Kanchan Shukla

Inspirational

4.5  

Kanchan Shukla

Inspirational

प्रायश्चित

प्रायश्चित

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दरवाजे की घंटी बज रही थी,, मालती जी,, आवाज सुनकर किसी तरह बिस्तर से उठी। रात से ही, उन्हें तेज़ बुखार था, उनसे उठा नहीं जा रहा था।किसी तरह वह,, उठकर दरवाजे की ओर चलीं और साथ, साथ बड़बड़ाने लगी।इतनी सुबह कौनआ गया, इतनी जल्दी, ये तो टहल कर आयेंगे नहीं।

उनके पास, घर की चाभी है,,तो घंटी क्यों बजायेगे यही कहते हुए, उन्होंने दरवाजा खोला।

तो देखा, सामने उनके घर में काम करने वाली रानी खड़ी है।उसे देखकर,मालती जी बोली, आज तुम इतनी जल्दी कैसे आ गई ॽ

उनसे खड़ा नहीं हुआ जा रहा था, वह लड़खड़ा गई,, जल्दी से रानी ने, उन्हें पकड़ लिया।

और पकड़ते ही बोली, अरे भाभी आप को तो बहुत तेज बुखार है।

आप काहे दरवाजा खोलने के लिए उठीं,ॽघर मा साहब जी नाही है काॽ मालती जी, धीरे से बोली, नहीं वह टहलने गये हैं।

जब आप की,तबीयत ठीक नहीं रही,तो साहब टहले काहे का गये। मालती जी ने कहा,, उन्हें मैंने बताया नहीं था। नहीं तो वे ना जाते, अच्छा ठीक है।

आप चल कर आराम करो, घर के काम की चिंता ना करो,,हम सब कर देबै।

ठीक है,कह कर मालती जी बिस्तर पर लेट गई। और रानी से, चाय बनाने के लिए कहा, थोड़ी देर बाद रानी चाय ल आई।

मालती जी ने, चाय पकड़ते हुए कहा, रानी तुम ने बताया नहीं, आज इतनी जल्दी कैसे आ गई।

हां भाभी, मैं तो आपको बताना भूल गईं, रानी बोली,

ओ जो,वर्मा साहब हैं ना भाभी,हम उनके यहां भी काम करत हैं। उन्होंने आज जल्दी बुलाया था, आज उन्हें अपने घर की सफाई करवाना है।

मैंने सोचा, पहले हम आप के घर का काम कर लें,तब वहां जाये नहीं तो आप के काम में देरी हो जायेगी।

मालती जी ने पूछा, वह घर की सफाई, अभी क्यों करवा रही हैं। दीपावली में तो अभी समय है, अरे नहीं भाभी,ई बात नहीं है, रानी ने कहा,

वर्मा भाभी का बेटा,बहू अब हमेशा के लिए उनके पास रहने आ रहें हैं। इस कारण उनके कमरा कि सफाई करे का है।

वर्मा भाभी कल, बहुत खुश रहीं,हम से कहत रहीं,हमार बेटा,बहू हम दोनों का बहुत ध्यान रखत है।

अब वो लोग हमारे पास ही रहेंगे,हम लोगों की तबीयत ठीक नहीं रहती है। इसलिए वो लोग अब यही रहकर हमारी सेवा करेंगे।

रानी बोली, भाभी एक बात कहें, हां कहो मालती जी ने कहा,अब आप लोग भी बहू, बेटा का यही बुलाई लो, आप की तबीयत भी तो ठीक नहीं रहती है।

इतना सुनते ही,, मालती जी नाराज़ हो गई, और कहने लगी तू यहां से जा,अपना काम कर, बहुत बोलती है।

अरे आप नाराज़ काहे का होत हौ,हम तो आप के भले के लिए कहत रहे, वरना हमें का लेना है। यह कहती हुईं रानी वहां से चली गई।

उसके जाते ही, मालती जी सोचने लगी, मैं नाहक ही उस पर नाराज़ हो गई। वह सही तो कह रहीं हैं।

पर क्या,उसका बेटा भी,यहां उन लोगों के पास हमेशा के लिए आयेगा।

वह तो जल्दी, फोन भी नहीं करता, अपने पापा से, नाराज़ रहता है, उसे अपने पापा की टोका,टाकी पसंद नहीं है।

