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Shalini Dikshit

Drama

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Shalini Dikshit

Drama

पिता के नाम पुत्री का एक पत्र

पिता के नाम पुत्री का एक पत्र

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डियर पापा,

एक हिस्सा जीवन का जिसको बचपन कहते हैं, वो मेरे अंदर पूरी तरह समाया हुआ है और उसी हिस्से में से मैं आपको झांक के देखती रहती हूं, महसूस करती रहती हूँ। शायद बचपन ही उम्र का वह पड़ाव होता है, जब पिता से सब से अधिक निकटता होती है, हाँ डर भी उसी उम्र में सबसे ज्यादा था आपका। धीरे धीरे सारे पड़ाव आते रहते है जिनमे की वैचारिक मतभेद भी होते हैं लेकिन मानसिक निकटता बढ़ जाती है। फिर वह पड़ाव आया जब आप जिद्दी बच्चे से बन गए और हम बड़े बच्चे और फिर एक दिन वो जिद्दी बच्चा हम सब को छोड़ कर चला गया।

आज भी कभी कोई कठिन समय आता है तब आप की वह बात हमेशा याद रहती कि- 

"सुनो सब की करो अपने मन की।"

यह वाक्य लिखते समय आप की आवाज जैसे गूंज रही है कानों में और दूसरा वाक्य कि-

"बेटा तुम बहुत कडुआ बोलती हो।"

यह भी मुझे अक्सर सुनाई देता जब जब ऐसा कुछ करती हूं तब। आप ने हम तीनों भाई बहनों को वो सब कुछ दिया जो चाहिए था हमें हर जन्म में आप ही चाहिए पिता के रूप में।

आज आप हमारे साथ नहीं हैं पर जिस जहाँ में हैं वहाँ से भी मेरा यह पत्र पढ़ लेंगे और कहेंगे कि वाह आज तो तुम ने एक भी पाई मात्रा की गलती नहीं करी, है न पापा चेक करो और अगर पांच से ज्यादा गलतियां निकलें तो बेशक पहले की ही तरह पेज फाड़ देना और कहना फिर से लिखो।

आपकी

शालिनी दीक्षित।


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