पहली कहानी के पीछे की प्रेरणा
पहली कहानी के पीछे की प्रेरणा
पहले में हर उस भिखारी से नफ़रत करती थी,जो हाथ - पांव होते हुए भी भीख मांगता था, मैं कार की खिड़की खटखटाकर भीख मांगते बच्चों को भी कुछ देना नहीं उचित समझती थी,यह कहना ग़लत न होगा कि मैं हर गरीब को ही उसकी गरीबी का जिम्मेदार मानती थी।मैने कभी अनुमान नहीं लगाया था कि प्रतिकूल परिस्थितियां भी अच्छे खासे खाते - खेलते परिवार को सड़क का भिखारी बना सकती हैं।
यह घटना उस समय की है जब हम किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम में अपने स्कूल की तरफ से बच्चों को लेकर दिल्ली पहुंचे थे। इस कार्यक्रम का उद्देश्य बच्चों को अपनी सांस्कृतिक विरासत से परिचित कराना था। अनेक स्कूलों से अध्यापक और विद्यार्थी आए थे।हम अध्यापिकाएं टीचर्स हॉस्टल में ठहराई गई थीं और लड़के ,लड़कियां अलग अलग बच्चों के हॉस्टल में ठहराए गए थे। वहीं मेरी मुलाकात एक महिला से हुई।
ये महिला बहुत निपुणता और स्नेह से हम सबका ख्याल रख रही थीं। उनके मृदु व्यवहार ने सभी अध्यापिकाओं का दिल जीत लिया था।वह कुशलता से सबकी मदद कर रही थीं वह भी एक मीठी मुस्कान के साथ।
मैने पूछा आप यहां की नहीं लगती,यहां कैसे ?उन्होंने कहा,यह लंबी दास्तान है,अभी आप चार दिन यहां हैं ,फुरसत में सुनिएगा।
लंच ब्रेक में हम सुबह के कार्यक्रमों की चर्चा कर रहे थे,मैने कहा,ये संस्था अतुलनीय कार्य कर रही है और वह भी,सरकारों से वित्तीय अपेक्षा न रखते हुए ऐसी स्वयंसेवी संस्थाएं देश को अप्रत्यक्ष रूप से कितनी मदद कर रही हैं।
आज जब अनेक ऐसी संस्थाओं पर सवालिया निशान लगते रहते हैं, ऐसे में ईमानदारी से काम करना कितना कठिन होता होगा !एक अन्य अध्यापिका ने कहा,जब भी कोई डोनेशन मांगता है तो हमें लगता है,अपना मतलब साधेगा।तीसरी ने कहा, मैं,खुद किसी संस्थान को दान नहीं करती जो गरीबों की सेवा के नाम पर मांगते हैं। पता नहीं, उन तक पहुंचता भी है,या नहीं।अच्छा तो यह है कि अपने आसपास के जरूरतमंद लोगों की सहायता करो।मैने देखा कि वह महिला ध्यान से हमारी बातचीत सुन रही थी।उनके चेहरे पर उठते - गिरते भाव भी मैं देख पा रही थी।मैने सोचा इनसे एकांत में बात करना उचित होगा।
शाम को जब बाकी अध्यापिकाएं शॉपिंग के लिए निकलीं तो मैने डोरोथी,(यह उस महिला का नाम था जो बाद में मुझे पता चला) को बुलाया और पूछा कि अगर वह खाली हो तो मैं सुबह की चर्चा से जुड़ी अपनी राय के बारे में उनका जवाब ,उनसे सुनना चाहूंगी।
वह थोड़ी देर में आ गई और इस तरह शुरू हुई हमारी बातें।
