तालिब हुसैन रहबर

Romance Tragedy Classics Abstract

4.8  

तालिब हुसैन रहबर

Romance Tragedy Classics Abstract

फ्लैट नंबर 126

फ्लैट नंबर 126

19 mins
24K




अगस्त चल रहा था बरसात का महिना तो न था पर पिछले हफ्ते से काफी बारिश हो रही थी लेकिन कुछ दिनों से बादल एक दम साफ थे। आसमान समुंदर के पानी की तरह यकायक नीला था । चिड़ियों की चहचहाहट पूरे वातावरण में एक संगीत-सा गा रही थी। शहर की शोरगुल भरी ज़िंदगी से दूर की ही दुनिया थी कॉलेज कैम्पस की। चारों तरफ अनेकों प्रकार के पेड़,डिज़ाइनदार कटे हुए छोटे-छोटे पौधे और रंग-बिरंगी दीवारे, खुला मैदान मानो एक स्वर्ग उतर आता हो कॉलेज में ।सबकी सबसे ज़्यादा पसंदीदा जगह होती थी कैंटीन। चारों तरफ गोल टेबलें, टहलते बच्चे और टीचर्स आपस में गप्पे मार रहे थे। हवा में घूमती चाय और समोसे की महक सबको अपनी ओर खींच रही थी । एक कोने वाली टेबल पर सुनील चाय समोसे खा रहा था और अपने दोस्तों से बातें कर रहा था। उसके सुनाये गए चुट्कुले और वो दोनों महफिल की शान थे । उसके चुट्कुले सिलसिले दर सिलसिले चलते रहते और उसके दोस्त अमित,फ़ारूक और हिना ठहाके मार मार कर हँसते और चाय पीते जाते । तभी देखा श्याम दौड़ता हुआ उनकी तरफ आ रहा है । उसने आते ही कहा "अबे तुम यहाँ चाय पी रहे हो और वहाँ सक्सेना सर का लैक्चर शुरू हो गया।" सभी दोस्त जल्दी-जल्दी चाय ख़त्म कर के क्लास की तरफ दौड़ पड़े । "सर मेय आइ कम इन?" सभी ने एक स्वर में कहा और अंदर जा कर पीछे की कुर्सियों पर बैठ गए लेकिन आज क्लास में बच्चों की तादात पहले से अधिक थी। फारूक़ ने आगे बैठी अंजली से पूछा "यार आज इतनी भीड़ कैसे है और ये पड़ोस की क्लास वाले भी हमारी क्लास में आ गए क्या क्लास लेने?" और हँस पड़ा। अंजली ने चुप रहने के इशारे से कहा कि "ये सभी नए आए हैं आज ही इनका एड्मिशन हुआ है।" क्लास ओवर हुई तो सब उठ खड़े हुए और बाहर जाने लगे सुनील की नज़र आख़िरी लाइन में हल्के गुलाबी रंग में बैठी लड़की पर जा कर अटक गयी । आँखों में काजल लगाए वो बड़ी-बड़ी आँखें,गुलाबी होठ ,सूरज की किरणों-सा सुनहरा रंग,चुलबुल मिज़ाज लड़की जो अपने साथ बैठी लड़कियों से हँसी मज़ाक कर रही थी । सुनील उसे एक टक देखता रहा । तभी फारूक की आवाज़ आई "भाई क्या कर रहा है जल्दी चल नहीं तो कैंटीन पर समोसे न मिलेंगे।" सुनील को जैसे जबर्दस्ती ले जाया गया ध्यान तो उसका उसी गुलाबी गुलाब पर टिका था जो क्लास में अपना नूर छलका रहा था । उसका चेहरा,उसकी झील-सी आँखें जिनमें आज सुनील खो जाना चाहता था,उसकी वो दंतुरित मुसकान एक पल के लिए भी सुनील से अलग न हुई । हीना से उसे झिंझोड़ते हुए कहा "कहाँ खो गया सुनील? आज सुबह से देख रही हूँ यह कहीं खोया हुआ है। क्लास में भी पूरे टाइम वो गुलाबी सूट वाली को निहारता रहा। अमीत और फ़रूक उसे छेड़ने लगे "भाई क्या बात है ? हमें भी बता दे।"

