क्या आप भी ऐसे हैं ?
क्या आप भी ऐसे हैं ?


कल एक बैंक गया था। इत्तेफ़ाक़न प्रबंधक के कमरे में जाना हुआ। प्रतीक्षा के दौरान मेरी नजर एक द्विभाषी मुहर(रबर स्टैम्प)पर पड़ी। द्विभाषी रूप देखकर मन बड़ा प्रसन्न हुआ। पर अचानक एक त्रुटि पर नजर गई। लिखा था 'सुल से सत्यापित' मैंने प्रबंधक महोदय का ध्यान इस तरफ आकर्षित करवाते हुए विनम्रता से कहा कि महोदय यहाँ 'सुल' के स्थान पर 'मूल' होनी चाहिये।
उन्होंने मेरी हिंदी को सही करते हुए कहा, 'मूल का अर्थ जड़ होता है। यहाँ गलत प्रयोग होगा। '
मैंने उनकी ओर देखा।
उन्होंने बड़े गर्व से फिर कहा,'अरे,गूगल में देख लीजिये आपको पता चल जाएगा। '
वो मेरी ओर ताकते रहे। शायद उन्हें मेरी मजबूरी समझ आ रही थी कि गूगल का प्रयोग तो आता नहीं होगा।
हम दोनों का अहंकार आपस मे टकराया। प्रबन्धक होने का उनका और हिंदी सेवक होने का मेरा!
मैंने भी तपाक से मोबाइल निकाला, गूगल ट्रलसलेट एप्प खोल उनके अंग्रेजी संस्करण को अनुदित कर दिखाया। इसमें original के लिये मूल ही लिखा पाया।
अब बारी बगले झांकने की उनकी थी।
उन्होंने धीरे से कहा, 'स्टम्प बनाने वाले बांग्ला भाषी हैं,उन्होंने गलती कर दी होगी। '
अपनी जीत पर मैं मन ही मन मुस्कुराया। बैठा रहा,वो झेंप न जाएं इसलिये इधर-उधर की बातें करने लगा।
गप्पे मारते रहे, बैठे रहे और फिर दो घंटे बाद घर वापस आ गया।