उस रात जब मेरा घर धू - धू कर जल उठा तो मेरी गोद के छह माह के शिशु के अलावा , मेरे तीन और बच्चे जो क्रमशः तीन ,पांच और सात वर्ष के थे... अचानक हम बेघर और बेसहारा होकर सड़क पर आ गए थे। जब अग्निशमन दल ने हमें बाहर निकाला तो मैं रात को पहने हुए गाउन में ही थी,पैरों में स्लीपर्स तक नहीं थे। कड़कड़ाती सर्दी की रात थी।हमारे पैरों में न मोजे थे , न बदन पर कोई गर्म कपड़े।हमे एक शेल्टर होम ले जाया गया ।हम सदमे में थे। मुझे नहीं पता हमने वहां दो हफ्ते कैसे बिताए।
ये शेल्टर होम क्या होते हैं ?मैने पूछा
बेघर लोगों के लिए बनाई गई शरणस्थली समझिए। जहां हर तरह के लोग ,मेरा मतलब...आप समझ रही हैं न ?किसी आदमी ने तो मेरी सात साल की बेटी को...कोशिश की।मैने दर्जनों शिकायतें कीं तो ,हमे एक अलग कमरा दे दिया गया जिसमें केवल एक तख्त था।
"चलो,कम से कम अलग कमरा तो मिला।" मैने कहा।
"हां,क्योंकि हम आपदा का शिकार थे।किसी
नशे के आदी नहीं थे, अपराधी नहीं थे।...वरना"
एक त्रासदी से गुजरी स्त्री को, उस शेल्टर होम में, समाज के उस उपेक्षित ,घृणित ,तबके के साथ रहना ...एक - एक दिन वर्ष के समान बीत रहा था।
एक महीने से हम उन्हीं कपड़ों में थे।मेरे बच्चे भूख से चिल्लाते,रोते ,गिड़गिड़ाते थे।कुछ मांगने पर वे कहते,तुम अपने आप को क्या समझती हो ?तुम्हें ऐसे ही रहना होगा, रहना है तो रहो,वरना चलती बनो।
जिंदगी नर्क से भी बदतर थी।एक दिन मैंने सोच लिया कि , मैं ही,मेरा खुदा हूं।कोई और मेरी मदद नहीं करेगा।अब मैं हर रोज काम ढूंढने , बच्चों को लेकर निकल पड़ती।
मगर मेरे कपड़ों और मेरी हालत को देख कर कोई मुझे पास खड़े भी नहीं रहने देता। आखिर एक दयावन इन्सान ने मेरी दास्तान सुनी,मुझ पर यकीन किया और मेरी सहायता का भरोसा दिया।
उन्होंने उस अग्न्निकांड में बर्बाद हुए परिवार के बारे में पढ़ा था,मगर बाद में उनका क्या हुआ यह वे नहीं जान सके ।
उन्होंने मुझे घर की देखभाल का काम सौंप दिया,साथ ही सर्वेंट क्वार्टर में रहने की सुविधा भी दे दी।
बड़ा दिन आनेवाला था।मेरे बच्चों ने कहा,' "मां सेंटा क्लॉज हम तक कैसे पहुंचेगा,अब तो हम उस घर में नहीं रहते ?"
मैं उनकी मासूमियत से भरी बातें सुनकर क्या कहती !मैने उन्हें बहलाने भर को कह दिया,"मैं सेंटा क्लॉज को पत्र लिख कर यहां का पता दे दूंगी।"भोले बच्चे मेरी बात का विश्वास कर खुशी से उछल - कूद करने लगे।मगर मैं और भी घबरा गई....जब बच्चों को कोई भी उपहार नहीं मिलेंगे तो उनके विश्वास को कितनी ठेस लगेगी।,मैने उनकी क्षणिक खुशी के लिए झूठ क्यों बोला?
अगले दिन मैने देखा मेरा मंझला बेटा मालिक से कुछ बातें कर रहा था।मालिक, हूं, हां,अच्छा में जवाब दे रहे थे। मैं काम निपटाने में लग गई।
हम हर रात ईश्वर का शुक्रिया करते कि उसने हमारे सिर पर छत और इज्जत की रोटी बक्शी है।
मालिक ने कहा कि वह मुझे अपना घर फिर से बनवाने के लिए एन जी ओ से मदद दिलवाने की कोशिश कर रहे हैं।ऊपरवाले का करम और रहम रहा तो नया साल हम अपने घर में मनाएंगे।मेरे पास लफ्ज़ नहीं थे मैं उन भले मानस का शुक्रिया कैसे करती !