"अरे कुछ नहीं यह हीना तो पागल है कुछ भी बोलती रहती है । तुम इसकी बातों को संज़ीदा मत लो" – सुनील मुस्कुराते हुए इतना कह कर चल दिया।

अगली सुबह सुनील कॉलेज में जल्दी ही आ गया था सोचा आज जब वो लड़की आएगी तो उससे बात करने की कोशिश करेगा और अमीत और हीना भी नहीं आए हैं तो उसे छेड़ेंगे भी नहीं। सुबह- सुबह का वक़्त था तो सफाई वालों के सिवा उसे वहाँ कोई दिखाई न दिया वो सोचने लगा "सुबह का मौसम आज ही अच्छा है या हमेशा इतना सुहावना होता है?" अब सुनील को क्या पता उसकी सुबह भी तो अमित के फोन से होती थी । जब उसे कॉलेज जबरदस्ती बुलाया जाता था और मुस्कुराते हुए वह जल्दी से क्लास की तरफ गया अंदर जैसे ही कदम रखा अगले ही क्षण उसके कदम क्लास के बाहर आ गए। उससे पहले भी कोई आ गया था। उसे लगा इतनी सुबह कौन आ सकता है? उसने अंदर झांक के देखा तो वही लड़की सबसे आगे वाली सीट पर बैठी हुयी थी। सुनील के तो अब अंदर कदम रखते में भी पैर काँप रहे थे। उसने हिम्मत की और अंदर दाखिल हो गया। सुनील ने अंदर जाकर उस लड़की को देखा वो कुछ कहता उससे पहले उस लड़की ने ही कह दिया "गुड मॉर्निंग" सुनील ने भी कंपकपाती आवाज़ में जवाज़ दिया –

"ग्गूड मॉर्निंग"

यह सुनते ही उसकी हँसी छूट गयी और कहा – "आप हकला क्यूँ रहे हैं कल तो नहीं हकला रहे थे।" अब सुनील को समझ नहीं आ रहा था कि वह अब क्या जवाब दे। उसने बस इतना कहा "मैं मैं कहाँ हकला रहा हूँ? " वो और तेज़ हंसने लगी । अब तो सुनील को लगा जैसे उसने सुबह तो अभी देखी है बाहर तो बस सूरज उगा है,पंछी गीत गा रहे हैं, लोग ऑफिस जाने की तैयारी में हैं , कुत्ते अलसाए हुए है यहाँ से वहाँ घूम रहे हैं पर सुबह तो अभी हुई है, इसकी मुस्कान के साथ। उसने सुनील को अपने पास बैठने को कहा। आपका नाम क्या है? सुनील ने कहा –

"सुनील" और आपका

"सुनीता शर्मा" 

सुनीता जैसे कि सुनील को संसार में सबसे मनोरम नाम यही लग रहा था । सुनीता उसे अपने बारे में बता रही थी कि कहाँ से उसने अपनी पढ़ाई पूरी की और आज सुबह आकर वो डर गयी जब उसे कॉलेज में कोई न दिखा लेकिन सुनील तो मानो किसी और दुनिया में खोया हुआ था । सुनीता बोलती गयी सुनील उसकी आँखों में ख़ुद का चेहरा निहारता रहा। धीरे-धीरे अब सुनील की झिझक कम हो रही थी और उसने सुनीता को इतनी देर में दसियों चुट्कुले सुना दिए और हर चुट्कुले पर सुनीता ज्यों-ज्यों हँसती सुनील और सुनाता जाता। वह तो बस उसका हँसता हुआ चेहरा देख कर खुश होता जा रहा था। थोड़ी ही देर में क्लास के और बच्चे आने लगे सुनील अमित और हिना के आने से पहले ही पीछे जा कर बैठ गया ।

सुनील ने उससे कहा – "क्लास के बाद कैंटीन चलें ? यहाँ समोसे बहुत अच्छे मिलते हैं।"

"ज़रूर"

