फर्क
फर्क
साहित्यकारों का साहित्यिक मेला लगा हुआ था। मंच पर आसीन गर्व से बैठे साहित्यकार और सामने हॉल में बैठे नवोदित रचनाकार अपनी अपनी सोच में खोये हुए थे।
नवोदित रचनाकार होने के नाते-
हर कविता/कहानी पर लाइक कमेंट्स की चाह ! आपको मेरी कविता पसंद आयी, बहुत बहुत धन्यवाद। आपको कोई कमी लगे तो बताना ! अच्छा लगता है जब आप कमेंट्स करते हैं !
अरे वाह ! बहुत बहुत शुक्रिया !
एक आस -
हर ओर मेरा डंका बजे, मेरी पहचान स्थापित हो, मेरी जय जयकार हो। प्यार-व्यार सब बेकार....बस प्रतिष्ठित रचनाकार बन जाऊँ, एक बार ! फिर और कुछ नहीं चाहिए।
प्रतिष्ठित रचनाकार होने के नाते-
फेक लाइक, कमेंट्स से परेशान। झूठी तारीफों का पुलिंदा भर लगते हैं ये सब। आलोचना का गर्म बाजार।
साख को लेकर बैचैनी।
बस एक ही आस-
कोई तो हो तो इन सबसे से जुदा हो, जो मुझे समझे, मुझे चाहे, मेरे वजूद को पहचाने, जहाँ कोई चापलूसी, कोई मक्कारी, कोई आडंबर, कोई चालबाजी न हो। एक-दूसरे से आगे निकलने की अंधी होड़ न हो, हो तो बस गहरा विश्वास और अथाह प्रेम !