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Dr Sanjay Saxena

Inspirational

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Dr Sanjay Saxena

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प्रभु ने किया मार्गदर्शन

प्रभु ने किया मार्गदर्शन

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  परमजीत ने अपने दोनों हाथों को जोड़कर प्रभु को प्रणाम किया और उनके चरणों पर गिरकर अपने को कृतार्थ किया। उसकी आंखों से गिरने वाली अश्रु धारा ने प्रभु के चरणों को धो दिया । अपने भक्त की ऐसी दशा देखकर प्रभु.... गदगद हो उठे! उन्होंने उसे उठाकर अपनी बाहों में भर लिया। फिर बोले.... "वत्स परमी... तुम अपने को अकेला क्यों समझते हो? मैं हूं ना तुम्हारे साथ?सी

परमी बोला... "पर प्रभु.. आपको पुकारते पुकारते मेरा मन द्रवित हो गया और इस द्रवित हृदय का द्रव आंखों से बाहर आ गया! प्रभु जरा सोचिए इस मतलबी दुनिया में आपके सिवा मेरा है ही कौन?? अगर आप भी आने में देरी करेंगे, मेरी बात नहीं सुनेंगे तो मैं कहां जाऊंगा! अपने मन की बात किससे कहूंगा??" परमी ने प्रभु से एक ही सांस में प्रश्न किए

     " पर परमी... मैंने तो मानव के पास दिल की बात कहने और सुनने के लिए इस संसार में घर, परिवार और समाज की रचना की! तो तुम इन सभी जगहों पर अपनों से अपने दिल की बात कह सकते हो!"

   परमी बोला.... "प्रभु आप सच कहते हैं कि इंसान को अपने दिल की बात अपनों से कह लेनी चाहिए किंतु जब लोग ...भले को बुरा समझें तो वह इंसान आपके सिवा कहां जाएगा ? "

  "आज तो तुम कुछ ज्यादा ही गंभीर दिखाई देते हो परमी क्या बात है? चलो अपने मन की बात मुझसे कह दो । मैं तो तुम्हारा अपना ही हूं ना".. प्रभु ने कहा

" प्रभु आप तो अंतर्यामी हैं! आप तो सबके हैं !भला आपसे क्या छुपा है ? आप तो जानते हैं कि मैं क्यों परेशान हूं ?प्रभु परेशानी तब होती है जब आप मुझे कुछ अनजान लोगों से मिला देते हैं और मेरे हृदय में आकर मुझे उनका भला करने के लिए प्रेरित करते हैं ! मैं उन लोगों को सही राह दिखाना चाहता हूं, उनका जीवन स्तर सुधारना चाहता हूं, उनकी वैचारिक उन्नति करना चाहता हूं, उनको खुश देखना चाहता हूं, लेकिन वे लोग समय-समय पर मुझे अपशब्द कहने तक से नहीं चूकते। कभी-कभी तो उनके घर वाले मेरे चरित्र पर कीचड़ उछाल देते हैं। अब आप जरा सोचो कि किसी के साथ भला करने का यही पुरस्कार होना चाहिए क्या? और मुझे उनसे नहीं .....शिकायत तो आपसे है क्योंकि इस संसार में सब कुछ करने वाले तो आप ही हैं ना!! आपकी यह कैसी लीला है प्रभु! मैं तो एक साधारण इंसान हूं, मेरा धैर्य भी डोल जाता है प्रभु!!"

     प्रभु बोले .... "वत्स परमी जब सब कुछ मैं ही करता और कराता हूं तो तुम क्यों दुखी होते हो?? यह सब मेरी ही लीला है ! इस संसार में कुछ भी संयोग नहीं है। प्रत्येक कार्य के पीछे कारण अवश्य होता है। तुम मेरे हो... मेरे प्रिय हो ...और अपने प्रिय को मैं भला क्यों दुखी देखना चाहूंगा ! लेकिन कर्म का फल तो हर एक को भोगना ही होता है..... चाहे प्रभु हो या दास!! तुम जिन से दुखी हो उन्हें माफ कर दो ! उनको उनके कर्मों पर छोड़ दो। तुम उन्हें क्षमा करके बड़ा बनो और उनके कर्मों का हिसाब उन्हें भोगने दो !!"