क्लास ख़त्म होने के बाद सभी कैंटीन की तरफ चल दिए सुनील ने सुनीता को सबसे मिलाया। कैंटीन के समोसे की तारीफ़ें हुईं, चाय का स्वाद चखा गया ...उसने आज सबको ख़ुद ही चाय मंगाई। अमित और हिना सुनील को ऐसा करते चुपचाप देख रहे थे। फिर सुनील ने सुनीता को लाइब्रेरी,प्ले ग्राउंड,म्यूजिक लैब सब कुछ दिखाया जैसे आज ही वो इस कॉलेज को सुनीता से परिचित करा देना चाहता हो। हिना और अमित सुनील को देखे जा रहे थे । सुनीता के जाते ही दोनों से उसे दबोच लिया । "क्यों भाई अब तो हम पुराने हो गए क्यों अमित" – हिना ने अमित की तरफ सुनील को छेड़ते हुए कहा।

अमित ने भी हिना की बात में हामी भरी और कहा - "और नहीं तो क्या जनाब को उसका गुलाब दिख गया अब हमें कहाँ देखेंगे महाराज ? हिना तूने कल सही कहा था यह उसे कल ताक रहा होगा और देखो आज तो पूरा कैम्पस भी घुमाने चल दिये जनाब । हम तो जैसे कुछ हैं ही नहीं।"

"अरे तुम दोनों भी कैसी बात कर रहे हो वो नई आई है तो बस उसे कॉलेज घूमा दिया ताकि बेचारी को कोई तकलीफ न हो।"

"लो भाई अब वो बेचारी भी हो गयी" और दोनों ठहाके मार कर हँसने लगे।

दोनों उसे छेड़ते रहे और बेचारा सुनील उन्हें यकीन दिलाता रहा कि सुनीता महज़ उसकी दोस्त है ।

अब सुनील और सुनीता की दोस्ती गहरी होने लगी या कहें तो सुनिल की मोहब्बत। सुनीता के साथ अब वो ज़्यादा वक़्त बिताने लगा यहाँ-वहाँ की बातें होतीं। सुनीता उसे फोन में अपने हाथ से बने थारपोश,कभी कढ़ाई की गई लक्ष्मी जी की तस्वीर दिखाती। उसने बताया कि उसकी एक छोटी बहन है,दो भाई हैं और वो पास के लाजपत नगर की कृष्णा मार्के में फ्लैट नंबर 126 में रहती है ।

सुनील अब प्रतिदिन उसके साथ ही रहता उसे बोलते हुए सुनता । दोनों साथ में ज़्यादा समय बिताने लगे। सुनीता उसके लिए भी लंच लाने लगी थी। सुनील को लगा कि सुनीता भी सुनील को पसंद करती है भला करे भी क्यों न सुनील है ही ऐसा। सुनील ने सुनीता को बताया था कि वो उसे पसंद करता है। इस पर सुनीता बस हँस दी थी सुनील को लगा कि सुनीता भी उससे बहुत पसंद करती है। उसने एक रोज़ कहा था –

"सुनीता! तुम अपने पति से क्या-क्या अपेक्षाएँ रखती हो?"

"बस ज़्यादा नहीं वो हमें ख़ुश रखे और हम जो करना चाहे हमारा साथ दे।"- सुनीता ने अपने चिरपरिचित अंदाज़ में सुनील को जवाब दे दिया।

सुनील को लगा कि सुनीता तो उसके बारे में ही बात कर रही है। अब तो मानो सुनील के सपनों को आधार मिलने लगा था।

