फूलों वाली लड़की और बसंत पंचमी

फूलों वाली लड़की और बसंत पंचमी

12 mins
754


सरस्वती पूजा जो बसंत पंचमी भी कहलाता है, आने वाला था। हर साल की तरह इस साल भी सभी मोहल्ले वालों ने मिलकर माँ सरस्वती की आराधना करने की योजना बनायी थी।

मोहल्ले के सभी बच्चों में काफी उत्साह था। सभी बढ़-चढ़कर पूजा की तैयारी में हाथ बँटा रहे थे।

पंडाल बनाने का काम शुरु हो चुका था। प्रत्युष जो सभी बच्चों का मुखिया था उसने सुझाव दिया कि क्यों ना इस बार पंडाल की सजावट सिर्फ पीले फूलों से करें जो माँ सरस्वती का भी प्रिय रंग है और बसंत के आगमन का सूचक भी।

सभी उसकी बात से सहमत हो गए।

पूजा से एक दिन पहले प्रत्युष कुछ दोस्तों को साथ लेकर फूलों की ख़रीददारी करने फूल मंडी गया। सभी दुकानों पर जितने पीले फूल थे लेने के बाद भी थोड़े से फूल कम पड़ रहे थे।

प्रत्युष सोच में डूबा हुआ था कि और फूल कहाँ से आएंगे। तभी एक बच्चे की नज़र थोड़ी दूर पर फूलों की टोकरी के साथ बैठी छः-सात बरस की एक लड़की पर पड़ी। सभी उसके पास पहुँच गए।

उस लड़की के पास जितने भी पीले फूल थे सब प्रत्युष ने खरीद लिए।

उस लड़की ने उन सबके पास इतने पीले फूल देखकर कौतूहल से पूछा "भैया, आप लोग इतने सारे एक ही रंग के फूल क्यों खरीद रहे हैं?"

"वो इसलिए क्योंकि ये माँ सरस्वती का प्रिय रंग है। वो इन्हें देखकर प्रसन्न होंगी और हमें विद्यादान देंगी।" प्रत्युष ने कहा।

उस लड़की ने फिर पूछा "ये विद्यादान क्या होता है?"

"विद्यादान का मतलब की वो हमें बुद्धि देंगी ताकि हम विद्यालय में अच्छे से पढ़ाई-लिखाई करें और अच्छे नम्बरों से उत्तीर्ण होकर बड़े आदमी बनें।" प्रत्युष ने बताया।

ये सुनकर उस लड़की ने धीमी आवाज़ में कहा "मुझे तो उन्होंने विद्यादान नहीं दिया, जबकि मैंने भी उनकी पूजा की थी।"

उसकी बात सुनकर प्रत्युष आश्चर्य में पड़ गया और बोला "क्यों, क्या तुम्हारे माता-पिता तुम्हें पढ़ने नहीं भेजते हैं?"

"मेरे तो माता-पिता है ही नहीं भैया। बस दादी है। उनका कहना है लड़कियों को पढ़ना नहीं चाहिए। अगर मैं पढूँगी तो उनके काम में हाथ कौन बँटायेगा?" उस लड़की ने बताया।

ये सुनकर प्रत्युष सोच में पड़ गया कि उसके माँ-पापा तो उसकी दीदी को हर वक्त बस पढ़ाई करने के लिए ही बोलते है।

फिर कुछ सोचकर उसने उस लड़की से कहा "सुनो, कल हमारे मोहल्ले में सरस्वती पूजा है। तुम अपनी दादी के साथ जरूर आना।"

उसे मोहल्ले का पता बताकर प्रत्युष अपने दोस्तों के साथ आगे बढ़ गया।

फिर अचानक ही वो दोबारा उस लड़की के पास आया और बोला "अरे सुनो, अपना नाम तो बता दो।"

"गीतू।" उस लड़की ने कहा।

देर रात तक मोहल्ले में सभी पंडाल की सजावट में लगे हुए थे।

पीले फूलों की पंक्तियां एक अलग ही छटा बिखेर रही थी। ऐसा लग रहा था मानो ऋतुराज बसंत अपने सम्पूर्ण रूप में इस धरती पर उतर आया हो।

लेकिन इन सबके बीच भी प्रत्युष के मन में गीतू की ही बातें घूम रही थी।

काम खत्म करने के बाद जब वो घर गया तो उसने अपने पापा मदन जी से पूछा "पापा, सबसे बड़ा दान क्या होता है?"