    परमी ने बीच में ही टोकते हुए कहा.... "प्रभु उन्हें क्षमा करने के सिवा भला मेरे पास कोई चारा भी तो नहीं है! मैं किसी को अपशब्द कहना नहीं चाहता, किसी के चरित्र पर कीचड़ उछाल नहीं सकता ,किसी को धोखा दे नहीं सकता ,.....तो यही बचा नाकि मैं उन्हें माफ़ कर दूं।"

प्रभु बोले "परमी तुम बहुत सरल हो ...इसीलिए मुझे प्रिय हो!! मैं ही तुम्हें यह सब करने से रोकता हूं! क्योंकि तुम मेरे बेटे हो ना !! तो तुम्हें सही राह भी तो मैं ही दिखाऊंगा। कल के भाग्य का निर्माण तो आज के कर्मों द्वारा ही होता है ना। जिसने तुम्हारे साथ गलत व्यवहार किया है उसके साथ अच्छा व्यवहार तो नहीं होगा ना!! जिसने तुम्हारे चरित्र पर कीचड़ उछाला है उसके चरित्र पर भी तो उस कीचड़ के छींटे गिरेंगे ही ना । लेकिन कब..... यह मत सोचो!! अभी तो उन्होंने बीज बोया है.... फल की प्राप्ति समय पर ही होगी ना !! इस संसार में किसको क्या प्राप्त होगा यह उसके कर्मों पर निर्भर है, कर्म उसके विचारों के अधीन हैं , विचार बुद्धि के अधीन है, और बुद्धि... बुद्धि तो मुझे हरनी ही पड़ती है उस को दंड देने के लिए, उसके कर्मों का फल देने के लिए, उसको सही राह दिखाने के लिए उसको सुधारने के लिए।

    परमी बोला.... प्रभु.... यह आपकी कैसी लीला है... एक ही समय में आप न जाने कितनों की बुद्धि नियंत्रित करते हैं और फिर मनचाहा कार्य करा कर उसे दंडित या पुरस्कृत करते हैं??

  प्रभु बोले परमी अब मन को शांत करो । इन बातों को दिल से दूर कर दो और कुछ ज्यादा न सोचो। बस यह समझ लो कि जब भी किसी का व्यवहार अच्छा ना लगे मेरी शरण में आ जाया करो, मुझे अपना बनाओ, मुझसे अपनी बात करो। सच परमी बहुत अच्छा लगता है ....जब मेरे भक्त मुझसे एकांत में,शांत चित्त होकर बातें करते हैं ।

वैसे भी आजकल तो मैं भी बहुत अकेला हूं। मुझसे बात करने वाला ,अपने मन की कहने वाला ही कोई नहीं मिलता । सब व्यस्त हैं ,सब स्मार्ट जो हो गए हैं ।लेकिन तुम सरल ही रहना परमी । मैं अपना बेटा अपने से दूर करना नहीं चाहता । तुम्हें जब भी मेरी जरूरत हो मुझे याद कर लेना । मैं तुम्हारे सामने होऊंगा... उठो परमी अब उठो !!.....उठो .....उठो..... प्रभु की आवाज तेज हो रही थी !!

परमी की आंख अचानक खुल गई ....देखा तो उसके पिताजी कह रहे थे उठो परमी उठो....!!

अपने पिता को सामने देखकर परमी समझ गया कि प्रभु उसके सपने में आए थे उसका मार्गदर्शन करने!! झट से उठते हुए परमी ने अपने पिता के पैर छुए और उनके गले लग गया. सच परमी को अपने पिता में ईश्वर के दर्शन हो गए।

सच प्रभु बहुत दयालु है उसे सच्चे मन से पुकार कर तो देखिए वह आपके साथ ही है आपका अपना बनकर आपकी अपनी आत्मा के रूप में ।

बोलिए भगवान नारायण की जय।

             



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