पिंडदान
पिंडदान
छुटकी अपने नन्हें नन्हें कदमों से चहकती हुई हरी हरी घास पर दौड़े जा रही थी और पीछे पीछे दादू खेल-खेल में भागे आ रहे थे। चारों और हरी घास,हरियाली और रंग-बिरंगे फूलों का एक मनमोहक चित्र सजीव हो रहा था।
तभी अचानक मोबाइल फोन की नए फिल्मी गाने की धुन से सजी रिंगटोन से पल्लवी की नींद टूटी। 'तो क्या ये सपना था?'......' हां सपना ही तो था'.....लंबी सांस भरते हुए पल्लवी ने सोचा ।दादू को गए तो आज बारह वर्ष हो गए हैं। दादू भी तो पल्लवी की बचपन की स्मृतियों में सदा हरी घास के समान रहे हैं, कोमल, शीतल और मन को तरावट देने वाले।
पल्लवी को आज भी याद है कि कारोबार जमाने के लिए मां ,पापा और दादू उसे साथ लेकर गांव से यहां शहर में आ बसे थे। वैसे तो घर में किसी चीज की कमी नहीं थी, लेकिन दादू को गांव के हरे भरे वातावरण की कमी हमेशा खलती थी। शहर में हर ओर सीमेंट ,कंक्रीट, धुआं, प्रदूषण और बंजर होती जमीनें देखकर दादू अक्सर बड़े दुखी होते थे। वो कहते थे कि 'छुटकी पेड़-पौधे और हरियाली धरती मां का श्रृंगार है,अगर हम इनकी परवाह नहीं करेंगे,अगर हम इन्हें नहीं सहेंजेंगे तो एक दिन धरती माता हम सब से नाराज़ हो जाएंगी और फिर हम सब के लिए ये धरती रहने योग्य नहीं रहेगी'।ऐसा कहते हुए दादू गांव के खेतों, हरे-भरे बाग-बगीचों और दोनों ओर हरियाली से घिरे रास्तों की बहुत सारी चित्रावलियां उसके सामने साकार कर देते थे और उन सब बातों को सुनते-सुनते पल्लवी सपनों की हरी-भरी वादियों में सैर करने लगती थी।
वक्त बीतता गया और एक दिन अचानक एक दुर्घटना में पिताजी चल बसे।दादू यह आघात सहन नहीं कर सके और कुछ महीनों बाद ही उनका भी स्वर्गवास हो गया। अब कारोबार की जिम्मेदारी मां पर आ पड़ी। पल्लवी की मां सुधा देवी ने अपनी बेटी को पढ़ाने लिखाने व योग्य बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।दादू के जाने के बाद जब पहले-पहले श्राद्ध आए तो बेटे और पोते के ना होने के कारण पंडित जी ने श्राद्ध तर्पण के लिए पल्लवी को बुलाया। यद्यपि पल्लवी ने वह अनुष्ठान विधि अनुसार श्रद्धा से संपन्न किया किंतु उसने अपने मन ही मन में दादू की आत्मा को शांति पहुंचाने के लिए एक नया ही अनुष्ठान करने का प्रण किया। पल्लवी ने अपने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर एक वृक्षारोपण अभियान चलाया जिसमें वह सभी शहर में जगह-जगह जाकर पौधे लगाया करते,घास बोया करते और फिर उनकी देखभाल एवं सुरक्षा भी करते। धीरे-धीरे पल्लवी और उसके मित्रों द्वारा शुरु किए गए इस अनुष्ठान को जन सहयोग मिलने लगा और इसने एक समाज सेवी संस्था का रूप ले लिया।
आज राष्ट्रीय स्तर पर पल्लवी के इस "हरित-अनुष्ठान" नामक पर्यावरण संरक्षक संस्थान को पर्यावरण सुरक्षा के क्षेत्र में अपने उल्लेखनीय योगदान के लिए सम्मानित किया जाना है, फोन पर बधाई का क्रम लगातार जारी है ।तभी मां ने फोन पर बताया कि आज दादू का श्राद्ध है, पल्लवी ने मन ही मन सोचा कि सही मायनों में यह पुरस्कार ही उसका दादू के निमित्त पिंडदान है।
दादू का शहर अब पहले से कहीं ज्यादा हरा-भरा हो गया है। पल्लवी आज भी दादू की उंगली पकड़कर हरी घास पर चलती है, चाहे सपनों में ही सही।और दादू वहां नीले आसमान से मुस्कुराकर अपनी छुटकी को आशीर्वाद दिया करते हैं।