पिता की सीख

पिता की सीख

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शायद तब उम्र बारह साल रही होगी। हर महीने पिता जी साइकल के पीछे कैरियर पर गेहूं की बोरी लाद कर आटा चक्की पर पिसवाने जाते। मैं कभी कभार उनके साथ साथ चलता। फिर एक दिन जब हर बार की तरह वे गेंहूँ की बारी साइकल के पीछे रख रहे थे, मुझसे बोले


"अच्छा ऐसा करो, आज तुम साइकल का हैंडल पकड़ो और साइकल को चक्की तक लेकर चलो”


"पिता जी मुझसे साइकल गिर जाएगी” मैंने घबराकर कहा। गेहूं की बोरी का वजन लगभग तीस किलो से ऊपर होता था और मेरा वजन पैंतीस या चालीस ही रहा होगा।


"घबराओ मत, मैं पीछे कैरियर को पकड़ कर चलूँगा, अब तुम बड़े हो गए हो, खुद चक्की से जाकर गेहूं पिसवाकर लाया करो। चलो चलो, घबराओ मत” उन्होंने कहकर जैसे मुझे कुछ हौंसला दिया।


मैंने फिर भी डरते डरते साइकल आटा चक्की तक किसी न किसी तरह धीरे धीरे ले गया। साइकल का हैंडल जैसे ऊपर की तरफ उठ रहा हो, तो कभी साइकल दायें बाएं अपना संतुलन खो रहा हो। इस प्रकार अगले महीने भी हुआ और मुझे एहसास हुआ कि चक्की से आटा पिसवाकर लाना भी बड़ा मुश्किल काम है। पिता जी ने कहा, " अच्छा इस बार तुम खुद जाओ, साइकल पलट सकती है, बोरी गिर सकती है पर तुम समझदार हो, संतुलन बना लोगे”

मैं किसी तरह आटा चक्की तक बिना पिता जी के सहारे के पहुंचने में सफल रहा।

चक्की वाले अंकल को भी जैसे मेरी हालत पर तरस आ रहा था। जब गेंहू पिस गया तो मैं पिसे हुए आटे की बोरी साइकल के करियर पर लादने के लिए चक्की पर काम करने वाले नौकर से मदद मांगने लगा। इससे पहले कि नौकर साइकल के करियर पर बोरी लदवाता, चक्की के मालिक ने पुकारा।


"अरे बेटा बोरी करियर पर मत रखो, साइकल के बीच मे चेन कवर के ऊपर रख लो। इससे तुम्हारा संतुलन भी नही बिगडेगा और तुम आसानी से घर तक चले जाओगे”


अंकल की सलाह वाकई बड़ी सुविधाजनक थी, मैंने साइकल के बीच मे बोरी रखी और आराम से घर की तरफ चल दिया। मेरे दिमाग मे एक ही प्रश्न था, "पिताजी ने ऐसा आसान तरीका क्यो नही बताया?"

मैं घर पहुंचा। आटे की बोरी उतरवाई। पिता जी वही आंगन में बैठे थे। उन्होंने मुझे देख लिया था आते, पर वे बस मुस्कराये, बोले कुछ नही।


"पिता जी, क्या आप जानते थे कि बोरी को साइकल के बीच मे भी रखा जा सकता है?" मैंने उनके पास बैठते हुए कहा।


"हां, बिल्कुल जानता था”


"फिर आपने बताया क्यो नही? मैं बेकार में परेशान होता रहा”


"कई परेशान होते रहे”


"ये तरीका ज्यादा आसान था”


"आसान तरीके सीखने के लिए परेशान होना पड़ता है बेटा। कष्ट उठाना पड़ता है”


वे कहकर मेरी पीठ पर थपथपाने लगे। फिर बोले,


"यदि तुम कठिनता से न गुजरते तो शायद चक्की वाले अंकल भी तुम्हारी मदद न करते। मैंने ही उन्हें ऐसा करने से रोक रखा था। क्या तुमने कभी वहाँ से गेंहू पिसवाने के लिए आते दूसरे लोगो पर ध्यान दिया। उनमे से कई साइकल के बीच मे ही बोरी रखकर लाते ले जाते थे। "


"हां, मैने इस बात पर तो कभी ध्यान ही नही दिया”


"तो बस मैं भी तुम्हे यही समझना चाहता था कि कोई भी काम करो तो मुश्किल के समय अपने आस पास से भी सीखने का प्रयत्न करों। केवल अपने पिता पर ही निर्भर मत रहो”


"जी पिता जी, आपने सही कहा, हमें अपने आस पास से सीखना भी चाहिए और मदद भी लेनी चाहिए”

मुझे मुस्कुराता देख पिता जी ने मेरे बालो पर प्यार से हाथ फेरा।


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