सुनील अपने रूम पर आता तो उसके दिमाग में बस यही सब घूमता रहता।सुनीता की कढ़ाई की तस्वीर,सोफ़ा के कवर और एक चीज जो उसके दिमाग में घर कर गयी फ्लैट नंबर 126।अब तो सुनीता जैसे-जैसे अपने घर के बारे में बताती और अपनी बनाई पेंटिंग को दिखाती सुनील रूम पर आकार अपने रूम को वैसा ही आकार देने लगता।उसने तो अपने गेट के अंदर की तरफ फ्लैट नंबर 126 लिख दिया था और बाज़ार से वैसी ही वस्तुएँ ला कर अपने रूम में सजाने लगा। यही सोचता कि सुनीता जब आएगी तो उसे सब वैसा ही मिले जैसा उसके घर पर है।सुनील और सुनीता के किस्से अब कॉलेज में फैलने लगे थे और शायद सुनीता को भी इस बात का ख़्याल था कि वह उसे पसंद नहीं प्यार करता है। एक रोज़ वह दिन आ ही गया जब सुनील को सुनीता के घर जाने का मौका मिला। हुआ यूं कि सुनीता कुछ दिन से आ नहीं रही थी और सुनील की परेशानी भी बढ़ रही थी तभी ऐसे में सुनीता का फोन आया कि सुनील सुनो मेरे घर आकर मुझे नोट्स दे जाओ घर में ज़रूरी काम की वजह से वह एक दो दिन कॉलेज नहीं आ सकेगी और परीक्षा भी नजदीक थीं।सुनील ने फौरन हामी भर दी आख़िर इसी दिन का तो वह कब से इंतज़ार कर रहा था और वह दिन अब आ ही गया था ।

अगले दिन सुनील कॉलेज में कुछ अलग की रंग में दिख रहा था जैसे उसे आज लाखों की लॉटरी लग गयी हो अब प्यार में महबूब के घर की पहली मुलाक़ात लॉटरी से कम भी तो नहीं होती । अमित और हिना समझ नहीं पा रहे थे कि आज सुनील को क्या हुआ आज इतना खुश क्यों है पहले तो कभी उसे ऐसा नहीं देखा। दोनों ने उससे पूछना चाहा पर उसने "कुछ नहीं" कह कर टाल दिया ।

शाम का वक़्त होने को था सुनील आनन-फानन सुनीता के घर कि ओर बढ़ा । आज उसे दुनिया का सबसे बड़ा खज़ाना मिलने वाला था जिस फ्लैट नंबर 126 के वो हजारों सपने अपनी आँखों में पिरो चुका था आज उसे देखने का मौका मिल रहा था। रास्ते भर वह यही सोचता रहा कि सुनीता का घर ऐसा होगा वैसा होगा,वो अंदर जाएगा सबसे पहले उसके पापा के पैर छूएगा,फिर सुनीता से घंटों बात करेगा,सुनीता उसे अपना सारा घर दिखाएगी और लक्ष्मी जी की पेंटिंग भी जिसका ज़िक्र करते-करते शायद ही उसकी ज़ुबान कभी थकती थी ।

हल्के हरे रंग से रंगी हुयी बिल्डिंग जिस पर लोहे का गेट चढ़ा था सुनील को नज़र आई। बिल्डिंग से जुड़ा हरा-भरा बगीचा जो शायद हाल ही की सरकार ने बनवाया था।बगीचे में ओपन जिम खुली थी।कुछ बच्चे अब भी उन झूलों पर झूल रहे थे। बिल्डिंग के गार्ड ने सुनील से रजिस्टर पर उसका ब्यौरा लिया और जाने दिय।सुनील जैसे-जैसे सुनीता के घर की तरफ बढ़ता उसके पैर कांपना शुरू हो गए और दिल की धड़कन भी तेज़ हो गयी कि न जाने अंदर क्या होगा कैसा होगा ? जीतने भी ख़्याल सुनील ने बो रखे थे अब सब हवा होते जा रहे थे। उसने दरवाजे की घंटी बजाई अंदर से एक 13-14 साल की पतली सी लड़की ने गेट खोला शायद यह आरती थी सुनीता की सबसे छोटी बहन। उसने अपनी पतली आवाज़ में पूछा – आप कौन?

"जी मैं सुनिल! यह सुनीता का घर है न?"   

