Kumar Vikrant

Comedy

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Kumar Vikrant

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पोस्टकार्ड

पोस्टकार्ड

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बिना पानी की ५० फ़ीट ऊँची टंकी पर चढ़ा बीरु हाथ में शराब की बोतल लिए अनाप-शनाप बोल कर पूरे रामगढ़ के सामने आत्महत्या की धमकी देने लगा तो बसंती और मौसी दोनों ने डर कर शादी के लिए हाँ तो कर दी लेकिन उस दिन बीरु की उस हरकत से पूरे गाँव के सामने उनकी इज्जत का दिवाला निकल गया था। अब तो रामगढ़ के महा आवारा छिछोरे भी बसंती की तरफ खा जाने वाली निगाह से देखते थे।

बसंती अच्छी तरह जानती थी कि उनकी निगाह में वो भी बीरु की तरह आवारा और बदचलन साबित हो चुकी थी। उस टंकी कांड को हुए पूरे १५ दिन गुजर चुके थे लेकिन शादी का शगुन लेकर न तो बीरु आया और न उसका सगे वाला जय।

"मौसी इस बीरु के बच्चे ने तो हद कर दी........उसे टंकी से उतरे पूरे १५ दिन हो चुके है लेकिन अब तक शादी का शगुन लाने की बात तो दूर; अब तक उन दोनों उचक्कों में से एक भी शादी की बात तक करने नहीं आया......" बसंती रूवासे स्वर में मौसी से बोली।

"सही कह रही है बिटिया तू; पूरे गाँव के सामने हमारी इज्जत खराब कर के रख दी लेकिन अब तक दोनों निट्ठले ठाकुर के घर पड़े चारपाई तोड़ रहे है........मुझे तो लगता है वो सिर्फ हमारा मजाक बनाने के लिए उस मुई टंकी पर चढ़ा था।" मौसी शाम के खाने के लिए आलू काटते हुए बोली।

"मौसी अच्छा जुलुस निकाल कर रख दिया बदमाश ने अब तो हर ऐरा-गैरा मेरे ताँगे पर चढ़ मुझसे हँसी-मजाक करने लगा है........लेकिन मै बसंती हूँ मेरे पास इन दो निखट्टुओं का और पूरे गाँव के छिछोरों का इलाज है........." बसंती गुस्से से तमतमाती हुई बोली।

"क्या करेगी बेटी तू......? कुछ गलत-शलत करेगी तो जो थोड़ी-बहुत इज्जत बची है वो भी खराब हो जाएगी......." मौसी चिंता के साथ बोली।

"मौसी तेरी बेटी ने न तो गलत-शलत काम किये है और न करेगी लेकिन इन दो निखट्टुओं की अक्ल तो ठिकाने लगाएगी ही और साथ ही गांव के सब छिछोरों को भी मजा चखा देगी......बस तू अब देखती जा।" कह कर बसंती हँस पड़ी।

"हाय राम अब इस लड़की के दिमाग के अंदर क्या चल पड़ा है?" कहकर मौसी ने अपने सिर पर हाथ मारा।

बात आई गई हो गई पंद्रह दिन और गुजर गए लेकिन कुछ भी न हुआ; न बीरु शादी का शगुन लेकर आया और न उसका दोस्त। गाँव के आवारा छिछोरे तो अब हद से ज्यादा आगे बढ़ चले थे; अब तो उनमे से रूंडा, झुन्डा और रुलदू जैसे गँवार भी रोज बसंती के ताँगे में बैठ कर उससे मोहब्बत की बाते करने लगे थे। 

दो दिन बाद डाकिया चाचा आया और बसंती के नाम का पोस्ट कार्ड देकर चला गया। पोस्ट कार्ड आने के दो घंटे बाद बीरु का दोस्त जय आया और बोला, "मौसी आज शाम बीरु और बसंती की मंगनी होनी तय हो गई है, जो थोड़ा बहुत तैयारी करनी हो कर लो; बाकी तम्बू वाला और हलवाई सब काम खुद ही देख लेंगे।

