फोन नंबर
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जुलाई का महिना शुरू हो चुका था। बारिश भी रुक –रुक हो रही थी। बारिश ज़्यादा पड़ने से कभी-कभी सड़क और नालियाँ किसी नदी की शक्ल ले लेती थीं। बाहर बारिश की बूंदों का शोर साफ सुनाई दे रहा था। घड़ी की टिक-टिक की आवाज़ जैसे बारिश के साथ कोई मल्हार गा रही थी। रात के दो बज चुके थे। यूं तो सारा शहर सो रहा था लेकिन पतली-सी कद काठी और आँखों पर हमेशा चश्मा लगाए रखने वाला हनीफ इस वक़्त भी उल्लू बना जाग रहा था। एक छोटा सा कमरा था। जिसमें वह और उसके अम्मी- अब्बू रहते थे। कमरे के कोने में एक लकड़ी की पुरानी टेबल रखी थी। जिस पर रामचरितमानस, हिन्दी साहित्य का इतिहास,मैला आँचल और कई रफ रजिस्टर बेतरतीब पड़े थे कहें तो हनीफ के अकेलेपन के यही एक एकलौते गवाह थे। हनीफ इस भी वक़्त कुछ पढ़ रहा था तभी पास में रखे फोन की रिंग हुई। हनीफ ने किताब को दूसरी तरफ रखते हुये फोन की तरफ देखा तो साहिबा की कॉल थी।
हनीफ उठा और बाहर सीढ़ियों पर आकार बैठ गया और साहिबा को फोन लगाने लगा लेकिन दूसरी तरफ से दो बार फोन काट दिया गया तभी हनीफ ने देखा कि साहिबा का मैसेज आया था-
“ थोड़ी देर में करती हूँ कॉल”
हनीफ साहिबा के कॉल का इंतज़ार करने लगा और सोचने लगा कि आज पूरे दो महीने बाद साहिबा का कोई फोन आया था। आखिर ऐसी क्या बात थी जो आज साहिबा ने उसे कॉल किया था। उसे याद है उस रात अचानक साहिबा का कॉल आया था और उसने कहा था –
“हाउ आर यू सर ?”
हनीफ हँस पड़ा और कहने लगा –“ यह सर-वर क्या लगा रखा है पागल ?”
“विल यू मैरी मी ?” साहिबा ने एक हल्की हँसी हँसते हुये पूछा था।
“जी मैं तो शुरू से उसी दिन का इंतज़ार कर रहा हूँ जब हम दोनों एक होंगे। जिस रिश्ते को इतने सालों से निभाते आ रहे हैं उसकी आख़िरी मुकम्मल मंज़िल निकाह ही होनी चाहिए “ हनीफ ने भी मुसकुराते हुये जवाब दिया।
साहिबा तो फोन रख कर सो गयी थी लेकिन उस रात हनीफ देर रात तक जागता रहा और ख़ुशी की वजह से उसका चेहरा एक नयी खिलती हुई कली की तरह हो गया था। मानो आज जा कर के हनीफ ने पहली बार बसंत को देखा हो,पूरे चाँद को पहली बार खिलते देखा हो। इन्हीं ख्यालों में खोते हुए वह कब सो गया उसे पता भी नहीं चला। सुबह उठा तो आदतन उसने साहिबा को गुड मॉर्निंग का एक मैसेज किया, लेकिन आज साहिबा का कोई जवाब नहीं आया था। हनीफ को लगा शायद वह कहीं मसरूफ़ होगी। शाम को साहिबा का मैसेज आया -
“सुनो अस्सलमुअलैकुम !”
“वअलैकुम अस्सलाम ! सुबह से कहाँ थीं भई मैं कब से तुम्हारा इंतज़ार कर रहा था” हनीफ ने कुछ चिढ़ते हुए कहा।
साहिबा ने धीमी सी आवाज़ में कहा – “ मुझे तुमसे कुछ जरूरी बात करनी है फोन करो “
“ठीक है “ हनीफ ने इतना कह कर साहिबा को कॉल लगा दिया था।
“हैलो साहिबा कैसी हो ?”
साहिबा ने ठीक हूँ कह कर कहा –
“सुनो तुम्हें याद है मेरे घर वाले मेरे लिए लड़का ढूंढ रहे थे। वही मुजफ्फरपुर वाला। “ अरे पर वो तो तुम्हारे अम्मी-अब्बू को पसंद नहीं था न तो परेशान क्यों हो रही हो ?” हनीफ ने साहिबा की बात काटते हुए कहा।
“मेरी पूरी बात तो सुनो” साहिबा ने फिर कहना शुरू किया –
“तुम जानते हो मैं अपने अम्मी-अब्बू से बहुत प्यार करती हूँ और अम्मी-अब्बू को वो लड़का अब पसंद है।”
“झूठ ! सच-सच बताओ आख़िर बात क्या है ? मैं जानता हूँ तुम मुझसे कुछ छिपा रही हो।”
हनीफ ने साहिबा को कसम देते हुये कहा –“ बताओ क्या बात है ?”