"जी हाँ आइए दीदी कब से आपका ही इंतज़ार कर रही थीं"- आरती ने सुनील को सोफ़े पर बैठने का इशारा किया और किचन की ओर चली गयी। थोड़ी देर में एक गिलास में पानी लाकर उसने सुनील को दिया और कहा "दीदी आ रही हैं पूजा कर रही हैं"

सुनील ने पानी पिया और घर की दीवारों को निहारने लगे । एक दम हूबहू वैसा ही जैसा सुनीता बताया करती थी। दीवारों पर उसके द्वारा की गयी पेंटिंग, गेट पर लटकी मोतियों और प्लास्टिक की झालर,सोफ़े पर कढ़ाईदार कवर,दीवारों पर हल्का गुलाबी कलर उसे सुनीता से पहली मुलाक़ात की याद दिला रहा था जब उसने सुनीता को क्लास में देखा था,घर कुछ ज़्यादा ही साफ और सजा हुआ लग रहा था ।कुछ विशेष कारण था या सुनीता ऐसे ही घर को सजा कर रखती है यह तो सुनीता ही बता सकती थी।

सुनील अपने ही ख्यालों में खो गया। शादी के बाद सुनील और सुनीता के भी दो बच्चे होंगे,अरे नहीं तीन हाँ तीन। जिसमें एक लड़की दो लड़के। लड़की की शक्ल सुनीता पर जाएगी और लड़कों की मेरे पर। एक को डॉक्टर बनाएगा,एक को इंजीनियर और हाँ लड़की को वो वकील बनाएगा। सुनीता का रसोई में हाथ बटाएगा,हर सनडे सब घूमने जाया करेंगे,घर में सुनीता की पसंद की सारी चीजें रखी होंगी और हाँ दीवारों का रंग वो भी हल्का गुलाबी ही रखेगा ताकि उसे सुनीता से पहली मुलाक़ात की याद दिलाता रहे । सुनील अपने ख़्यालों में खोया ही था कि इतने में सुनीता के पापा अंदर से निकल कर आए। सुनील स्तब्ध हो गया कि अब क्या करे, उसने तो सोचा था कि सुनीता उसके पापा से मिलाएगी। ये अचानक आ गए। सुनील उठा और जल्दी से उसके पापा के पैर छूते हुए प्रणाम कहा ।

"जीते रहो बेटा और कैसे हो" – सुनीता के पापा ने मुस्कुरा कर सोफ़े पर बैठते हुए कहा-

"अरे आरती! शिशिर! कहाँ हो भाई बिटिया के कॉलेज से उसका दोस्त कब से बैठा है नाश्ता-वाशता लाओगे या नहीं"

"अभी लाया" अंदर से आवाज़ आई ।

"नाम का है बेटा?"

"जी! जी! सुनील!"

"अच्छा पूरो नाम जेई है? "

"जी नहीं सुनील पाठक"

"अच्छा हमाई जात के हो"

सुनील को यह सुन कर थोड़ा अचरज हुआ पर उसे एक खुशी हुई उसने मन ही मन सोचा चलो एक बात तो तय है कि उसकी मोहब्बत जाति के हाथों नहीं टूटेगी । अब तो मानो सुनील के मन में शादी की शहनाई बजने लगी थी और उसे सब कुछ मिलता-सा लग रहा था। तभी अंदर से सुनीता पूजा सम्पन्न करके आ गयी और अपने पापा के पास आकार खड़ी हो गयी और कहने लगी-

"पापा! सुनील को कुछ खिलाओगे भी या ऐसे ही व्रत रखाने का इरादा है।"

सभी ठहाके मार के हंसने लगे,लेकिन सुनील अब भी घर को देखने में ही व्यस्त था,कभी दीवारों को देखता तो कभी अपने दिल की दीवारों को देखता जिसका रंग भी गुलाबी हो गया था जहां सुनीता के घर की तरह सभी चीज़ें उसके दिल में मौजूद थीं। ट्रॉफियाँ,सर्टिफिकेट जिन्हें सुनीता और शिशिर जीत कर लाये थे।एक फ़ैमिली फोटो। सुनीता की फोटोज जो उन दीवारों को और भी सुसज्जित कर रहीं थीं और सुनील ने अपने दिल का नाम भी फ्लैट नंबर 126 रख लिया था ।सुनीता के पिताजी कॉलेज में हिन्दी के शिक्षक थे इसलिए घर पर ब्रजभाषा ही बोला करते थे। तीनों के बीच कॉलेज को लेकर काफ़ी बातें हुई। सुनीता ने बताया कि कैसे सभी सुनील के चुटकुलों के दीवाने हैं ।उसे बेसन के लड्डू बहुत पसंद हैं ,छोटी-छोटी बातें सुनीता सबको बड़े चाव से सबको बता रही थी मानो सुनील को वैसा ही लग रहा था जैसा एक नव विवाहित बधू अपने पति की प्रशंसा करते नहीं थकती। इसने में शिशिर नाश्ते का थाल ले कर आ गया। चाय ,नमकीन ,बिस्किट और सुनील के मनपसंद बेसन के लड्डू । सुनीता को भी बेसन के लड्डू ही पसंद थे। सुनीता और उसके पापा सुनील की एक नए दामाद की तरह उसकी सेवा पानी में लगे थे । सुनील को लग गया था कि भाई कुछ भी हो ससुराल में खातिरदारी तो खूब होती है। तभी सुनीता के पापा ने सुनील को देखते हुए कहा –

