पकड़
पकड़
बादल बरस-बरस कर थम गये थे, भादो खत्म होने को थी। कुसुमप्यारी अपने झोपड़े को लीप-पोत रही थी। उसका खसम (पति) नीम के पेड़ के नीचे टूटी खटिया पर पड़ा-पड़ा खाँस रहा था। कुसुमप्यारी के ब्याह को अभी मुश्किल से पूरे तीन बरस भी नहीं हुए थे। बेचारी का पति चमनू भट्ठे पर ईंटों का काम करते-करते कब बीमार हो गया, पता ही नहीं चला। सरकारी डाक्टर ने बताया कि उसको टी. वी. हो गया है।
कुसुमप्यारी जल्दी-जल्दी हाथ चला रही थी ताकि घर की लिपाई-पुताई जल्दी से पूरी हो जाये, वैसे भी अब भट्ठे खुलने ही वाले हैं। जब भट्ठे खुल जायेंगे फिर उसे घर के काम की फुर्सत कहाँ मिलेगी। तभी पीछे से कुसुमप्यारी को एक मजबूत पकड़ने कसकर जकड़ लिया। कुसुमप्यारी समझ गई कि यह पकड़ ठेकेदार की ही है। पिछले साल भर से वो इस पकड़ को सहती आ रही थी।
‘पूरे तीन महीने हो गये, तुझे बाँहों में भरे हुए। सुन ! कल भट्ठे का शुभ मुहूर्त है, काम पर आ जाना...।’ इतना कहते हुये ठेकेदार पदमसिंह ने कुसुमप्यारी की पकड़ ढीली कर दी।
कुसुमप्यारी हाँ में सिर हिलाती हुई, नजरें झुकाये झोपड़े से बाहर निकल गई। और ठेकेदार अपनी बुलेट मोटर साइकल फट्ट - फट्ट करता हुआ हवा हो गया।