Bhawna Vishal

Drama

5.0  

Bhawna Vishal

Drama

रुक जाना नहीं !

रुक जाना नहीं !

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अनुकृति के जीवन में सब कुछ सामान्य होकर भी सामान्य नहीं था। हालांकि आज का सूरज उसके लिए नई रोशनी लेकर आया था, लेकिन उसी रोशनी के साथ कई ऐसी परछाइयां भी उसके साथ चल रही थी, जिनका सीधा सीधा संबंध उसके अतीत की गुजरी हुई रात से था। जीवन के सैंतीस बसंत पार कर चुकी अनुकृति ने जीवन के हर मौसम और हर रंग को बहुत नजदीक से अनुभव किया था। उसे आज भी याद है, कैसे करीब पन्द्रह वर्ष पहले पापा के अचानक इस दुनिया से चले जाने के बाद जैसे उन सब पर मुसीबतों का पहाड़ ही टूट पड़ा था। तीन बहनों में सबसे बड़ी अनुकृति पढ़ाई में शुरू से ही होशियार थी और इरादों की कसौटी पर भी वह एक मजबूत व्यक्तित्व की स्वामिनी थी। मां की सरकारी नौकरी से और पापा द्वारा जोड़ी गई संपत्ति से जैसे तैसे मां ने एक-एक करके तीनों बहनों को इज्जत से अपने-अपने घर के लिए विदा किया। अपनी बाकी दोनों बहनों की तरह शुरू-शुरू में अनुकृति भी शैलेश के साथ अपने गृहस्थ जीवन में खुश थी। ममता के दो सुंदर उपहारों के साथ वह अपने गृहस्थी के उत्तर दायित्वों का पालन पूरी निष्ठा व समर्पण के साथ कर रही थी लेकिन धीरे-धीरे उसकी खुशहाल गृहस्थी की काठ को षडयंत्र की दीमक ने घेर लिया। सास-ससुर, जेठ, ननद और यहां तक कि शैलेश का व्यवहार भी बद से बदतर होने लगा। दरअसल अनुकृति के ससुराल वाले चाहते थे कि उसकी मां अपनी संपत्ति को बेचकर शैलेश को व्यापार के लिए धन उपलब्ध कराए। लेकिन अनुकृति के लिए अपनी मां के बुढ़ापे का सहारा छीनना, सपने में भी स्वीकार्य नहीं था। पापा के जाने के बाद उनके बड़े से मकान के एक हिस्से को मां ने किराए पर चढ़ा दिया था। उस हिस्से से आने वाले मासिक किराए और अपनी नौकरी के सहारे ही उन्होंने अपनी तीनों बेटियों की पढ़ाई और विवाह की जिम्मेदारियों को पूरा किया था। और अब शैलेश और उसके परिवार वाले उसकी मां के इस बुढ़ापे के सहारे को ही उनसे छीन लेना चाहते थे। ससुराल वालों का व्यवहार तो अनुकृति समझ सकती थी, लेकिन शैलेश? शैलेश तो उसका अपना था, उसके दो छोटे छोटे बेटों का पिता, उसका जन्म जन्म का साथी।

कहते हैं किसी भी इंसान को जीवन में सबसे गहरी चोट, उसका कोई बहुत अपना ही दे सकता है, शैलेश के बिगड़ते व्यवहार से अनुकृति बिलकुल टूट सी गयी थी। धीरे धीरे शैलेश के अवगुणों पर से एक एक करके आवरण हटने लगे। अब वो रोज शराब पीता और आए दिन अनुकृति के साथ मारपीट किया करता। मासूम अनुकृति ने काफी समय तक तो सहायता के लिए सास,ननद  और जेठानी को पुकारा, लेकिन वहां से सिवाय तानों और तिरस्कार के उसे कुछ ना मिला। आखिरकार एक दिन शैलेश ने अपनी ब्याहता अनुकृति को दो बच्चों के साथ, आधी रात को घर से बाहर निकाल दिया। उसकी शर्त थी कि अगर वो उसके साथ रहना चाहती है तो अपनी माँ से मुंहमांगी रकम लेकर ही आये।  

दुःख जैसे जीवन में काली रात के समान आता है, वैसे ही वो रात भी अनुकृति के जीवन में दुःख का घना कालापन और अंधेरा लेकर आयी थी।

परंपराओं,संस्कारों में बंधी उस असहाय नारी के लिए जीने के सभी रास्ते मानो बंद हो गये थे। आखिर वो मां के पास क्या मुँह लेकर जाये? और बहनों से सहायता की उम्मीद कब तक की जा सकती है। और यदि कहीं बहनों के ससुराल वालों को उसके बारे में पता चल गया तो? कहीं उसके दुःख का अंधकार,उसकी बहनों के जीवन का प्रकाश भी ना हर ले? यह सब सोच- सोच कर अनुकृति को हर रास्ता मद्धिम होता दिखाई पड़ रहा था। एक पल को तो मन में आया कि अपनी जीवन लीला वहीं समाप्त कर ले,किन्तु फिर उसे मां की दी हुई शिक्षा याद आई। उसे स्मरण हो आया कि कैसे मां ने उन तीनों बहनों को हमेशा ही बहादुरी,जीवटता और साहस का पाठ पढाया है। मां हमेशा कहा करती है कि चाहे कितना ही अंधेरा क्यूं ना हो,अंधेरे के उस छोर पर रोशनी हमेशा मिला करती है,रात चाहे कितनी भी गहरी क्यूँ न हो,हर रात के बाद सुबह जरूर आती है। बस यही सब सोचते हुए वह उस अंधेरी सड़क पर चली जा रही थी कि तभी अचानक उसे मूर्छा आई और वो वहीं सड़क पर गिर पड़ी।

होश आने पर उसने मां को अपने सामने खड़ा हुआ पाया। हुआ यूं था कि उसके सड़क पर गिरने के समय संयोग से उसके दूर के मामा वहां से गुजर रहे थे। उन्होने ही अनुकृति की मां को सूचित कर, किसी तरह सही सलामत उसे मां के घर पहुंचा दिया। अपनी विवाहिता पुत्री का यूं बेसहारा, बेघर होकर रात में मिलना, अनुकृति की मां के लिए किसी आघात से कम न था। लेकिन उन्होने, ना सिर्फ खुद को सम्हाला बल्कि अपनी बेटी और दो छोटे छोटे नवासों को भी सहारा दिया। उन्होने शैलेश और उसके परिवार वालों से संपर्क करने की बहुत कोशिश की, लेकिन वहां से कोई आशाजनक उत्तर ना मिला। कुछ लोगों ने पुलिस कचहरी की राय भी दी, लेकिन इन सब से उनकी बेटी को सिर्फ मुआवजा ही मिल सकता था, उनकी बेटी का घर तो कतई नहीं बस सकता था। धीरे धीरे अनुकृति ने भी स्थिति को सहजता से स्वीकार कर लिया। उसने पास ही के प्राइवेट स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया और अपने बच्चों को भी वही दाखिल करवा दिया। जीवन फिर से एक बार अपनी लय पकड़ने लगा।

मां की ममता और बच्चों के लालन पालन ने अनुकृति के जीवन को दिशा देना प्रारंभ कर दिया। वहां स्कूल में अनुकृति के पढाई के ग्रेड्स देखकर, उसकी सहेली करूणा ने उसे प्रशासनिक सेवाओं के लिए आवेदन करने की सलाह दी। अनुकृति की मां भी जानती थी कि उनकी बेटी में एक सफल प्रशासनिक अधिकारी बनने के सारे गुण मौजूद हैं,सो उन्होने भी अपनी बेटी को आगे बढने के लिए भरपूर प्रोत्साहित किया। अनुकृति अब

पूरे मनोयोग से परीक्षा की तैयारी में जुट गयी। दिन रात मेहनत करके उसने प्रारंभिक व मुख्य दोनो ही परीक्षाएं अच्छे अंकों से पास कर ली। एक अच्छे कोचिंग संस्थान के मार्गदर्शन में उसने साक्षात्कार की तैयारी की और उसका साक्षात्कार भी बहुत अच्छा हुआ।

किन्तु नियति से उसका ये सुख भी देखा न गया।

एक दिन अचानक से ह्रदयाघात के कारण उसकी माँ भी उसे हमेशा के लिए छोड़ कर चली गई। वो मां,जो उसके जीवन की रोशनी थी। वो मां, जो उसकी हिम्मत और साहस का आधार थी। अनुकृति एक बार फिर पूरी तरह से बिखर गई। मां के जाने के बाद उसे अवसाद ने घेर लिया। जीवन एक बुझे हुए दिये के समान लगने लगा,एकदम खाली और नितांत ही स्याह। समय बीतने लगा,प्रशासनिक परीक्षा का परिणाम भी आ गया। अनुकृति का बहुत अच्छे पद पर चयन तो हुआ। लेकिन उसके मन में अब आगे बढने की कोई इच्छा शेष नहीं बची थी। उसकी सहेली करूणा ने उसे बहुत समझाया मगर उस पर कोई असर नहीं हुआ।

फिर एक दिन उसके दोनों बच्चे,अपनी नानी की डायरी को लेकर झगड़ने लगे। अनुकृति ने गुस्से में वो डायरी अपने पास रख ली। तभी झटके से उस डायरी में से एक पत्र नीचे गिर गया। अनुकृति ने उसे खोला और पढा। उसमें लिखा था :-

प्यारी बेटी अनु, 

पिछले कुछ समय से तबीयत रह रह के खराब हो रही थी। उसके चलते कुछ टेस्ट करवाने पडे़। उनकी रिपोर्ट लेकर कल मैं डाक्टर के पास गयी थी। डाक्टर के अनुसार मेरा ह्रदय सही ढंग से काम नहीं कर पा रहा है। इसकी स्थिति दिन ब दिन गिरती जा रही है। शायद अब मेरे पास अधिक समय नहीं है।

मैं ये सब तुम्हें बताना नहीं चाहती क्यूंकि मैं नहीं चाहती कि कोई भी भावनात्मक आघात तुम्हारी सफलता के मार्ग में बाधक बने। लेकिन फिर भी ये पत्र लिख रही हूँ,तुम ध्यान से पढना।

अनु बेटी,तुम मुझसे वादा करो कि जीवन में चाहे जो कुछ भी हो, तुम कभी भी हार नहीं मानोगी। ये जीवन हमें भगवान का दिया सबसे अनमोल उपहार है। और ये जीवन में आने वाले किसी भी सुख या दुःख से कहीं बड़ा है। हर नया दिन,अपने साथ नयी आशाएं,नये स्वप्न लेकर आता है। तुम हर आने वाले नये दिन को भरपूर जीना। एक कुशल प्रशासनिक अधिकारी बनकर अपने कर्तव्यों को पूरी ईमानदारी से निभाना। और अपने बच्चों को भी जीवन में सकारात्मकता का पाठ पढाना। अपनी बहनों को जरूरत पड़ने पर मेरी कमी मत महसूस होने देना।

तुम मेरी बहादुर और मजबूत बेटी हो। मैं जानती हूँ कि तुम मेरी अपेक्षाओं पर खरी उतरोगी। ईश्वर तुम्हें सफलता दे।  

तुम्हारी मां

अपनी माँ का ये पत्र पढकर अनुकृति की आंखों से झरझर आँसू बहने लगे। और उन आंसुओं के साथ ही उसका अवसाद भी बह गया। मां के शब्दों ने उसके मन में एक नयी चेतना का संचार कर दिया था। उसे अहसास हो रहा था कि जीवन शायद हर कठिनाई से हारे बिना चलने का ही नाम है।

और आज सहायक कलक्टर अनुकृति शर्मा के पदग्रहण का पहला दिन है। वो अनुकृति,जो अपनी ज़िन्दगी की हर परेशानी से लड़कर भी चट्टान की तरह अडिग खडी़ रही। वो अनुकृति,जो हर मजबूर और बेसहारा महिला के लिए एक मिसाल है। जिस पर उसकी बहनों को अपार गर्व है। आज मां की दी हुई साडी़ पहनकर और मां की घड़ी कलाई पर बांध कर उसे ऐसा लग रहा था मानो मां उसके बिलकुल आस पास ही है। मां को प्रणाम कर के अनुकृति अपने जीवन की इस नयी यात्रा पर निकल पडी़।

दूर कहीं से एक पुराने मधुर फिल्मी गीत की आवाज़ आ रही थी, "रुक जाना नहीं,तू कहीं हार के....। "


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