काना आदमी
काना आदमी
काने का दिल काना नहीं होता मगर जमाना इतना खराब है कि उसके सपाट दिल को भी काना बनाने में चूकता नहीं। कानू को काना काना कहकर ही कानू कर दिया गया था।
सरल हृदय का कानून हमेशा अपने नाम से चिढ़ता था क्योंकि उसके नाम में संतोष नहीं था, सुख नहीं था और गर्व नहीं था! थी तो सिर्फ गिलानी और अपमान।
गांव में सबसे पहले हवाई जहाज वही देखता था। सबसे अच्छी गुलेल वही चलाता था मगर हंसी किसकी रोक लोगे जब काने हो।
इसलिए कानू ने अपना नाम बदलकर कन्हैया रख लिया, इस पर भी पूरा गांव हंसा; किसी के नाम पूछने पर वह कन्हैया ही बताता किंतु रस्सी का बल नहीं जाता।
एक दिन वह जंगल में जाकर खूब रोया, खूब रोया इतना रोया कि उसकी काानी आंख भी आंसुओं से भर गई फिर उसे उपाय सूझा कि अब चश्मा लगाएगा, लेकिन चश्मा लगाना भी काम नहीं आया; लोगों ने उसे कनुआ हीरो कहा।
कई दिन से जुटाए 40 रूपये के चश्मे को सुने पैरों तले कुचल दिया।उसकी आदत कानू में ढल चुकी थी वह कोई इज्जत का काम सीखना चाहता था इसलिए वह पप्पू दर्जी के पास सिलाई सीखने गया, मगर दिल उसका तक टूटा जब वह काम मांगने गया और उसे कानू कह कर भगा दिया गया।
अब वह पूरे गांव वालों से नफरत करने लगा।
ए
क दिन पूरा गांव रात के अंधेरे में डुबकी लगाकर सो रहा था और कानू अपना खेत रखा रहा था रात को नीलगाय आकर चर जाती थी इसलिए ।
एक पेड़ पर बैठा वह गुलेल से नील गायों के ऊपर हमला कर देता इसमें उसे मजा भी आता, एकाएक उसने देखा कि चांदनी रात में एक तेंदुआ दबे पांव एक झोपड़ी की तरफ बढ़ रहा था।
उसने गुलेल तानी मगर पीछे हटा लिया, यह सोच कर कि गांव वाले उसका मजाक उड़ाते हैं वह चुपचाप नजरें फेर कर अपने खेतों पर ध्यान देने लगा सहसा झोपड़ी से चीख निकली, ध्वनि इतनी तेज थी कि उसका दिल दहल गया।
फौरन पेड़ से नीचे उतरा और फिर किसी और झोपड़ी के पीछे भागा। तेंदुआ बकरी के बच्चे को घसीटता बाहर निकला और ज्योंही कानू के नजरों में आया कानूने गुलेल से गोलियों की बौछार करने लगा।
गांव भर में शोर हो गया- तेंदुआ, तेंदुआ, तेंदुआ!
तब तक वह बकरी को घसीटता कुछ तो कुछ दूर भागा मगर कानू का वार सहा नहीं पाया तो वह बकरी को छोड़कर भाग गया।
कुछ ही देर में लाठी और डंडो के साथ पूरे गांव वाले इकट्ठा हो गये।
कानू भाग कर घर चला आया।
और सुबह उठा तो चारों तरफ कानू कानू कानू बरस रहा था। मगर इस वाले कानू में सुख था, संतुष्टि थी और गर्व था।