"क्यों तुमने विद्यालय में इसके बारे में नहीं पढ़ा जो मुझसे पूछ रहे हो?" मदन जी ने कहा।

प्रत्युष फिर बोला "आप दीजिये ना पापा इसका जवाब।"

"बेटे, सबसे बड़ा दान होता है विद्यादान, जो हमारे शिक्षक हमें देते हैं।" मदन जी बोले।

प्रत्युष की तरफ देखकर मदन जी समझ गए कि उसके मन में कोई बात चल रही है।

उन्होंने प्रत्युष से कहा "कौन सी बात तुम्हें परेशान कर रही है बेटे? मुझे बताओ।"

"आप गुस्सा तो नहीं करेंगे ना पापा?" प्रत्युष ने धीरे से पूछा।

"बिल्कुल गुस्सा नहीं करूँगा। अपने पापा पर भरोसा रखो और बताओ क्या बात है?" मदन जी ने कहा।

तब प्रत्युष ने उन्हें गीतू से हुई बातें बताते हुए कहा "मैंने उसे कल पंडाल में बुलाया है। क्या हम कुछ ऐसा नहीं कर सकते कि उसे भी विद्यादान मिले?"

अपने बेटे की सोच पर मदन जी हैरान हो गए। हालांकि वो दसवीं का छात्र था, लेकिन फिर भी था तो बच्चा ही। इस उम्र में उसके अंदर दूसरों के लिये मदद की भावना देखकर वो बहुत प्रसन्न हुए।

उन्होंने प्रत्युष से कहा "वो इस बारे में जरूर सोचेंगे।"

बहुत सोच-विचारकर मदन जी ने ये फैसला किया कि कल पूजा के बाद पहले सभी मोहल्ले वालों से बात करते है। हो सकता है सभी सहयोग के लिए राजी हो जाएं औऱ ना हुए तब कोई और रास्ता निकाला जायेगा।

बसंत-पंचमी की सुबह आ चुकी थी। सारे मोहल्ले में रौनक थी।

जब सभी लोग पंडाल में पहुँच गए तब विधिवत माँ सरस्वती की पूजा-आराधना शुरू हुई।

पूजा की समाप्ति के पश्चात प्रसाद-वितरण का कार्यक्रम शुरू हुआ।

जब सभी लोगों ने प्रसाद ले लिया तब मदन जी ने माइक लिया मोहल्ले वालों को संबोधित करते हुए कहा "आज माँ सरस्वती जो कि विद्या की देवी हैं, उनकी आराधना के शुभ अवसर पर मेरा बेटा प्रत्युष आप सभी से कुछ कहना चाहता है। उम्मीद है आप सब उसकी बात सुनेंगे।"

सभी लोगों की नज़रें प्रत्युष पर टिक गयीं।

प्रत्युष ने माइक संभालते हुए कहा "कल फूलों की खरीददारी करते हुए मैं एक छोटी लड़की से मिला जिसका नाम गीतू है। जब उसने कहा कि माँ सरस्वती ने उसे विद्यादान नहीं दिया तो मुझे बहुत आश्चर्य हुआ। फिर मुझे पता चला कि उसके माँ-पापा नहीं हैं और उसकी दादी उसे पढ़ाना नहीं चाहती, जबकि वो पढ़ना चाहती है। हम सबने पढ़ा है कि विद्यादान सबसे बड़ा दान होता है। तो क्या हम सब मिलकर कुछ ऐसा नहीं कर सकते जिससे उसे भी विद्यादान मिल सके?"

प्रत्युष की बात सुनकर सभी सोच में पड़ गए।

कुछ लोगों का मत था कि शहर में गीतू के जैसे अनेकों बच्चे है, हम कहाँ तक सबकी मदद कर सकेंगे। तो कुछ लोगों का कहना था सबकी नहीं पर कुछेक बच्चों की मदद तो हम सब मिलकर कर ही सकते हैं।

कुछ लोग कह रहे थे ऐसे बच्चों के लिए सरकारी विद्यालय तो हैं ही। हालांकि सभी जान रहे थे कि अधिकांश सरकारी विद्यालयों में आज शिक्षा की क्या दशा थी।

जो-जो लोग मदन जी और प्रत्युष की बात से सहमत थे वो आगे आकर बोले "हम सब सहयोग के लिए तैयार हैं। कल विसर्जन के बाद एक मीटिंग रखते हैं औऱ मिलकर तय कर लेते है कि किस प्रकार उस बच्ची की मदद की जा सकती है।"

