ANURAG KISHOR

Romance

3.8  

ANURAG KISHOR

Romance

ऐसा भी होता है

ऐसा भी होता है

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उसके मोहल्ले में एक नयी लड़की आई थी।

नाम था कनक, पर उसके हमउम्र के बच्चे उसे कन्नू कहकर बुलाते तो सुधीर का जी जल जाता था। 

सुधीर कनक से 8 साल बडा़ था। वह कालेज जाता और कनक स्कूल, जो एक ही रास्ते पर पडता था। कनक 17की उम्र की खिलडांदी लड़की थी। दिमाग आधा बालपन था और आधा जवान और यही उसके कश्मकश की वजह थी। 

मोहल्ले के हमउम्रों के साथ खेलते वक्त लोभ, मोह, माया से घिरी थी किन्तु अपने से बडों के साथ वाजिब सुलूक करती थी। 

पहले ही दिन सुधीर उस पर मोह गया था। 

उसी दिन एक लड़के ने जब उसे कन्नू कहा तो कोने में बुलाकर सुधीर ने उसकी कनपटी झांझर कर दी। 

बाद में पता चला कि सुधीर ने उसके ही (कनक) भाई गोलू को बजा दिया था। 

कनक उससे भिड़ गयी और काॅलर पकड़ कर मारने का जवाब मांगने लगी तो बेचारे का मुंह सूख कर छुहारा हो गया। 

अब वह उससे मुंह चुरा कर चलता था मगर मोहब्बत बरकरार थी। 

खैर! यह ज्यादा दिन तक न चला, एकदिन कनक को उससे जरूरत पड ही गयी। भाई के जन्मदिन पर उसने केक मंगाने का जिक्र मोहल्ले में किया तो सबने सुधीर का नाम सुझाया। 

सुधीर के गेट पर खड़ी होकर उसने अंटी को बुलाया। 

सुधीर बाहर आया और कनक को देखकर झेंप गया। 

कनक ने बड़ी सुरीली आवाज में पूछा -अंकल मेरा केक ला देंगे? 

सुधीर मर जाने को सोचने लगा। उसने अपने अरमानों पर पत्थर रखकर हां कर दी।

केक लेकर वह उसके घर गया तो कनक ने केक लेकर कहा - 

भैया शाम को जरूर आना। 

असल में कनक ने अपनी मां से पूछा था कि वह सुधीर को क्या कहकर पुकारे। 

सुधीर हां बोलकर कहीं चला गया मगर यह सोचकर खुश हुआ कि कनक अंकल से भैया पर तो आयी। अगर उसके भैया कहने में भाई की कोई भावना नहीं है तो वह उसे सुधार लेगा क्योंकि आज का फैशन ही भैया कहना है। 

कई दिनों की साधारण मुलाकात के बाद सुधीर ने कनक से चिढ़ कर कह दिया कि वह उसे भैया की बजाय नाम लेकर पुकारा करे। 

कनक के वह बहुत काम आता था, इसलिए उसने बात मान तो ली, मगर लोगों के बीच में वह उसे भैया कह दिया करती थी। 

एक दिन स्कूल के रास्ते में उसने कनक से कह दिया कि वह उसे बड़ी अच्छी लगती है तो कनक सदमें में चली गई।

 उसे एहसास हो गया कि सुधीर को वह क्यों अच्छी लगती है। 

इसी दिन से उसमें गंभीरता के लक्षण देखने को मिले। 

वह अब सुधीर से कट के रहने लगी। 

सुधीर खालीपन से डरने लगा तो कनक के पास जाकर उसने माफी मांग ली, ताकि कनक पहले की तरह ही उससे घुलमिल कर रहे। मगर इसका असर नहीं हुआ, कनक सुधीर के सामने खुल कर नहीं रहती थी। 

सुधीर को जब घुटन और तनाव महसूस हुआ, तो वह पढ़ाई के बहाने दिल्ली चला गया और एक साल बाद खुश होकर वापस लौटा। 

यह मोबाइल के दौर से कुछ साल पहले की बात है। 

घर की टेरिस पर वह खड़ा उस घर को निहार रहा था जिसमें कनक रहती थी। 

तभी कनक का छोटा भाई आया और उसे एक काग़ज़ थमाकर चला गया। 

कागज़ खोलकर उसने पढा। 

साॅरी सुधीर जी, मैंने आपको जाते देखा पर हिम्मत नहीं जुटा पाई कि आपसे कह दूं। अगर आप मुझसे नाराज हैं तो माफ कर दीजिए। मैं अपनी बात कहने कहने के लिए आपका इंतजार करुंगी। 

सुधीर दौड़कर नीचे आया और सीधे कनक के घर की ओर बढ़ा कि कनक का छोटा भाई गोलू रास्ते में मिल गया। 

सुधीर ने उसे पैसे देकर उत्सुकता से पूछा कि कनक कहाँ है। 

गोलू ने बालपन की भाषा में कहा-"वह तो मर गयी !"

और भागकर चला गया। 

यह सुनते ही सुधीर बहरा, गूंगा और अंधा हो गया। उसने कागज़ खोल कर देखा और फफक पड़ा।


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