तो स्पष्ट लग रहा था कि किसी भी हालत में ढिबरी हाथ से छूटकर गिर भी जाए तो कपड़े में लाग लगने की संभावना कम ही रहती है। और फिर तड़के सुबह जब लोग या तो टॉर्च लेकर निकलते हैं या फिर बिजली का स्विच ऑन करते हैं उस समय ढिबरी का क्या प्रयोजन? संदेह की बात तो है ही, उसका परिवार हर प्रकार से सम्पन्न था। घर में किसी भी सुख-सुविधा की कमी भी नहीं थी। पति भी विदेश में रहते हैं वहाँ से भी धन आगमन ठीक-ठाक ही हो जाता है। मुझे तो किसी भी कोण से ऐसा नहीं लग रहा कि कि आत्महत्या के प्रयास का कोई कारण होगा। पर कुछ न कुछ तो था ही जिसके कारण वह जल कर मरने को उद्दत थी।
“लो चाय पी लो। तुम्हारे बेटे ने बड़े ही प्यार से बनाया है। और फिर इसके बाद ठंड लगनी भी कम हो जाएगी। ”- मैंने कहा।
वह बिस्तर से उठने का प्रयास करने लगी। मेरी पत्नी से उसे सहारा देकर बैठाया और फिर धीरे-धीरे बुझे मन से वह चाय पीने लगी। हम सब चुप रहे। चाय खत्म होने तक किसी ने कुछ भी नहीं कहा ना ही पूछा। बस एकटक उसे ही देखते रहे। उसके मन में चल रहे मनोभावों को उसके चेहरे पर पढ़ने का प्रयास करते रहे।
चाय खत्म होते ही उसके सिर पर हाथ फेरते हुए मेरी पत्नी ने उससे पूछा, ‘ऐसी क्या बात हो गई कि तुम अचानक यहाँ तक पहुँच गई? सदा खेलते, मुसकुराते रहती थी। कभी चेहरे पर कोई भाव नहीं देखा गया। कहाँ छुपाये बैठे थी इस जहर को जो आज निकल पड़ा। यदि समय पर रोहित नहीं होता तो आज तो तुम उसे अनाथ करने चली थी। तुम्हारे बाद उसका क्या होगा यह कभी सोचा है तूने। पगली कहीं की!”
कुछ बात थी तो बोल दिया होता। हम सब तुम्हारे अपने ही तो हैं !
अचानक दहाड़े मारकर रोने लगी। लग रहा था जैसे आँसुओं का समंदर फटकर बहने के लिए काफी पहने से ही मचल रहा था। आज उसे मौका मिल गया।
हमने उसे रो लेने दिया। रो लेने से मन का बोझ हल्का भी हो जाता है। इसी बहाने उसे मानसिक शांति मिल जाएगी।
हमने उसे रोने से रोकने का कोई भी प्रयास नहीं किया। जब रो चुकी और अब उसका मन कुछ हल्का होने लगा तब हमें पुनः उससे बात शुरू की।
उसने जो बताया वह कुछ ऐसा था -
आज से लगभग 12 वर्ष पहले की बात है। उस समय 18 वर्ष की थी। पिताजी की आर्थिक हालत कुछ खास अच्छी नहीं थी। बेटियों के विवाह कर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होने की सोच रहे थे। इसी बीच उनका परिचय ससुरजी से हुआ। बातों-बातों में दोनों लोगों ने आपस में रिश्तेदार बनने की बात की। देखते-देखते विवाह हो गया और फिर विदा हो कर आई।
शुरु -शुरु में जीवन बड़ा खुशहाल गुजरा। दो वर्ष बीत गए। इस बीच रोहित का जन्म हो गया। हर सुख सुविधा के बीच समय आगे बढ़ता जा रहा था कि अचानक पतिदेव ने फरमान सुनाया कि मैं अब नौकरी करने विदेश जाना चाहता हूँ।
यह खबर सुनकर मिली जुली प्रतिक्रिया हुई। कुछ लोग खुश हुए तो कुछ आश्चर्यचकित पर सुगिया पर तो मानो बज़्रपात हो गया। जब किसी चीज की घर में कमी नहीं तो फिर बाहर जाकर क्या करोगे। वैसे भी क्या ऐसा काम मिलेगा भला जो घर के सुख और अन्य सुविधाओं से बड़ा हो।
पर उसके ऊपर तो मानों भूत सवार था। गाँव के उसके हमउम्र लगभग हर युवा नौकरी या व्यापार करने विदेश चला गया था। अब युवाओं में तो यही होता है कि एक दूसरे को देखकर अपने भविष्य की बात सोचते हैं। इन्होंने भी उसी प्रभाव में जाने का निर्णय कर लिया था। पिताजी ने भी बहुत समझाया। सारी गणित समझा दिया कि विदेश जाकर कोई लाभ नहीं होगा बल्कि अपने घर से ही पैसा खर्च हो जाता है। पर जब न माने तो पासपोर्ट बना और जाने की तैयारी शुरू हो गई।