"अरे सुनील! जे बेसन के लड्डू तो खाओ तुम्हें तो पसंद हैं न और सुनीता ने अपने हाथन से बनाए हैं इसे खाना बनाने को बहुत सोक है"

सुनील जैसे ही लड्डू उठाने जा रहा था तभी सुनीता के पापा ने कहा – "भगवान जाने फिर कब जाके हाथ के लड्डू खाबे को मिलें,लड़कियां इतनी जल्दी बड़ी हो जाती है कि पता भी नहीं चलता अभी तो ऐसा लगता है मानो परसों ही की बात है सुनीता हमाई उंगलीन को पकड़ के पूरे घर में घूमती, सबन को सताती और अपनी अम्मा के संग रसोई में हाथ बटाती और आज देखो कुछई दिनन के बाद हम सबकूँ छोड़ के चली जइये। अभई दो दिना पहले जाके सगाई है गयी हमे तो यकीन न है रओ"

सुनील की आँखें मानों फटी की फटी रह गईं। हाथ का लड्डू जहाँ था वही जम गया । उसे अपने कानों पर ज़रा भी यकीन न हुआ कि उसने सही सुना 'सुनीता की सगाई' नहीं ऐसा नहीं हो सकता।अच्छा तो इसलिए सुनीता कुछ दिन से कॉलेज नहीं आ रही थी। यही वह ज़रूरी काम था जिसके बारे में सुनीता कह रही थी । इसलिए यह घर इतना सजा हुआ है । यह घर जो सुनील को अब तक स्वर्ग से भी सुंदर लग रहा था अब उस घर की एक-एक चीज उसे काटने को दौड़ रही थी। यह सजावट,तस्वीरें,सोफा,मूर्ति सब मानों उसे कह रहे हो "सुनील तू यहाँ क्यों आया था?" "क्या इसी के लिए यही सुनने?" सुनीता के पापा ने आगे क्या कहा क्या नहीं सुनील को कुछ भी पता न चला वो तो बेहोशी की हालत में वहाँ बैठा हुआ था और उसे याद था तो बस "दो दिन पहले सुनीता की सगाई हो गयी" लेकिन उसने सुनील को क्यों नहीं बताया? 

सुनील अब जल्द से जल्द वहाँ से चला जाना चाहता था उसने जल्दी से सबसे विदा ली और चल दिया । सुनीता सोचने लगी इसे अचानक क्या हुआ? सुनील सुनीता के घर से कब अपने रूम पर आ गया उसे नहीं पता ? रास्ते में कौन मिला कौन नहीं? रात के ग्यारह बज चुके थे उसे उसका भी पता न था। सुनील ने खुद को कमरे में बंद कर लिया और ज़ारों-क़तार रोने लगा कि आख़िर क्यों सुनीता ने उसे एक बार भी क्यों नहीं बताया कि उसकी सगाई होने वाली है। सुनीता को तो पता था न कि सुनील उसे पसंद करता है फिर भी? वो तो सोच रहा था कि आज सुनीता के घर वालों से मिल लेगा और जल्द ही सुनीता से कह देगा –"सुनीता मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ क्या तुम मुझसे शादी करोगी?" सब कुछ कैसे एक पल में ख़त्म हो गया उसे पता भी न चला और उसके सपने जो उसने सजा लिए थे, वो बच्चे.....इंजीनियर.....डॉक्टर.....वकील.....सुनीता को हमेशा ख़ुश रखना .......सब एक पल में ख़त्म हो जाएगा और इस तरह उसने कभी सपने में भी न सोचा था । ज़िंदगी कैसे एक पल में सब कुछ छीन लेती है उसे दिख रहा था। सुनील इन सब बातों को सोचता और ज़्यादा ही रोता। पूरी रात सुनील सोचता और रोता,रोता और सोचता और फिर रोता। उसे आज ऐसा ही महसूस हो रहा था मानो जैसे किसी कच्चे घर की दीवारों को किसी ने पानी डाल कर बहा दिया हो,जैसे कोई किसान बीज बोए और वैसे ही बारिश पड़ जाए।