उनकी बात सुनकर प्रत्युष और मदन जी बहुत प्रसन्न हुए।

प्रत्युष पंडाल में बैठा गीतू का इंतज़ार कर रहा था ताकि वो उसे ये खुशखबरी दे सके।

थोड़ी देर में उसे अपनी दादी के साथ गीतू आती हुई दिखाई दी।

उसे प्रसाद देकर प्रत्युष ने कहा "इस बरस माँ सरस्वती तुम्हें भी विद्यादान देंगी। हम सब मिलकर तुम्हें पढ़ाएंगे। बस तुम मन लगाकर पढ़ना।"

"आप मुझसे हँसी कर रहें हैं ना भैया?" गीतू ने हैरत से कहा।

प्रत्युष माँ की प्रतिमा के आगे हाथ जोड़ते हुए बोला "बिल्कुल नहीं। मैं सच कह रहा हूँ।"

गीतू की दादी जो अब तक चुपचाप उनकी बातें सुन रही थी, उसने प्रत्युष से कहा "बाबू, मेरी पोती के दिमाग में ये क्या उल्टा-सीधा डाल रहे हो? ये पढ़ाई-लिखाई सब तुम बड़े लोगों को शोभा देती है, हम जैसे गरीबों को नहीं।"

प्रत्युष कुछ कहता कि उससे पहले ही मदन जी वहाँ आ गये और बोले "माताजी, गरीब हो या अमीर सबके लिए पढ़ना-लिखना जरूरी है। ताकि पढ़-लिखकर वो इस योग्य बन सकें की उनकी आगे की ज़िंदगी गरीबी में ना बीते। गीतू बिटिया को हम सब मिलकर पढ़ाएंगे आप उसकी चिंता मत कीजिये।"

"अगर ये पढ़-लिख गयी फिर तो इसका ब्याह करना भी मुश्किल हो जायेगा मेरे लिये। मैं कहाँ से लाऊँगी इतना दहेज की पढ़े-लिखे लड़के से होगी इसकी शादी।" गीतू की दादी ने अपना संशय प्रकट किया।

ये सुनकर मदन जी बोले "माताजी, अभी तो बिटिया इतनी छोटी है और आप उसके ब्याह का सोचने लगी। आपको पता है ना अगर आपने अठारह बरस से पहले इसकी शादी करवाई तो आप जेल भी जा सकती है। और अगर आपने इससे मजदूरी करवाई तब भी आपको सज़ा हो सकती है। बस हमारे पुलिस में शिकायत करने की देर है।"

जेल और पुलिस की बात सुनकर गीतू की दादी थोड़ी नरम हुई और मदन जी से बोली "बाबूजी, हम तो झोपड़ी में पैदा हुए, वहीं मर जायेंगे। आप ठीक कह रहे हैं गीतू को पढ़ना चाहिए। लेकिन मेरे अंदर इतना सामर्थ्य नहीं कि उसकी ये जिम्मेदारी उठा सकूँ।"

"आप उसकी चिंता मत कीजिये। आप बस गीतू बिटिया का ध्यान रखिये। उसका साथ दीजिये। हम दो-तीन दिनों में इसकी पढ़ाई के बारे में बात करने आपके घर आएंगे।

गीतू के घर का पता लेकर मदन जी ने उन्हें नमस्कार किया और प्रत्युष को लेकर अपने घर की तरफ चल दिये।

गीतू भी आज अपनी दादी के साथ घर जाती हुई बहुत प्रसन्न थी।

विसर्जन के पश्चात मोहल्ले के जो लोग गीतू को पढ़ाने के पक्ष में थे वो एक जगह इकठ्ठा हुए और इस बारे में बात की।

कुछ लोगों ने मिलकर उसकी किताबों के खर्च की जिम्मेदारी ले ली, तो कुछ लोगों ने विद्यालय के फीस की।

सब कुछ तय हो जाने के बाद मदन जी और कुछ अन्य लोग गीतू के घर पहुँचे और उसकी दादी को सारी बातें बता दी।

जल्दी ही नये सत्र में गीतू का दाखिला प्रत्युष के विद्यालय में हो गया।

सबके सहयोग से गीतू कक्षा दर कक्षा आगे बढ़ती गयी। दसवीं में जब वो पूरे विद्यालय में सबसे ज्यादा नम्बरों से उत्तीर्ण हुई तब उस विद्यालय के प्राचार्य के सहयोग से उसे आगे की पढ़ाई के लिए सरकारी छात्रवृत्ति मिल गयी।