अगले रोज क्रिसमस इव थी। मैं बेचैन थी।बच्चे उत्साह से लबरेज़ थे,उन्हें सेंटा क्लॉज पर पूरा यकीन था।
सुबह क्या देखती हूं,कुछ भद्र महिलाएं हाथों में बड़े बड़े पैकेट पकड़े मेरी ओर ही आ रही हैं।नजदीक आने पर उन्होंने पूछा,"क्या आप मिसेज डोरोथी हैं?"मेरे सिर हिलाने पर उन्होंने वे पैकेट मुझे पकड़ाते हुए ," मैरी क्रिसमस " कहा। मैं क्या देख रही थी,मुझे यकीन नहीं हो रहा था!
मैने कहा",यह सब..?"
उन्होंने कहा मिस्टर स्मिथ से हमें मालूम पड़ा कि आप पर कैसी मुसीबत आन पड़ी, और यह कि आपने हार नहीं मानी,हमारी तरफ से एक खुद्दार महिला को त्योहार का छोटा सा तोहफा है,।त्योहार का मजा तो खुशियां बांटने में ही है न ? उम्मीद है आपके बच्चों को यह पसंद आयेगा।
मुझे उस हर महिला में मदर मैरी दिखीं।मैने अपनी जिंदगी में इतने भले लोग नहीं देखे थे। मैने जाना कि ईश्वर दुख देता है तो नेक इंसानों के रूप में मददगार फ़रिश्ते भी भेज देता है।
उन सब की वजह से हमारा क्रिसमस का अवसर त्योहार बन सका।मिस्टर स्मिथ के प्रयत्नों से मुझे घर बनाने में सहायता मिली।मैंने अपने खाली समय मैने छुटपुट काम करने शुरू किए।एक दिन इस संस्था की संचालिका ने मुझे अपने साथ काम करने का ऑफर दिया।तबसे नौ वर्ष हो गए, मैं इनके साथ हूं।
मेरी जिंदगी में खुशी के पल लौटने लगे जब मै बिल से मिली ।बिल डिपार्टमेंटल स्टोर चलाते हैं।हमारी मुलाकातें औपचारिक ही हुई थीं,धीरे - धीरे हमें अहसास हुआ कि हम एक दूसरे के लिए ही बने हैं।दो वर्षों के अंतराल के बाद हमने शादी कर ली।वह मेरे बच्चों के बेहतर पिता साबित हुए हैं।
मेरे बच्चे पढ़ - लिख रहे हैं।बड़ा इस साल ग्रेजुएशन पूरा कर लेगा।हमने अपना बुरा वक्त पीछे छोड़ दिया है।
"मैडम,हमारी पांचों उंगलियां समान नहीं होती, ऐसे ही सभी एन जी ओ फ्रॉड नहीं होते।फिर आसपास के गरीब भी कहीं आपकी दया का फायदा उठाते हैं ,या नहीं यह कैसे कहा जा सकता है ?"
"आप तो इतना पढ़ी - लिखी है, मैं, मैं.. क्या आपको बताऊंगी ? बस इतना ही कहूंगी कि किसी को उसके कपड़ों और चेहरे को देखने मात्र से किसी नतीजे पर नहीं पहुंचना चाहिए।"
मिस्टर स्मिथ ने ऐसा किया होता तो,आज पांच जिंदगियां नष्ट हो चुकी होतीं।
मैं क्या कहती ,में भी उन्हीं में से हूं जो भिखारी को भीख न देकर सीख देती हूं कि कमा कर खाओ। मगर कमाने के अवसर कौन देगा ?
मगर मुझे लगता है मैं गरीबी को लाचारी और कामचोरी बनने से बचाना चाहती हूं।
मिसेज डोरोथी से मिलकर भी यही लगा।