अब कोई वर्किंग वीजा तो था नहीं। शुरू-शुरू में सभी टूरिस्ट वीजा लेकर जाते हैं। तीन महीने रहे, मन लग गया तो रोकने का प्रयास करते हैं। न लग सका तो फिर घर वापस आ जाते हैं। जैसे सब जाते हैं वैसे इन्होंने भी जाना तय किया।
वीजा लगा और एक दिन बेद
र्दी की तरह सबसे मुँह मोड़कर विदेश रवाना हो गए। सबने सोचा था कि एक दो महीने घूम-फिरकर वापस आ जाएंगे लेकिन जब तीसरा महीना चढ़ा तो दिल में हुक सी उठने लगी। बार-बार मन कहता कि ‘अब ई ना आइ हैं’।
वैसे भी गाँव में यह कहावत आम थी कि जो कलकत्ता -आसाम जाता है, वहाँ की औरतें उसे भेड़-बकरी बनाकर रख लेती हैं। फिर कभी वापस नहीं आ पाता। यही हाल विदेश के बारे में भी कहा जाता है कि एक बार जो अपनी धरती छोड़कर गया वह फिर उसी देश का होकर रह जाता है।
टूरिस्ट वीजा की मियाद पूरी होते ही दो उपाय है या तो किसी कंपनी में नौकरी कर लो तो कंपनी वाले ही हर साल वीजा की मियाद आगे बढ़ा देते हैं। अधिकांश मामलों में यह नहीं हो पाता है। फिर लोग दूसरा और आसान तरीका अपनाते हैं। वहाँ की कोई गोरी-छोरी देखकर पटाकर उससे शादी कर लेते हैं। अब शादी के नाम पर हर साल वीजा की मियाद वह मुई नइकी दुलहिनिया बढ़वाती रहती है। यह तो कउरु कमक्षा से भी ज्यादा कठिन है। “जब एक बार विदेशी मेम मिल गई तो हम देसी दुलहिन के कौन पूछे।“
वही उनके साथ भी हुआ। किसी कंपनी में वीजा बढ़वाने का इंतजाम न हो सका तो वहाँ शादी ही कर डाली। हाँ, ईमानदार थे इस मामले में कि अपने पिताजी से बोल दिए, ‘पिताजी, हम केवल यहाँ रुकने के लिए ही शादी किए हैं। वह लड़की अपना खर्चा लेकर चली गई। अब जब वीजा फिर से रिनु करना होगा तब उसको खोजेंगे और फिर जो लेना-देना होगा वह ले-देकर वीजा की मियाद बढ़ती रहेगी। गाँव का सब लड़का लोग इहे बोलता है। तो सब विश्वास कर भी लेते हैं।
सुगिया के जैसे कई महिलाओं के पति अब विदेश में जाकर बस गए हैं। दो-चार साल में एक बार आते हैं। कुछ दिन रहे, भूल-भुलैया सी बातें किए। फुसलाने के लिए कुछ कॉस्मेटिक और कुछ गहना भेंट किए, कुछ पैसा भी दिए और फिर एक दिन फुर्र से उड़ गए अपने उ विदेशी मेम के पास।
एक दो साल तो इंतजार में बीता पर अब ऐसा लगने लगा कि चलो दो-चार साल कमाने के बाद वापस अपने घर आ जाएंगे लेकिन साल की रेखा बढ़ती जा रही थी।
विदेशी दामाद पाने के लालच में बाप लोग अपनी बेटियों को ससुराल की जिमीदारी उठाने के लिए भेज देते हैं। दामाद वहाँ नई मेम के साथ रहे, हर सुख भोगे और हमें अपने घर की जिमीदारी उठाने के लिए ‘पेड लेबर’ बनाकर छोड़ गए। रीति भी यही है। गाँव में कमाई का कोई साधन है नहीं। अपने शहर में मच्छरदानी-भूजा बेचो तो जग हँसाई होगी पर विदेश में कौन देखता है। झाड़ू मारो, भूजा बेचो या जो मर्जी करो। विदेशी के नाम का एक बार टैग लग गया तो कुँवारों का दहेज भी बढ़ जाता है और फिर सम्मान भी। दुख जिसे भोगना होगा वह भोगे। न माँ-बाप को कुछ पड़ी है न ही तो पति को।
सानी-पनि सब कुछ देखते हुए कभी यह लगा ही नहीं कि विवाहिता का कुछ और सुख भी होता है। बस यही लगा कि एक खूंटी से खोलकर दूसरी खूंटी में बांध दिया गया है। यहाँ अलग से बच्चों को पालने की जिम्मेदारी और फिर जब आते थे, एक-आध और भी संतान या जाती।