अगले कुछ दिन सुनील कॉलेज नहीं गया और न ही अमित और हिना का कॉल उठाया। सुनील जब कॉलेज गया तो मानो आज उसे सब कुछ अजनबी-सा लगा।ये पेड़,ये रास्ता जिन पर से रोजाना वह कॉलेज जाता था पर आज जैसे ये उसे पीछे धकेल रहे थे । कॉलेज में अंदर जाते ही हिना ने सुनील को देख लिया ।

"सुनील यार कहा था तू? इतने दिन से दिखा नहीं न कॉल उठा रहा था न कोई मैसेज? तबीयत तो ठीक है तेरी?" – हिना ने एक सांस में कई सवाल सुनील की ओर दाग दिए ।

"कुछ नहीं ऐसे ही"-सुनील ने इतना कहा और चला गया। सुनील ने सबसे बात करना बंद कर दिया । न कैंटीन जाना न किसी से मिलना न किसी के साथ रहना। अब वो पूरे दिन लाइब्रेरी में बैठा रहता। सुनीता ने भी उससे भी मिलने की कई कोशिशें की पर वो नहीं मिला।उसके चुट्कुले भी मानो कहीं शोक मनाने जा चुके थे। उसका हँसता चेहरा कब इतना गंभीर हो गया किसी को पता न चला। अमित सबसे ज़्यादा दुखी था वो सुनील को कभी ऐसे भी देखेगा उसने कल्पना भी न की थी ।हिना ने भी कई बार सुनील को चाय के लिए कहा लेकिन उसने हर बार "दिल नहीं है" कह कर मना कर दिया । 

एक रोज़ क्लास ख़त्म होने के बाद सुनीता ने सुनील का हाथ पकड़ा और कहा –

"सुनील बात क्या है? इतने दिन से देख रही हूँ न तुम मुझसे बात कर रहे हो, न मिल रहे हो और सीधे मुंह देखते भी नहीं हो आख़िर क्या प्रोब्लेम है तुम्हारी? अगर मैंने कुछ कहा है या किया है तो बताओ न या अमित या हिना तुम्हें मेरा नाम लेकर चिढ़ाते हैं तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन बताओ तो सही आख़िर बात क्या है क्यों कर रहे हो तुम ऐसा?"

सुनीता एक ही साँस में सब कह दिया मानो अगर बीच में रुकी तो सुनील हाथ छुड़ा कर चला न जाए।सुनील चुपचाप सुनीता की सारी बात सुनता रहा और मन ही मन कई जवाब दे दिए

"क्या तुम्हें नहीं पता कि मैं ऐसा क्यों हो गया? क्या तुम्हें नहीं याद कब से हूँ मैं ऐसा?"

सुनील चुप रहा कहना तो बहुत कुछ चाहता था पर कहता क्या

"कि वो तुमसे से बेपनाह मोहब्बत करता है। नहीं जी सकता वो तुम्हारे बिना और वो 126 जो उसके दिमाग में गढ़ गया था वो उसे कभी नहीं भूल सकता । वो सुनीता को आज भी उतनी ही मोहब्बत करता है जितनी किया करता था । वह सुनीता के सीने से लग कर कह देना चाहता था कि वह उसके साथ अपनी पूरी ज़िंदगी बिताना चाहता है लेकिन कहता भी क्या जब सुनीता को पता था कि वो उसे पसंद करता है तब भी उसने एक बार भी न बताया कि उसकी सगाई हो रही है।"

