प्राइमरी का मास्टर
प्राइमरी का मास्टर


जूही गोबर पाथ कर उठी ही थी कि सामने बाबू साहब जैसा कोई नौजवान आकर खड़ा हुआ। आंखों पर चश्मा और सिर पर टोपी, यह प्राइमरी का मास्टर था। नयी नौकरी और शहर की आबोहवा का मालिक गांव की अजनबी परंपरा से अंजान, हाथ में सत्तर किलो का बैग लटकाए हांफ रहा था।
गोबर सने हाथ की कोहनी से मुंह का पसीना पोंछकर जूही ने झेंपते हुए पूछा - "बाबूजी से काम है क्या? "
गांव की लडकियां भी सुंदर होती हैं सोच कर सूरज ने अपने मास्टर होने की बात बताई और किराये वाले घर की मांग की। सोलह साल की लड़की फिजूल का लजाकर भीतर जाते हुए बोली- "आप तखत पर बैठ जाइए, मैं पानी लाती हूँ। "
आम के नीचे तखत पर बैग रखकर सूरज रूमाल से पसीना पोंछते हुए बैठ गया।
जूही कटोरी में चीनी और पानी लाकर बोली - "मास्टर जी बिस्कुट खतम हो गया है इसलिए चीनी से पानी पी लीजिए। "
सूरज ओढ़नी से मुंह ढके जूही की तरफ देखकर अदब से मुस्कुराया और पानी पी गया। पच्चीस साल के सूरज की गांव में मास्टर होने की वजह से बड़ी इज्जत हुई। गांव के कोने में उसे एक कमरा मिल गया। अब सुबह स्कूल जाता, शाम को बच्चों को मुफ्त में पढा़ता और कुछ देर घूमने के बाद रात होते होते खाने की तैयारी में लग जाता। इस बीच वह जूही के घर भी घूम आया करता। यहां तक कि वह जूही के बाबूजी से बतियाते हुए वहीं खाकर सो जाता। जूही के घर में अब तीसरी बहन ब्याह लायक यही बची थी। बाबूजी गांजा पीकर जीवन काटते जा रहे थे। पैसे के मामले में गांव के सबसे गरीब आदमी थे मगर दिल महल जैसा।
जबसे जाना था कि सूरज उन्ही की बिरादरी का है तब से उसका खाना यहीं यहीं बनने लगा था।
सूरज कितना भी मना कर ले जूही की लज्जाशील आग्रह के आगे हार जाता। बिना बोझ बने जूही के बाबूजी के गुस्से पर भी वह साग सब्जी, आटा चावल आदि की सुविधा कर देता।पहली तनख्वाह से उसने जूही को कई जोड़ी नए कपड़े दिए ताकि वह अपने बहनों के सालों पुराने कपड़े न पहनें। जूही उसे पहनने में संकोच से मरी जा रही थी। नहीं, क्योंकि उसने नए कपड़े शायद ही पहनें हों इसलिए। फिर जब सूरज ने उसे डांट लगायी तब जाके उसने पहना। सूरज के लिए वह इतने मन से खाना बनाती कि उसी से मोक्ष मिल जाता। कभी कभी वह बिना बताए सूरज के कपड़े धुल आती, झाडू पोछा कर आती।
जब शाम को सूरज खाने आता तो उसे बुलाकर उसके हाथ में रूपये थमा देता और रुकता इसलिए नहीं कि रात में दिए हुए पैसे उसकी जेब में वापस आ जाते। इतवार की छुट्टी के दिन सूरज ने मुर्गे की रोस्टेड खाने क
ी इच्छा जताई। जूही ने यह पहली दफा सुना था तो सूरज साथ में बनाने को तैयार हुआ। अब वह अक्सर उसके दिए हुए पैसे से चिकन रोस्टेड बना कर खिलाती।
साल गुजर जाने के बाद जूही पढ़ने-लिखने वाली समझदार लड़की बन चुकी थी।
एक दिन वह सूरज के भेंट की सिलाई मशीन पर काम कर रही थी कि सूरज खुशी से झूमते हुए उसके सामने प्रकट हुआ और चीखा - "जूही तुम्हारी शादी पक्की हो गई। अभी चचा और मैं लड़का देख कर आ रहे हैं। "
अफसोसजनक, मर जाने वाली बात थी यह और वो भी कह कौन रहा था।
सूरज से मुंह चुरा कर वह भीतर चली गई। सूरज नादान तो था नहीं, वह बस जूही से सुनना चाहता था कि वह ब्याह नहीं करेगी मगर उसने कुछ कहा ही नहीं। गांव वाले यही कहेंगे कि रूपए खिलाकर लड़की खरीदने आया है। ऐसी स्थिति में वह अपनी तरफ से कुछ नहीं कह सकता था। क्या पता जूही एहसान का बदला समझ बैठे। खैर! लड़के वाले देख गए और शादी की तारीख रख दी गई। अब सूरज से वह कम बोलती थी। उसका चेहरा जो शरमाकरलाल हो जाता था अब रेत की तरह थक चुकी थी। सूरज को वह सोते हुए निहार लिया करती, वह खरीददारी करवाने जूही के बाबूजी के साथ बाजार जाता और जब जूही उसे देखने के लिए बैचैन हो जाती तो निडर, बेझिझक वह खाना लेकर स्कूल पंहुच जाती।
शादी का दिन आ गया। सूरज अपने घर से सात आठ सौ किमी दूर किसी लड़की की शादी में अपने इतने दिनों की आधी कमाई उड़ा रहा था, उसके एक नहीं कई कारण थे। बारात करीब आ गयी थी। किसी लड़की ने सूचित किया कि जूही सूरज को बुला रही है। सूरज उसके कमरे में गया। वह ज्यों ही भीतर घुसा जूही ने किवाड़ लगा दिया और रोकर बोली - "मास्टर जी, जैसे जैसे बरात करीब आ रही है मेरी जान निकलती जा रही है। "वह फफक कर सूरज के पैरों में गिर पड़ी।सूरज कांपने लगा, उसका कलेजा धक से कर गया। कोई बात स्पष्ट नहीं थी फिर भी सूरज ने कहा - "मैं जानता हूँ तुम्हें, पर तुमने देर कर दिया,मेरे दिल में तुम्हारी जगह कोई नहीं ले सकता। "
जूही उठी और सीधे उसके सीने से लिपट गई। बेबस, लाचार सूरज को उसी वक्त इतनी शक्ति मिल गई कि वह चाहे तो शादी रुकवा सकता था। किंतु शादी कोई फिल्मी या गुड्डे गाड़ियों का खेल नहीं जिसे चुटकी में मोड़ दिया जाए। सूरज ने आंसुओं को छिपाकर जूही को समझाया कि वह तो शादीशुदा है और नादान जूही उसकी झूठी बात पर यकीन कर गयी।
अगले दिन जूही सूरज की रूह लेकर विदा हो गई और सूरज रेत के समंदर में गश खाकर जीवन भर के लिए गिर गया।
उगता सूरज कब ढला खुद उसे भी पता नहीं चल सका।