शाम होते-होते मौसी के घर पर सजावट हो गई विभिन्न प्रकार के पकवान बन गए और थोड़ी देर बाद बीरु अपने दोस्त के साथ मँगनी की अँगूठी लेकर आ गया। पूरे गाँव के सामने धूम-धाम से बीरु और बसंती की मंगनी हो गई। फिर पूरे गाँव ने दावत का मजा लिया और बीरु शराब पीकर धुत्त हो गया।

जब गाँव वाले चलने लगे तो बीरु ने रूंडा, झुन्डा और रुलदू के कॉलर पकड़ कर जमीन पर बैठा लिया और बोला, "सुनो बे बिना ढक्कन के डिब्बो, आज से मै तुम्हारा जीजा हूँ और बसंती तो तुम्हारी बहन है ही.......अगर आज के बाद बसंती या उसके ताँगे की तरफ आँख उठा कर भी देखा तो माँ कसम मै तुम्हारा खून पी जाऊँगा।"

रूंडा, झुन्डा और रुलदू ने बीरु के पैर पकड़ कर माफ़ी माँगी और कसम खाकर बीरु से पीछा छुड़ा कर भागे। जब बीरु जय और दूसरे गॉंव वाले चले गए तो मौसी बोली, "बिटिया ये क्या चमत्कार हुआ? इतने आनन-फानन में बीरु ने तुमसे मंगनी कर ली......ये चमत्कार कैसे हुआ?"

"मौसी सब पोस्टकार्ड का चमत्कार है।" बसंती ने हँसकर जवाब दिया।

"कौन पोस्टकार्ड बिटिया? वही जो दोपहर डाकिया दे गया था?"

"हाँ मौसी वही पोस्ट कार्ड......"

"क्या लिखा है उस पोस्टकार्ड में बिटिया?"

"अभी सुनाते है।" कहते हुए बसंती ने पोस्ट कार्ड उठाया और पढ़ने लगी।

पाय लागू मौसी,

पिछले हफ्ते बसंती शहर आई थी और बता रही थी कि तुमने उसकी शादी बीरु नाम के बदमाश से तय कर दी। सुनकर बहुत दुःख हुआ; जब तुम्हारी मेरी बात हो गई थी कि बसंती की शादी मेरे शागिर्द लखना पहलवान से होगी तो तुमने बीरु से रिश्ते की बात मुझसे पूछे बिना क्यों कर ली? खैर मै अगले हफ्ते आकर तुमसे मिलकर मेरे शागिर्द लखना पहलवान का रिश्ता पक्का कर दूँगा और रही रूंडा, झुन्डा और रुलदू नाम के छिछोरों की, उनकी खाल में मै खुद ही आकर भुस भरूंगा, हिम्मत कैसे हुई उनकी बसंती को छेड़ने की?

इस कारट में ज्यादा लिखने की जगह बची नहीं है बाकी बाते तुमसे मिलकर ही करूँगा, तुम्हारी बहु झूमिया ने पाय लगी बोला है।

तुम्हारा भतीजा,

जग्गू पहलवान

"अरे अब ये मुआ जग्गू पहलवान कौन भतीजा है हमरा?" मौसी सिर खुजाते हुए बोली।

"कोई नहीं है मौसी.......मै पिछले हफ्ते शहर जाकर खुद ही लिखकर ये पोस्टकार्ड डाक के डिब्बे में डाल आई थी। मुझे पता है ये दोनों निखट्टू ठाकुर चाचा की हवेली पर पड़े रहते है और डाकिया चाचा को पकड़ कर सारे गाँव के पोस्टकार्ड पढ़ते रहते है......मैंने भी एक पोस्टकार्ड पढ़वा कर इनकी अक्ल दुरुस्त कर दी। मै धन्नो जैसी तेज घोड़ी को तो चाबुक से हाँकती हूँ; इन दोनों टट्टुओ को तो मैंने बिना चाबुक के हाँक कर दिखा दिया।" बसंती हँसते हुए बोली।

"अगर वो पोस्टकार्ड न पढ़ते तो?"

"अव्वल तो ऐसा होता नहीं, अगर होता भी तो मै शहर जाकर दूसरा पोस्टकार्ड डाल आती, तीसरा डाल आती......" बसंती हँसते हुई सोने चली गई।


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