वह हम लोगों के पास जल्दी आता नहीं, और आता है तो अपने हिस्से की जमीन, जायदाद लेने की बात करता है। वह कभी हम लोगों को अपने साथ रखने की बात नहीं करता ,उसे हम लोगों से कोई मतलब नहीं है,उसे सिर्फ हम लोगों का पैसा चाहिए।

उसकी पत्नी हर वक्त उसे भड़काती रहतीं हैं,, फिर भी मैं एक बार उससे बात करूंगी। शायद इतने दिनों में बदल गया हो और अब आने के लिए तैयार हो जाय। यह सोचते हुए, मालती जी ने अपनी आंखें बंद कर ली,आंख बंद होते ही आंखों के आंसू बाहर छलक पड़े।

जिसे उन्होंने पोंछ लिया, तभी उनके पति रवि जी,, कमरे में आ गए,आते ही उन्होंने कहा, रानी कह रहीं हैं तुम्हें तेज़ बुखार हैॽ तुम ने मुझे बताया क्यों नहीं ॽ उन्होंने घबरा के कहा, मालती जी बोली अरे थोड़ा बुखार है, ठीक हो जायेगा। घबराने की कोई बात नहीं है, आप बहुत जल्दी परेशान हो जाते हैं, इसलिए नहीं बताया था।

आप का टहलना भी तो जरूरी है,,दवा ले लूंगी बुखार ठीक हो जायेगा।

रवि बोले,, मैं तुम्हारे लिए कुछ खाने को लाता हूं। पहले तुम कुछ खा लो तब दवा लेना, मालती जी बोली ठीक है।रवि कमरे से बाहर निकल गये, वह सोचने लगी, रवि से कैसे बात करूं, वह तो बेटे का नाम सुनते ही नाराज़ हो जायेंगे।

उन्होंने ने निर्णय लिया, बात तो मैं करुंगी, यह सोचकर अपने पति के आने का इंतजार, करने लगी।

थोड़ी देर बाद रवि जी,उनका नाश्ता लेकर कमरे में आये। उन्होंने, मालती जी को नाश्ता कराया, और दवा देकर कहा,अब तुम आराम करो, उठाना नहीं, रानी से कह कर,,मैं घर के सारे काम करा लूंगा।तुम बस आराम करो, यह कह कर वे कमरे से बाहर जाने लगें,

मालती जी ने उन्हें आवाज दी, कहा कुछ देर मेरे पास आ कर बैठिए। वह मालती की बात सुनकर,, उन्हें देखने लगे,, फिर पास आकर बैठ गए।

मालती जी का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा, क्या बात है ॽ जो तुम मुझसे कहना चाहतीं हो ॽ कहो,

मालती जी ने झिझकते हुए कहा,, बात यह है कि मैं,,,,,,,,,,,,, वह कह नहीं पा रही थी।

रवि जी बोले तुम् जो कहना चाहती हो कहो, संकोच क्यों कर रही हो,, मुझसे कैसा संकोच ॽ

मालती जी, धीरे से बोली,,आप मोहन से बात करो, वह हम लोगों के पास आकर रहें, बच्चों के बिना घर कितना सुना लगता है।

रवि जी गुस्से में बोले,, तुम होश में तो हो ॽ मैं उससे बात करूंगा ॽ उस नालायक से,जो बेटे के नाम पर कलंक है।

तुम्हें याद नहीं है क्या ॽ या भूल गईं, शादी के कुछ दिन बाद ही,बेवजा झगड़ा कर के, अपनी पत्नी को लेकर चला गया।

उसने एक बार भी,, हमारे बारे में नहीं सोचा,कि हम लोग इस उम्र में अकेले कैसे करेंगे,, मैंने उसे कितना समझाया,, पर वह नहीं माना और चला गया,

मैंने तो उससे,,यह भी कहा था,कि यदि तुम नौकरी के कारण, यहां नहीं रह सकते तो,, हमें अपने साथ ले चलो,तब उसने क्या जवाब दिया थाॽ, क्या तुम ने, उसका जवाब सुना नहीं था, तुम भूल सकतीं हो, पर मैं नहीं भूला हूं,, उसने कहा था, मैं आप लोगों को अपने साथ नहीं रख सकता,, हमारी अपनी जिंदगी है।