बारहवीं के साथ-साथ गीतू ने इंजीनियरिंग की प्रवेश-परीक्षा भी दी और उसे भी उत्तीर्ण कर लिया।

गीतू पहली बार इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने अपने शहर से बाहर जा रही थी।

जाने से पहले वो प्रत्युष और सभी मोहल्ले वालों से मिलने पहुँची। सभी उसकी सफलता से बहुत प्रसन्न थे खासकर प्रत्युष। सबने उसे आशीर्वाद और शुभकामनाओं के साथ विदा किया।

वक्त पंख लगाकर उड़ता गया। इंजीनियरिंग पूरी करने के बाद अब गीतू एक जानी-मानी कम्पनी में अच्छे पद पर काम करने लगी थी। उसकी दादी जो कि अब बहुत बूढ़ी हो चुकी थी, वो गीतू के साथ ही रहती थी।

एक दिन उन्होंने गीतू से कहा "बिटिया, अब ना जाने कब ईश्वर के पास से मेरा बुलावा आ जाये। एक बार मुझे मेरे शहर ले चल। अंतिम बार उस घर की मिट्टी माथे से लगाना चाहती हूँ जहाँ तेरे दादाजी मुझे ब्याह कर लाये थे।

उनकी बात सुनकर गीतू बोली "हम अपने शहर जरूर जायेंगे पर आप मुझे छोड़कर जाने की बात मत किया कीजिये।"

"अच्छा ठीक है नहीं करूँगी। अब बता हम कब जा रहे हैं?" दादी बोलीं।

गीतू ने कैलेंडर देखते हुए कहा "अगले हफ्ते बसंत-पंचमी है। तब चलते हैं दादी। प्रत्युष भैया के मोहल्ले में इस बार मैं भी पंडाल के कार्यों में भाग लूंगी।"

उसकी बात सुनकर दादी प्रसन्न हो गयी।

बसंत-पंचमी के दो दिन पहले गीतू दादी के साथ अपने शहर पहुँची।

दादी को घर पहुँचाकर गीतू तत्काल प्रत्युष से मिलने उसके घर के लिए निकल गयी।

वो मन ही मन सोच रही थी कि अब तक तो मोहल्ले में सरस्वती पूजा की तैयारियां शुरू भी हो चुकी होगी।

लेकिन जब वो वहाँ पहुँची तो ये देखकर आश्चर्यचकित रह गयी कि कहीं भी पंडाल लगने की कोई निशानी नज़र नहीं आ रही थी।

सोच में डूबी हुई जब वो प्रत्युष के घर पहुँची तब सभी उसे देखकर बहुत प्रसन्न हुए।

प्रत्युष उस वक्त तक घर नहीं आया था।

मदन जी से जब गीतू ने सरस्वती पूजा की तैयारियों के बारे में पूछा तब उन्होंने कहा "बिटिया अब इस मोहल्ले में ना पहले की तरह पंडाल लगता है ना सामूहिक पूजा होती है। सब बच्चे बड़े होकर अपने-अपने जीवन में व्यस्त हो गए हैं। उनके साथ अधिकांश माता-पिता भी दूसरे शहर में रहने चले गए। जो हैं वो अपने-आप में सीमित हो गए हैं।

प्रत्युष को ही देख लो शहर का जाना-माना उधोगपति बन गया है। घर आने की भी फुर्सत नहीं है।"

उनकी बातें सुनकर गीतू निराश हो गयी। फिर कुछ सोचकर वो प्रत्युष का इंतज़ार करने लगी।

कुछ देर के बाद जब प्रत्युष आया तब गीतू को देखकर सुखद आश्चर्य में भर गया।

एक-दूसरे का हालचाल लेने के बाद गीतू ने प्रत्युष से कहा "भैया, क्या मोहल्ले में फिर से पहले की तरह सरस्वती पूजा नहीं हो सकती?"