सब कुछ सहते हुए भी एक अंतिम आस रहती थी कि चलो कोई बात नहीं फोन पर बात तो हो जाती है। दु-चार साल में एक बार दर्शन तो हो जाता है। और अब तो व्हाट्सअप का जमाना है रोज ही वीडियो पर बात करो। लगता है जैसे बगल में ही बैठे हों।
लेकिन यह कोई नहीं जानता कि मरद जैसे ही दूर होता है, औरत से उसकी प्रीत कम होने लगती है। और फिर जब एक और शादी कर ले, तब तो अनुमान लगाया ही जा सकता है। बड़ी मुश्किल से एक बार आए, दो दिन रुके और फिर फुर्र से चल दिए। पता लगा कि जिस औरत से शादी किए हैं उसका बच्चा बीमार है। उसके लिए जाना होगा। यहाँ हम, और मेरे बच्चे बीमारी में बिना सुई-दवाई के ही रह जाते हैं, कोई पूछने वाला नहीं रहता और ई अब उसकी पुकार पर भाग चले। अब भी यही कहते रहे कि वह अपने घर में रहती है, केवल साल में जब वीजा रिनु करना होता है तब कोर्ट में जाकर करवा देती है। पर यह बात गले से नहीं उतरी कि जब वो अलग ही रहती है तो फिर उसके बच्चे की तीमारदारी में लगने का क्या मतलब।
अब कुछ-कुछ समझ में आने लगा था। गाँव के लोग बुरा-भला न कहें और कढ़ाइल न निकाल दें इसके लिए लोग शादी करके महरी घर में छोड़ जाते हैं और वहाँ नई मेहरी लेकर मौज करते हैं। बदनामी के दर से सब यही बताते हैं कि ई केवल कान्ट्रैक्ट मैरेज होता है, इसके अलावा किसी प्रकार का संबंध नहीं होता है। लेकिन बात कुछ और ही रहती है। नहीं तो ठीक-ठाक कमाई हो जाने के बाद कोई जरूरी थोड़े ही है कि विदेश में बनकर ही रहे। अपने घर वापस या जाओ। पैसे हैं तो यहइन कुछ कारोबार कर लो। पर कोई वापस नहीं आता है। अपने देश में कोई बदनामी न हो इसके लिए वहाँ की शादी की बात को ऐसे गोल कर जाते हैं कि बस समझते रहो। दोनों ओर को बांध कर रखना चाहते हैं। चोर-चोर मौसेरे भाई की तरह यह राज सभी छुपा जाते हैं कि वहाँ भी घर कर लिए हैं।
अभी तक तो ऐसे ही विश्वास पर जी रही थी। अभी पिछले हफ्ते ओ आए थे। गलती से उनका मोबाइल लॉक नहीं था। ऐसे ही उसे देख रही थी। मोबाइल के गैलरी में घुसकर देखा तो राज पता लगी कि विदेश के शादी-शुदा जीवन कैसे होते हैं और हमारे ई पिया कौन सा गुल खिला रहे हैं। पहिले तो विश्वास नहीं हुआ पर बाद में कुछ लोगों को खोदने पर पता चला कि जो भी विदेश गया है, सब कुछ न कुछ गुल खिला रहे हैं और यहाँ अपने गाँव की मेहरी को बन बाकुर बना के छोड़ दिए हैं। कल फोन पर जब बात हुई, इस बात की पूरी पुष्टि हो गई कि पति भी मेम के पूरे ही साहब हो गए है, हमारे हाथ से निकल गए।
अब किसको दोष दें। समाज में विदेशी दामाद शान की बात होती है। सम्पन्न घराना में बेटी ब्याहना भी बड़े गर्व की बात होती है। अंदर का दुख कौन देखता है। न तो बाप न श्वसुर, बेचारे दोनों ही तो मूक दर्शक बन जाते हैं। यह समस्या केवल मेरी ही नहीं इस जिले के हजारों महिलाओं की है जो ब्याहकर आ तो गई पर उसका पति उसे खूँटे से बांधकर उड़ गया। सारी जिंदगी बेकार कर गया।
यही सब सोचते हुए मैंने सोचा कि यह जीवन तो व्यर्थ जा रहा है, अब इसे आगे बढ़ाने की क्या आवश्यकता है। नया जीवन मिलेगा तो कम-से –कम फिर ऐसी दुख तो नहीं देखूँगी। यदि फिर से लड़की का जनम मिला तो इस जन्म की बातें याद रहेंगी और फिर से बिदेशिया के फंदे में पड़ने से बच जाऊँगी। ओग कहते ही हैं कि अकाल मृत्यु वालों को पूर्व जन्म की बातें याद रहती हैं ....