आप लोगों ने, हमें पाल,पोस कर कोई अहसान नहीं किया है, यह तो हर मां,बाप अपने बच्चे के लिए करतें हैं। इसके बदले में हम पूरी जिंदगी, आप लोगों का बोझ नहीं उठा सकते, और वह हमारी ममता को रौंद कर चला गया था।

उसे बाद में भी कोई पछतावा नहीं हुआ,, कभी वह फोन करता है या यहां आता है, यह जानने के लिए,कि हम लोग जिन्दा भी है,कि मर गए।

अगर उसका फोन आता भी है,, तो जमीन और मकान बेचने की बात करता है। और तुम सुन लो,, मुझे उस नालायक से, कोई बात नहीं करनी है।

समझी तुम,

रवि जी फिर बोले, दूसरी तरफ कृष्णा हैं, जिसे तुमने और तुम्हारे उस नालायक बेटे ने,, बिना किसी अपराध के घर से निकाल दिया था, वह आज भी

हमारे लिए चिंता करता रहता है,, और फोन करके पूछा करता है कि हम लोग कैसे हैं, हमें किसी चीज की जरूरत तो नहीं है।

जिसे तुमने,,कभी अपना बेटा माना ही नहीं,

यह आज जो तुम,अपने बेटे के लिए तड़प रही हो, यह तुम्हारे गुनाहों का दंड है।

यह सुनकर,, मालती जी तिलमिला उठी,, और बोली हां, हां मैंने कृष्णा को, घर से निकाल दिया, तो मैं क्या करती ॽ तुम अपनी जायदाद को,, दो हिस्सों में बांट रहे थे।

जिस पर सिर्फ मेरे, बेटे का अधिकार है,, मैं अपने बेटे का हक़, किसी गैर को, कैसे देने देती।

रवि जी गुस्से में बोले, उसे ग़ैर ना कहो मालती, हमने अपनी मर्जी से उसे गोद लिया था।

अरे अब तो, भगवान से डरो,, तुम यशोदा नहीं बन सकीं, तुम सिर्फ मालती ही रहीं।

जिसके लिए तुम ने,उस निर्दोष कृष्णा पर अत्याचार किए, आज वही तुम्हारा सगा बेटा तुम को छोड़कर चला गया।

अब तो तुम ,इस सच को स्वीकार कर लो,कि वह हम लोगों से प्यार नहीं करता,उसे सिर्फ हमारे पैसे से प्यार है।

नहीं मैं यह नहीं मानूंगी, इस मे मेरे बेटे की गलती नहीं है, तुम ही उसकी तुलना मोहन से करते रहते थे, उसमें कमियां निकालते रहते थे,, बात, बात पर उसे नालायक, कहते रहते थे, इस लिए वह हमसे चिढ़ने लगा,, और अब हमारे साथ नहीं रहना चाहता।

रवि जी बोले, ठीक है मैं ही, गलत हूं,उस पर गुस्सा करता हूं, पर तुम तो उस पर,जान लुटाती हों, फिर वह तुम्हें क्यों छोड़ कर चला गया ॽ

वह तुम्हें भी फोन नहीं करता, तुम्हीं उसे फोन करती रहती हों, क्या मुझे पता नहीं है।

अगर तुम्हें ऐसा लगता है कि, वह तुम्हारी बात मान कर यहां, हमारे पास रहने के लिए आ जायेगा तो तुम, बात करके यह भी देख लो, शायद तब तुम्हारे आंख पर जो ममता का, पर्दा पड़ा है, वह उठ जाये।

इतना कह कर रवि जी गुस्से में बाहर निकल गये।

मालती ने सोच लिया,, वह अपने बेटे मोहन से बात, करेंगी, वह उसकी बात जरूर मानेगा क्योंकि वह अपनी मां से बहुत प्यार करता है,,

अब तो वह स्वयं पिता बन गया है,, इस लिए अब वह मेरी ममता को अच्छे से समझेगा।

यही सोचकर, मालती जी ने मोहन को फोन मिलाया,,उनका पूरा शरीर बुखार के कारण दर्द हो रहा था, पर वह अपना दर्द भूल गई, और बेटे से बात करने के लिए, उतावली हो रही थी।