"हो क्यों नहीं सकती पर अब यहाँ है ही कौन और वक्त भी किसके पास है?" प्रत्युष ने कहा।

"अगर पहले आप थोड़ा सा वक्त निकालने का वचन दें तो हम मिलकर आगे और लोगों से बात करने की कोशिश कर सकते हैं।" गीतू बोली।

"चल ठीक है, अपनी बहन के लिए मैं इतना तो जरूर करूँगा।" प्रत्युष ने मुस्कुराते हुए कहा।

"फिर ठीक है। पहले तो आप ये बताइए कि हमारे बचपन वाले ग्रुप में से अभी यहाँ कौन-कौन है?" गीतू ने पूछा।

प्रत्युष ने उन लोगों के नाम जब उसे बता दिए तो गीतू ने प्रत्युष के वाट्सएप्प से सभी को मैसेज भेजकर मिलने के लिए कहा।

अधिकांश लोग घर आ चुके थे तो सभी प्रत्युष के घर इकट्ठा हो गए।

वहाँ गीतू को देखकर सभी बहुत खुश हुए।

जब गीतू ने सबके सामने पहले की तरह सरस्वती पूजा करने का प्रस्ताव रखा तो थोड़ी आनाकानी के बाद ज्यादातर लोग सहमत हो गए।

गीतू ने खुश होते हुए कहा "परसों ही सरस्वती पूजा है। आज तो रात ही हो चुकी है। इसलिए हमारे पास तैयारी के लिए सिर्फ एक दिन है। अब जल्दी-जल्दी सब लोग बताइए कि कैसे क्या करना है?"

प्रत्युष बोला "ऐसा करते है सब सुबह जल्दी जागते हैं। दफ्तर जाने से पहले कम से कम पांच घंटे मिल जाएंगे हमें। पंडाल वाले से मेरी पहचान है उसको भी सुबह ही बुला लेंगे।

फिर बची ख़रीददारी तो उसके लिए सूची बनाकर सब लोग बाँट लेते है और शाम में जल्दी दफ्तर से निकलकर सारा सामान लेकर यहाँ पहुँचते है। फिर हमेशा की तरह रात में माँ की प्रतिमा की और पंडाल की सजावट कर ली जाएगी।

सभी लोग प्रत्युष की बात से सहमत थे।

अगली सुबह सब लोग नियत समय पर पंडाल बनाने की जगह जमा हो गये और काम में लग गए।

शुरू में तो कुछ लोग थोड़े अनमने थे, लेकिन जल्दी ही आपस में बोलते-बतियाते सबमें बचपन वाला उत्साह लौट आया।

उन्हें पूजा की तैयारियों में लगे हुए देखकर मोहल्ले के बड़े-बुजुर्ग भी हाथ बँटाने आ गये।

सबके सहयोग से तय वक्त से पहले ही सारी तैयारियां हो गयी।

अगले दिन फिर से मोहल्ले में पहले की तरह रौनक थी।

सबने मिलकर विधिवत सरस्वती माँ की पूजा-अर्चना की। इसके पश्चात गीतू मंच पर पहुँची और सबको संबोधित करते हुए बोली "कुछ बरस पहले आज ही के दिन आप सबके सहयोग से मुझे सरस्वती माँ ने विद्यादान दिया था। मैं जो कुछ भी हूँ आप सबके कारण हूँ।

आज जब मैं सामर्थ्यहीन से सामर्थ्यवान हो चुकी हूँ तब मैंने ये तय किया है कि मैं अपने जैसे बच्चों की मदद के लिए एक संस्था शुरू करूँगी जिसका नाम इसी मोहल्ले के नाम पर होगा। और हम सब मिलकर हर साल यहीं इसी पूजा पंडाल में उनके हाथों में किताबों के साथ-साथ उम्मीदों का बस्ता सौंपेंगे।

उम्मीद है अब से हर साल अपने व्यस्त जीवन से कुछ वक्त निकालकर हम इसी तरह यहाँ इकट्ठे होंगे और अपनी संस्कृति को जीवित रखेंगे।"

सभी लोगों ने तालियां बजाकर गीतू की बात का समर्थन किया।

प्रत्युष के साथ-साथ और बहुत से लोग गीतू की संस्था के लिए मददगार बनकर भी आगे आये।

मोहल्ले के जो लोग दूसरे शहर में थे, वो भी पूजा-पंडाल की तस्वीरें वाट्सएप्प पर देखकर बचपन को याद कर रहे थे। जब उन्हें ये पता चला कि अब फिर से पहले की तरह हर वर्ष पूजा का आयोजन होगा तब ज्यादातर लोगों ने उसी वक्त अगले साल से पूजा में शामिल होने की योजना बना ली।

फूलों वाली उस लड़की ने आकर बेरौनक हो चुके इस मोहल्ले में एक बार फिर ऋतुराज बसंत की खूबसूरती को जीवित कर दिया था।

पीले फूलों में मुस्कुराता हुआ बसंत मानों उसकी मुस्कान के साथ एकाकार हो रहा था।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama