पीहर की देहरी
पीहर की देहरी
हम लड़कियों को विवाह के बाद सबसे ज़्यादा कष्ट इस बात का होता है कि...
जितना तो सप्तपदी के भाँवरे से मन नहीं बिंधता उससे कहीं ज़्यादा तो मायके की देहरी बेदखल कर देती है!"
एक ठंढी साँस भरकर रिद्धिमा अपनी सहेली तृषा से कहा तो तृषा ने भी हामी भरते हुए कहा,
"बिल्कुल सही कह रही हो रिद्धिमा दीदी। मेरा अनुभव भी कुछ कुछ ऐसा ही है। धन के आभाव में जब मेरा रिश्ता कहीं नहीं हो पा रहा था तो बंशी के पापा ने ही मेरा हाथ थामा था। नहीं तो मुझ जैसी एक हाथ से टुंडी से भला कौन करता ब्याह!"
उसके बाद तो जब भी पीहर जाना हुआ समझो मेहमान बनकर ही रही। अम्मा ने तो पग फेरे के बाद ही मेरा कमरा सरोज को दे दिया था। फिर सरोज के ब्याह के बाद नवीन और अब भैया की बड़ी बेटी का है वह कमरा। जिस घर में पूरा बचपन बिताया। यौवन के उन्मादी सपने देखे उस घर में दो पल सुस्ताकर बैठकर उन सपनों को मन ही मन में दोहरा भी नहीं सकते!"
कोमल मासी ने कहा तो अपने कमरे में पढ़ाई करती हुई अंतरा सोचने लगी,
क्या माँ और मौसी जैसा कह रही हैं, वैसा ही होता है? विवाह के बाद पीहर की देहरी क्या इतनी पराई हो जाती है?"
आगे उसका पढ़ाई में जी नहीं लगा। अंतरा का पढ़ते पढ़ते अब मन उचट गया था। उसकी आदत थी कि एक बार जो पढ़ाई या किसी काम से मन उचाट हो जाता तो फिर मन को लगाने में काफ़ी समय लगता था।
मन तो उद्गिन हो ही चुका था अब, सो अंतरा ने सोचा एक कप चाय बना ले।
अंतरा ने अभी चाय का पानी चढ़ाया ही था कि रसोई में से आती खटर पटर की आवाज़ सुनकर रिद्धिमाजी ने वहीं से आवाज़ लगाई,
"अंति बेटा दो कप चाय और बना देना। मेरे लिए और मौसी के लिए भी अदरख कूटकर डाल देना।
अंतरा जब चाय लेकर आई तब तबतक मम्मी और मौसी वही बात कर रहे थे कि क्या शादी के बाद लड़कियाँ मायके में सिर्फ मेहमान बनकर रह जाती हैं?
प्रिय सखियों, अंतरा के इस सवाल का जवाब अगर आपके पास है तो कृपया ज़रूर बताएँ