घंटी बजती रही पर फोन उठा नहीं,, उन्होंने ने फिर मिलाया, इस बार फोन उठ गया था, उसने कहा हैलो, पर उधर से कोई, आवाज नहीं आई।

मालती जी मायूस हो गई,कि आवाज आने लगी, उन्हें सुनाई दिया,,उनका पोता कह रहा है, पापा दादीजी का फोन है। उधर से फिर आवाज सुनाई दी, इस बुढ़िया ने फोन क्यों किया है,, उसके बेटे की आवाज आई, मुझे क्या पता, अरे उस बुढ़िया की ममता आज जाग गई होगी। इस लिए उसने तुम्हें याद किया होगा।

बेटे की आवाज आई, मुझे उनकी ममता से कोई मतलब नहीं है, मुझे तो बस मेरा हिस्सा चाहिए।

मुझे डर है, कहीं वह,बुढढा अपनी जायदाद उस अनाथ कृष्णा को ना देदे।

बहू कि आवाज आई,, अरे तुम निश्चिंत रहो, जब तक वह बुढ़िया जिन्दा है वह ऐसा होने नहीं देगी।

बस उसके सामने,झूठे प्यार का नाटक किया करो,, फिर देखना सब कुछ,हमारा ही होगा।

तुम सही कह रही हो, जब हमें सब मिल जाएगा।तो

इन लोगों से, सारे सम्बन्ध खत्म कर लूंगा।

बहू ने कहा तुम सही कह रहे हो, बुढ़ापे में उनकी, सेवा कौन करेगा।

पता नही ,अभी कितने दिन जिन्दा रहे।

तभी पोता बोला, पापा फोन तो लीजिए,, फोन लेते ही मोहन चौंक गया, फोन तो आन है। मां ने तो, सभी बातें सुन लीं होगी।

फिर भी, बेशर्मी से फोन उठा लिया और बोला, क्या बात है मां, इस समय क्यों फोन किया है,,, क्या आप को पता नहीं है ,,मेरे आफिस जाने का समय है।

फिर भी आप ने इस समय फोन किया, अपनी गलती छिपाने के लिए, वह अपनी मां पर ही बरस पड़ा।

क्या बात है जल्दी कहिए, मेरी मीटिंग है।

मालती जी कुछ नहीं बोल पाई,बस धीरे से इतना कहा,, कुछ ख़ास बात नहीं है, तुम लोगों का हालचाल पूछने के लिए फोन किया था।

इतना कह कर, मालती जी ने फोन काट दिया।

फोन रखते ही, उनकी आंखों से आंसू बहने लगे, उनका फूट-फूट कर रोने को मन कर रहा था।

पर वह ऐसा नहीं कर सकतीं थीं, अगर उनके पति सुन लेते, तो वह रोने का क्या कारण बताती।

बेटे,बहू की बातें सुनकर,उनका हृदय टूट गया,जिस बेटे के प्यार में,अंधी होकर,,उन्होंने उस मासूम कृष्णा पर अत्याचार किया,जिसकी ममता में, वह इंसानियत को भी भूल गईं।

उसी बेटे के मुंह से अपने लिए, ऐसे अपमान जनक शब्द सुनकर, वह स्तंभ रह गई।

मालती जी आंखें बंद कर,, अतीत की गहराइयों में उतरती चली गई।

आज से तीस साल पहले की बात है, उनकी शादी को पांच साल हो गए थे,, पर वह अभी तक मातृत्व सुख से वंचित थीं।

मालती जी की सास,,अपने बेटे की दूसरी शादी करवाना चाहती थी,, पर उनके पति इस के लिए तैयार नहीं हुए,, क्योंकि वह मालती जी को बहुत प्यार करते थे।

इस बात से नाराज़ हो कर, मालती जी की सास गांव चलीं गईं। मालती जी भी बच्चे के लिए तड़प रही थी।

उन्होंने कई डाक्टरों को दिखाया,, सभी ने एक ही बात कही,,कि वह कभी मां नहीं बन सकतीं, हां भगवान कोई चमत्कार कर दें तो अलग बात है।