फोन की दूसरी तरफ से आ रही साहिबा के गले की रुँधने की आवाज़ हनीफ को सुनाई देने लगी थी, मानो साहिबा कहना तो चाहती हो लेकिन शब्द गले तक आते आते वापस चले जा रहे थे।
“ हाँ बोलो क्या बात है” – हनीफ ने उसे प्यार से समझाते हुए पूछा।
“तुम्हें पता है न जब मेरे अम्मी-अब्बू लड़का देखने मुजफ्फरपुर गए थे तो वहाँ उन्हे उसका दोस्त सलीम मिला था।“
“हाँ तो “ जैसे हनीफ आने वाले किसी तूफान को भांप रहा हो ।
“सलीम अब्बू को मुस्कान के लिए पसंद है और उनके घर वालों को भी मुस्कान पसंद है। इसलिए मुझे भी अब अपनी छोटी बहन की खुशी के लिए वहाँ शादी करनी पड़ेगी। अब्बू बता रहे थे कि बकरी ईद के बाद कि कोई तारीख निकलवा कर दोनों का एक साथ निकाह कर देंगे।”
साहिबा यह पूरा किस्सा एक बार में कह गयी कि कहीं हनीफ उसे बीच में न टोक दे। अगर हनीफ ने फिर टोका तो वह फिर से कहने कि हिम्मत न जुटा पाएगी।
लेकिन हनीफ चुप रहा। साहिबा ने फिर कहना शुरू किया –
“ देखो तुम परेशान न होना तुम्हें मुझसे भी अच्छी लड़की मिल जाएगी जो तुम्हें मुझसे भी ज़्यादा प्यार करेगी और मेरी तरह तुम्हें आधे में छोड़ कर नहीं जाएगी, लेकिन मुझे इस बात का गम हमेशा रहेगा कि मुस्कान को हमारे रिश्ते के बारे में पता था तो फिर उसने सलीम के लिए हाँ क्यों कर दी। ख़ैर वह इस रिश्ते से बहुत खुश है। तुम परेशान न होना, समझ लेना हमारा सफर इतना ही था।“
“हमारा सफर इतना ही था”। यह सुनते ही जैसे हनीफ को होश आ गया था और उसने पूछा- “ और हमारा रिश्ता, हमारा प्यार और जो तुमने कल रात कहा था विल यू मैरी मी वो ?”
“अरे यह सब छोड़ो न यार। मैंने कहा न सब ठीक हो जाएगा। मैं अब अपनी लाइफ में आगे बढ़ रही हूँ तुम भी बढ़ जाओ। आज के बाद मुझे कोई कॉल या मैसेज न करना और अपने करियर पर ध्यान देना। ख़ुदा हाफ़िज़ !” इतना कह कर साहिबा ने फोन रख दिया।
हनीफ खामोशी से वहीं बैठ गया जैसे कोई शख़्स किसी मकान को सालों से बना रहा हो और अचानक उसे पता चले कि वह तो किरायदार है घर तो किसी और का है। जैसे किसान पूरे साल बीज बो कर बारिश का इंतज़ार करे और जब बारिश आए तो पता चले उसकी पूरी फसल तो पहले से ही कोई और खा गया है। हनीफ होश में था या नहीं यह कहना मुश्किल है। वह वहीं फूट-फूट कर रोने लगा था।
कई दिनों तक उसने साहिबा को हजारों दफा कॉल की मैसेज किए। मोहब्बत की कसमें दीं कि मत जाओ उसे ऐसे छोड़ कर वो नहीं जी पाएगा उसके बिना लेकिन साहिबा का न तो वापस कोई मैसेज आया और न ही कोई कॉल।
हनीफ उस रात हुये किस्से को सोच ही रहा था कि अचानक फोन कि रिंग हुई। हनीफ होश में आया और देखा साहिबा का कॉल था। वह यादों के टूटे हुये खंडहर से वापस आ गया था पर किस लिए वह वो इन सब बीतीं यादों के कंबल को टटोल रहा जिसमें महज़ आंसुओं के सिवा कुछ नहीं था उसे खुद नहीं पता। उसने सोचा साहिबा ने तो कहा था कि अब कोई कॉल या मैसेज मत करना तो फिर आज दो महीने के बाद अचानक उसका कॉल। उसने कॉल उठाई और कहा –
“अस्सलमुअलैकुम !”
“ वअलैकुम अस्सलाम !” मुझे माफ़ कर देना मैंने थोड़ी देर में कॉल करने का कहा था लेकिन यहाँ सब जाग रहे हैं इसलिए देर हो गयी और बताओ क्या कर रहे थे ?” साहिबा ने जैसे किसी अनजान शख़्स से सवाल किया था।
“कुछ नहीं बस तुम्हारे कॉल का इंतज़ार कर रहा था।“ हनीफ ने ख़ामोशी से जवाब दिया।
“यार कितना झूठ बोलते हो तुम लगे होगे किसी से बातें करने में, लोग कितनी ईमानदारी से झूठ बोल लेते हैं न। “
“ था तो सच पर तुम झूठ मानती हो तो चलो झूठ ही सही “- हनीफ ने बेरुखी हँसी के साथ कहा।
“ एक बात बताओ तुमने तो कहा न कोई कॉल करना न मैसेज तो आज पूरे दो महीने बाद क्यों ? “ – हनीफ जैसे इस तरह आए अचानक कॉल से परेशान था और जल्द से जल्द उसका जवाब चाहता था।
“हनीफ सुनो “
“ हाँ बोलो “
“ हनीफ अब हमारे बीच कुछ भी नहीं रहा जो पहले था। हमारा रिश्ता भी खत्म हो चुका है और अब मैं किसी के घर की बहू बनने जा रही हूँ। हम अब गैर हैं। “
“हम्म...”
