साक्षात्कार
साक्षात्कार
'रात की सैर एक अच्छी आदत होती है, इसमें ढिलाई ठीक नहीं'
कहते हुए वैष्णवी पति माधव से चलने के लिए अनुरोध करने लगी।
लेकिन माधव को कुछ जरुरी फाइल्स निपटानी थी सो बेटे अंशुमन को लेकर वो सैर के लिए पार्क चल पड़ी।
थोड़ी देर बाद उसने देखा कि वहां पास में एक डेयरी पर तीन लड़कियां खडी़ हैं और बार बार आश्वासन पाने की गरज से उसे ही देखे जा रही हैं।लड़कियों की उम्र कोई 13-14 साल लग रही थी।उस डेयरी के आस पास की रोड लाइट्स सही से काम नहीं कर रहीं थी और वहां उस डेयरी पर उन लड़कियों के अलावा बस कुछ लड़के और दुकानदार ही था।
उन लड़कियों को यूं बार बार देखते हुए देखकर वैष्णवी को लगा मानो उसका अपने आप से साक्षात्कार हो रहा हो।
क्यूंकि अभी थोड़ी देर पहले बेटे अंशुमन के किसी जरूरी काम से 10 मिनट के लिए पार्क से बाहर जाने पर चूंकि वहां कोई भी महिला नहीं थी, इसलिए वैष्णवी भी पार्क के पास से गुजर रही हर महिला को ऐसी ही हौसला पाने को व्याकुल नजरों से देख रही थी।
'कौन कहता है हमारे समाज में स्त्रियों के असुरक्षित होने का उम्र से कोई लेना देना है,वहां उस पार्क के पास रात के अध उजले माहौल में उन किशोरी कन्याओं और वय के चालीसवें मोड़ पर खड़ी वैष्णवी में कोई भी तो फर्क नहीं है'
वैष्णवी ने जैसे उन तीनों लड़कियों के मनोभावों को अपने अन्दर प्रतिबिंबित होते देखा।
.....और वो पार्क की उस दीवार के पास अपने बेटे के साथ खडी़ हो गयी, जो दीवार उस डेयरी के सबसे निकट थी।