तब उन्होंने बच्चा गोद लेने का फैसला किया,, और

अनाथालय से, एक बच्चे को कानूनी रूप से गोद ले लिया। उन्होंने उस बच्चे का नाम बड़े प्यार से कृष्णा रखा,, क्योंकि वह उनकी, यशोदा मां जो थी।

रवि जी ने,,अपनी मां से बच्चे को गोद लेने की बात बताई,, उन्होंने ने नाराज़ हो कर कहा,,मेरा उस बच्चे से कोई मतलब नहीं है, पता नहीं उसकी रगो में किसका खून है, मैं कभी भी उसे अपना पोता नहीं मानूंगी और ना कभी शहर तुम लोगों के पास आऊंगी।

इस बात के लिए मैं,, तुम दोनों को कभी माफ नहीं करूंगी। और उसके बाद मालती जी की सास कभी शहर नहीं आईं।

समय अपनी रफ़्तार से दौड़ता रहा,, देखते, देखते तीन साल बीत गए। कृष्णा उन लोगों की जान बन गया,, उसके बिना दोनों पति-पत्नी एक पल भी नहीं रह पाते थे,, रवि जी कभी, कभी को छेड़ते और उसे, कृष्णा की, यशोदा मैया कह कर बुलाते,, तो मालती जी भी जबाव में यहीं कहती,, मैं कृष्णा की यशोदा मैया हूं तो आप भी तो कृष्णा के नंद बाबा हो।

और दोनों एक साथ हंसने लगते,, एक दिन मालती जी,,कृष्णा का एडमिशन करवाने स्कूल गई, वहीं उनको चक्कर आ गया,, और वह बेहोश हो कर गिर पड़ी।

कृष्णा ने रोते हुए रवि जी को फोन किया और सारी बात बताई,, रवि जी, तुरंत वहां पहुंचे,, और मालती जी को डाक्टर के पास ले गए। वहां डाक्टर ने, चेकअप के बाद बताया कि, आप कि पत्नी मां बनने वाली हैं।

जब यह बात मालती जी ने सुनी तो उन्हें अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ। मालती जी ने अपने पति से कहा,, ईश्वर ने हमारी विनती सुन लीं,, यह चमत्कार कृष्णा के आने से हुआ है,, और उन्होंने ने कृष्णा को अपने बाहों में भर लिया,, उससे कहने लगी, कृष्णा अब बहुत जल्दी तुम्हारे साथ खेलने के लिए तुम्हारा छोटा-सा भैया आने वाला है।

कृष्णा यह सुनकर खुशी से उछल कर ताली बजाकर कहने लगा,मेरा छोटा भाई आएगा,मेरा छोटा भाई आएगा। दोनों पति-पत्नी कृष्णा की खुशी देख कर मुस्कुरा उठें।

रवि जी ने,, यह खुशखबरी अपनी मां को सुनाई,, यह खुशी की खबर सुनकर वह अपनी सारी नाराजगी भूल कर शहर आ गई।

मां के आ जाने से,, दोनों पति-पत्नी बहुत खुश हो गऐ। पर उन लोगों को एक ही बात दुखी करती,,

कृष्णा के साथ उनका बर्ताव।

क्योंकि कृष्णा के साथ उनका व्यवहार अच्छा नहीं था। मालती जी कीसास ,,बात, बात पर उस मासूम के साथ दुर्व्यवहार किया करतीं।

यह देखकर रवि और मालती दुखी हो जातें,,, रवि जी अपनी मां को बहुत समझाते,, कहते मां, इस मासूम को आप क्यों हर समय बुरा, भला कहती रहती हैं।

इस मासूम बच्चे की क्या गलती है।हमने इसे गोद लिया है। अब यह आप का पोता है,, आप इस बच्चे की दादी है।

उन्हे कोई बात समझ में नहीं आती, और गुस्से में कहती, मैं इसे अपना पोता नहीं मानूंगी,,जो बच्चा मेरी,बहू की कोख से पैदा होगा,, वहीं मेरा पोता होगा।