“ तो हनीफ प्लीज़ मेरे सारे फोटोज़ और मुझसे जुड़ी हर चीज़ मिटा देना। हनीफ आप मेरी खुशी के लिए कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार रहते थे न, तो आज यह भी कर देना। “ – साहिबा मानो इल्तिज़ा सी कर रही थी कि कहीं अगर हनीफ के साथ उसकी फोटो किसी ने देख ली तो क़यामत आ जाएगी।
“हम्म.... मिटा दूंगा “ – हनीफ इससे आगे और कुछ न कह सका।
“ सुनो आगे बढ़ना और एक नया सफ़र शुरू करना। मुझे कभी याद न करना। समझना कि कोई बुरा ख़्वाब था और मैं आपकी ज़िंदगी में कभी आई ही नहीं थी। “ हनीफ साहिबा की इन सब बातों को ख़ामोशी से सुन रहा था आख़िर में उसने कहा –
“ कितनी दर्दनाक मौत है न मोहब्बत में, साँसें तो चलती हैं पर हम जी नहीं रहे होते। “
हनीफ मानो लग रहा था कि अब रोया कि तब रोया।
उसने ख़ुद को संभालते हुए कहा – “ बकरी ईद कब है?
“पता नहीं “
“अगले महीने में है शायद “
हनीफ मानो इधर-उधर कि बातें कर के साहिबा कि आवाज़ कुछ देर और सुनना चाहता था।
“ शादी कि तैयारियां चल रही होंगी ?”
“हम्म... “
“अच्छा मंगनी कब है और कार्ड छप गए ?”
“पता नहीं”
साहिबा जैसे हनीफ के सवालों से भाग रही थी।
“अच्छा साहिबा सुनो मेरी एक बात मानोगी” – हनीफ ने बात को आगे बढ़ते हुए कहा –
“ तुम न शादी में वही आसमानी रंग का लहंगा पहनना। तुम्हें याद है न मेरे कंधे पर सर रख कर तुम बताया करती थी तुम्हें आसमानी रंग का लहंगा पहनना है शादी में और हाँ ज़्यादा रोना मत रोने से तुम्हारा गला बैठ जाता है। हमेशा खुश रहना और अपना और सबका ख्याल रखना। “ हनीफ जैसे किसी छोटे बच्चे को समझाते हैं वैसे ही साहिबा को समझा रहा था। आख़िरकार उसे उसकी बचकानी हरकतों का पता था, वह किस बात से नाराज़ होती है, किसे खाने से उसको जुकाम हो जाता है, क्या चीज़ उसे पसंद है क्या नापसंद है हनीफ को एक-एक बात का पता था। आज वह साहिबा से यह सब कह देना चाहता था तभी साहिबा कि आवाज़ आई – “सुनो मैं सोने जा रहीं हूँ, नींद आ रही है “
“ठीक है “ हनीफ ने अपनी बात ख़त्म करते हुये कहा – जब मुझसे बात करने का दिल हो कॉल कर लेना।
“मैं अपना फोन नंबर बदल रही हूँ”
“ पर मैं नहीं। मेरा नंबर हमेशा यही रहेगा”
“ठीक है खुदा हाफिज़” इतना कह कर साहिबा ने फोन रख दिया।
हनीफ अब भी फोन कान पर लगाए खड़ा रहा जैसे कि दूसरी तरफ से साहिबा कुछ कहेगी पर वह कहाँ जानता था कि ये साहिबा के आख़िरी लफ़्ज़ होंगे जो उसके कानों में, हवाओं में ऐसे घुल जायेंगे कि हनीफ चाह कर भी उन्हें अलग न कर पाएगा। उसने कई मोहब्बत की दस्ताने सुनी थीं। रोमियो-जूलियट, सोनी- महिवाल और कई सारी पर उसने कभी न सोचा था कि उसकी मोहब्बत भी महज़ एक दास्तां बन कर “काश” के कफ़्न में दफ़न हो जाएगी। हनीफ सोच रहा था कि उसकी मोहब्बत में सबसे दर्दनाक क्या था ? साहिबा का उससे अलग होना या उसका फोन नंबर बदल लेना। हनीफ कुछ कहना चाहता था पर आज लफ़्ज़ उसका साथ नहीं दे रहे थे। बस आँख से पानी कि दो बूंद छलकी और उसकी हथेली पर आकर ठहर गयी और हनीफ कब सीढ़ियों पर ही सो गया उसे पता भी नहीं चला। सुबह उठा तो उसका सर दर्द से फट रहा था।