सुनील एक मूर्ति बने सुनीता के सामने खड़ा रहा। उसकी आँखों में अपना प्यार ढूँढता रहा जिसे वो कभी पाना चाहता था।

सुनीता ने हिना से बात कि तो पता चला कि एक रोज कॉलेज में सुनील काफ़ी ख़ुश था उसके बाद वह कुछ दिन कॉलेज नहीं आया और आया तो तब से ऐसा ही है। सुनीता को याद आया कि सुनील उस दिन उसके घर आया था। उसने हिना को यह बात बता दी कि वो मेरे घर आया था ।

"तभी वो इतना ख़ुश था"- हिना ने कहा

"मतलब"

"मतलब तुम्हें नहीं पता वो तुमसे कितना प्रेम करता है पर उसके बाद उसने सबसे बात करना ही बंद कर दिया और पूछो तो भी कुछ बताता भी नहीं है।"

सुनीता को अब सब कुछ समझ आ गया था कि उस दिन मेरी सगाई कि बात सुन कर आख़िर वो घर से क्यों चला आया था। सुनीता ने दोबारा सुनील से मिलने की कोशिश की पर सुनील न मिला। सुनीता भी जानती थी कि सुनील आज भी उसे कितना प्यार करता है और कहीं न कहीं वो भी उसे प्रेम करने लगी थी पर अब बात बहुत आगे बढ़ चुकी थी । यह रिश्ता उसके माता-पिता ने कराया था जो अब अटूट हो गया था।

परीक्षा ख़त्म हो चुकी थी और अगले ही साल सुनीता की शादी भी हो गयी। सुनील दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ाने लगा था। सरकार की तरफ से उसे लाजपत नगर में कृष्णा मार्केट में ही फ्लैट मिला । फ्लैट नंबर 126 । यह संयोग था या कुछ और ।उसने पता किया यहाँ जो पहले रहते थे वो कहाँ चले गए पड़ोसी ने बताया कि बेटी की शादी के बाद वो सब अपने गाँव चले गए। सुनील जब वहाँ पहुँचा तो सब कुछ वैसा ही था जैसा की आख़िरी दफा सुनील इसे छोड़ कर गया था । वहीं दीवारें उनका रंग, उन पर पेंटिंग सब कुछ वैसा ही था। सुनील मानो फिर से उसी संसार में खो गया जहाँ वो आज भी वहीं खड़ा था न आज तक उसका सुनीता के प्रति प्रेम कम हुआ न उसकी याद।आज जब वह उसी घर में आ गया था जहाँ सुनीता ने अपना बचपन बिताया था। सुनील उठा और अंदर कमरों को जाकर देखता ऐसा लगता था 4-5 साल की सुनीता पापा-पापा करती हुई यहाँ से वहाँ भाग रही है,कभी उसे सुनाई देता "देखो सुनील यह पेंटिंग! हम कहा करते थे न हम से अच्छी पेंटिंग कोई दूसरा नहीं बना सकता......अरे सुनील हम भी न एक दम बुद्धू हैं ... बताओ चाय पियोगे न ... अरे हाँ बाबा कैंटीन जैसी न बना पाएंगे पर जैसी है पिलो ...लो पकड़ों ..."सुनील ने जैसे ही हाथ बढ़ाया देखा तो वहाँ तो कुछ भी न बस था तो एक सन्नाटा और सुनीता की यादें। एक ऐसा ताजमहल जिसमें सब कुछ था पर बेरंग था उसकी मुमताज़ तो थी ही नहीं इसमें।सब कुछ जैसा का वैसा था सुनील,सुनीता की यादें और यह फ्लैट नंबर 126। सुनील उठा और सोफ़े पर आ कर बैठ गया और आँखें बंद कर लीं । बाहर से जौन एलिया के शे'र की पंक्तियाँ हवा में बह रही थीं –


ये  मुझे चैन क्यूँ नहीं पड़ता

एक ही शख़्स था जहान में क्या ....... 



Rate this content
Log in

More hindi story from तालिब हुसैन रहबर

Similar hindi story from Romance