रवि जी ने उनसे हार मान ली और, कुछ भी कहना छोड़ दिया। पर उनकी मां, अपनी आदत से बाज नहीं आ रही थी। वह मालती को कृष्णा के खिलाफ,, भड़काती रहतीं। इस का असर मालती पर होने लगा।

रवि देख रहे थे,कि अब मालती कृष्णा का उतना ध्यान नहीं रखती थी,, जितना वह पहले रखती थी।

रवि जी ने,मालती को इसके लिए टोका तो मां ने, हंगामा मचा दिया। और मालती भी कहने लगी,,अब मुझसे इतना काम नहीं होता,,जो इसके नखरें उठाती फिरू ।

रवि जी चुप हो गए,, पर उनका मन आशंका से भर गया,कि आगे चलकर कृष्णा के जीवन में परेशानी आ सकती हैं।

जल्दी ही वह समय भी आ गया,, जब मालती ने एक प्यारे से बेटे को जन्म दिया। घर के सभी लोग बहुत खुश थे,, कृष्णा तो खुशी से नाच रहा था।

मालती अस्पताल से घर लौट आईं,, वह अपने बच्चे के साथ,कमरे में आराम कर रहीं थी, तभी वहां कृष्णा आ गया और बच्चे को छूकर देखने लगा, मालती ने उसे छूने के लिए मना किया पर वह नहीं माना,, वह बच्चे के साथ खेलना चाहता था।

तभी कमरे में मालती की सास आ गई,, उन्होंने कृष्णा का हाथ पकड़ कर उसे कमरे से बाहर फेंक दिया, और चिल्ला कर कहा, खबरदार जो आज के बाद मेरे पोते के पास आया,,अनाथ कहीं का, और कमरे का दरवाज़ा बंद कर लिया।

कृष्णा रोने लगा, उसके घुटनों में चोट आई थी,, उसमें से खून निकल रहा था।

तभी रवि जी आ गये,, उसे रोता देखकर गोद में उठा लिया, और उसे प्यार करने लगे, फिर पूछा तुम गिर कैसे गये, कृष्णा ने रोते हुए बताया,, नहीं पापा मैं गिरा नहीं, मुझे दादाजी ने, कमरे से बाहर फेंक दिया,,

और पूछने लगा, पापा अनाथ क्या होता है,।

रवि जी बोले, यह तुम से किसने कहा,,

कृष्णा ने उत्तर दिया, दादी ने, और उन्होंने कहा तुम अनाथ हो, तुम हमारे घर के बच्चे नहीं हो, तुम्हें सड़क से, उठा कर लाया गया है।

क्या यह सच है पापा, आप मुझे सड़क से उठा कर लाये है। नहीं बेटा, तुम मेरे बेटे हो,दादी ने गुस्से में कह दिया होगा। चलों मैं तुम्हें दवा लगा दूं, और तुम्हारी मम्मी कहां है।।

कृष्णा ने कहा दादी के पास, रवि जी ने कृष्णा से कहा तुम यहीं खेलों, मैं अभी आता हूं। यह कह कर वे कमरे से बाहर निकल गये।

और सीधे मालती के पास पहुंचे, और गुस्से में मां से बोले,, आप ने बच्चे से ऐसी बातें क्यों की, अगर आप को यही सब करना है तो, आप गांव चली जाईऐ।

मां के कुछ बोलने के पहले ही, मालती जी बोली, आप मां पर नाराज़ क्यों,हो रहें हैं, मां ने ग़लत क्या कहा है।

मां गांव नहीं जायेगी, आप कृष्णा को क्यों नहीं घर से निकाल देते। रवि जी आश्चर्य से मालती जी का चेहरा देखने लगे।।

वह समझ गये, अब कुछ भी कहना बेकार है।

बस उन्होंने इतना ही कहा, कृष्णा कहीं नहीं जायेगा।

आज के बाद,तुम दोनों उस बच्चे से दूर ही रहना।

यह कह कर बाहर चले गए,,

धीरे-धीरे समय बीतता गया, बच्चे बड़े होने लगे,, जहां एक ओर, कृष्णा पढ़ने लिखने में, बहुत ही होशियार था। वही दूसरी ओर मोहन को मां और दादी के प्यार ने बिगाड़ दिया था।

धीरे-धीरे मोहन बुरी संगत में पड़ गया,।

एक दिन तो हद हो गई, जब मोहन को पुलिस ने जुआ खेलते हुए पकड़ लिया, और जेल में डाल दिया।

जब रवि जी को इस बात का पता लगा तो उन्होंने कहा मैं,उस नालायक को जेल से नहीं निकालूंगा।

पर कृष्णा के कहने पर, उन्होंने उसे जेल से बाहर निकाला, और सक्त हिदायत दी, यदि मोहन नहीं सुधरेगा तो वह उसे, घर से बाहर निकाल देंगे।

यह सुनकर रवि जी की मां और मालती ने कहां ,,यह सब कृष्णा का सिखाया हुआ है,, वह मोहन को घर से निकाल कर ,,इस घर पर ,,अपना कब्जा जमाना चाहता है।

उस दिन के बाद मोहन मे कुछ सुधार आया,,अब वह पढ़ने लगा। लेकिन मोहन मे एक नया परिवर्तन हुआ,, वह बात बात पर कृष्णा से झगड़ने और मारपीट करने लगा।

घर का वातावरण और खराब होने लगा,, इस बात से रवि जी बहुत ही परेशान रहने लगे।उनकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे।

तभी उन्हें पता कि कृष्णा की बहुत अच्छी नौकरी लग गई। अब उन्हें एक रास्ता मिल गया। उन्होंने एक फैसला किया कि कृष्णा की शादी करके,,उसे अपनी आधी जायदाद देकर अलग कर देगे।

जिससे वह इस नरक से बाहर निकल सकें,, पर जब इस बात की जानकारी मालती जी को हुई तो,, उन्होंने ने कृष्णा को थप्पड़ मारते हुए कहा,, तूं तो एहसान फरामोश निकाला जिस थाली में खाया उसी में छेद करने लगा।

कृष्णा को मालती जी की बात समझ नहीं आईं,, उसने पूछा, मैंने क्या किया है मां ॽ मालती चिल्ला उठी और कहा, मुझे मां ना कहो,तू मेरा बेटा नहीं है।

बल्कि तू मेरे बेटे का दुश्मन है,, उसके हिस्से की जायदाद,तू ले रहा। पर मैं ऐसा होने नहीं दूंगी।

यह सारी प्रापर्टी, मेरे बेटे की है और उसी की रहेगी।

कृष्णा ने कहा,, मां मुझे कुछ नहीं चाहिए,, मैं सच कह रहा हूं।

मुझे सिर्फ आप का प्यार चाहिए,, और कुछ भी नहीं,,

मालती जी व्यंग्य से बोली,, तो तूं यह घर छोड़कर चला क्यों नहीं जाता।

तू यहां से जायेगा थोड़ी,, तुझे तो इस घर का हिस्सा चाहिए। पर इस घर में तुझे हिस्सा मेरे मरने के बाद ही मिलेगा। मेरे जिन्दा रहते नहीं।

ऐसी बातें सुनकर कृष्णा रोने लगा, और बोला नहीं मां ऐसा ना कहिए, मैं यह घर छोड़कर जा रहा हूं।

मैं आज भी आप का बेटा हूं,, और हमेशा रहूंगा।

आप जब भी मुझे बुलाएगी मैं आ जाऊंगा। उसने सब को प्रणाम किया और जाने लगा,, रवि जी ने उसे रोक कर कहा तुम इस घर से जा रहें हों, कृष्णा पर मेरे दिल में हमेशा रहोगे।जाओ इस नरक से निकल जाओ,, तुम जहां भी रहोगे, तुम्हारे पापा तुम से मिलने आते रहेंगे।

वह रवि के कदमों में जैसे झुका, रवि ने उठाकर उसे अपने सीने से लगा लिया। कुछ देर रवि से लिपटा वह खड़ा रहा, फिर उनसे अलग होकर,,

इस घर से हमेशा के लिए चला गया। समय अपनी गति से बढ़ता रहा,, कृष्णा ने अपना एक घर ले लिया, और अपने साथ काम करने वाली गीता से शादी कर ली उसके दो प्यारे से बच्चे भी हैं।

रवि बीच, बीच में कृष्णा से मिलने जाते रहते हैं।।

इधर मोहन को भी नौकरी मिल गई, पर उसके दिल में अपने माता-पिता के लिए कोई प्यार या सम्मान नहीं था।

रवि जी यह समझते थे कि उसे सिर्फ पैसे से प्यार है, पर मालती जी, यह बात मानने को तैयार नहीं थीं।

इसी बीच मालती जी की सास की मौत हो गई,।

समय पंख लगाकर उड़ता रहा,, मोहन कि भी शादी हो गई। पर जिसके लिए मालती जी ने कृष्णा और रवि का इतना दिल दुखाया, वहीं बेटा अपनी पत्नी के कहने पर, यह घर छोड़कर चला गया।

उसके जाने के बाद भी मालती जी को लगता कि उनका मोहन उन्हें मजबूरी में छोड़कर गया है।

वह आज भी उन्हें बहुत प्यार करता है, पर उनका यह भ्रम आज उसके बेटे ने तोड़ दिया।

मालती जी अतीत से वर्तमान में लौट आईं,, और सोचने लगी यह दंड तो मुझे मिलना ही चाहिए। क्योंकि वह अपने कृष्णा की यशोदा नहीं बन सकीं,, पर कृष्णा, यशोदा का कृष्णा बना रहा।

अब उनके आंसू सूख गए थे,, अचानक मालती जी के चेहरे पर दृढ़ता आ गई।। वह उठी फोन उठा कर किसी से बात की, और निश्चित होकर सो गई।

शाम को दरवाजे की घंटी की आवाज़ सुनकर, उनकी नींद खुली। वह बिस्तर पर लेटी रही,, तभी रवि कमरे में आये और कहा,, कैलाश आया है, उसने कहा तुमने उसे बुलाया है,, हां मैंने बुलाया है।

उन्हे बैठाईऐ मैं अभी आती हूं,, रवि ने कहा तुम्हें आज वकील की क्यों जरुरत पड़ गई।

मालती जी ने गम्भीरता से कहा, आप चल कर उनके पास बैठीऐ मैं वहीं आकर बताती हूं।

यह कहकर वह, बाथरूम में चली गई।

कुछ देर बाद वह उन लोगों के पास पहुंचीं,, कैलाश जी ने उन्हें नमस्कार किया, और कहा क्या बात है भाभीॽ आप ने मुझे क्यों बुलाया है, उन्होंने बहुत गम्भीरता पूर्वक कहा, मैं आज और अभी अपनी वसीयत बनवाना चाहती हूं।

रवि जी चौंक कर बोलें, क्या ॽ तुम ने मुझे बताया भी नहीं, मालती जी ने जैसे सुना ही नहीं। और कैलाश से कहने लगी,,भाई साहब मैं अपनी पूरी प्रापर्टी कृष्णा के नाम करना चाहती हूं।

ऐसी वसीयत तैयार किजिए। रवि जी और कैलाश उनका चेहरा देखने लगे,, वह रवि की ओर मुखातिब होकर कहने लगी, आप सही कहते थे मैं ग़लत थी।

मैंने मां शब्द को ही कलंकित कर दिया,, मैं अपने कृष्णा की, यशोदा नहीं बन सकी अपने कृष्णा को भूल गईं, पर मेरा कृष्णा अपनी यशोदा मां को नहीं भूला,,

मैं अपने कृष्णा की शादी तो नहीं कर सकीं, पर अब मैं अपनी बहू का उसके अपने घर में गृह प्रवेश जरूर करूंगी।

आप जा कर उन्हें यहां लाने की तैयारी कीजिए,, यही मेरा प्रायश्चित होगा।

रवि जी ने बहुत, प्यार से मालती को देखा, और बोलें आज मैं बहुत खुश हूं, क्योंकि आज मुझे अपनी पहले वाली ,,मालती वापस मिल गई,, आज मुझे  ईश्वर ने दोहरी खुशी दी है, मुझे मेरी पत्नी और बेटा दोनों मिल गए। तभी कैलाश जी बोले, यह खुशी एक वकील ने दी हैं, इस लिए भाभी जी मेरी फीस तो बनती है। फिर तीनों एक साथ हंसने लगे और पूरा घर, खुशियों से महकने लगा।



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