पहला प्यार

पहला प्यार

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वो और मैं एक बाइक पे चले थे पता नहीं था कि कहाँ जा रहे थे, मैंने पूछा भी नहीं "उससे"। बस चलते जा रहे थे। एक लंबी सड़क पे। मन बहुत गहरे में चला जा रहा था। अजीब सी मुस्कान थी जो मेरे चेहरे से हट नहीं रही थी। वो बार बार उसके बाइक के बैक मिरर में मुझे अपने आपको देखते पकड़ लेता, मैं पकड़े जाते ही अपनी आँखें झुका लेती, या अपने आपको उसके बैक मिरर की रेंज से बाहर कर लेती। "धूप के रंग का सूट तुम पर बहुत अच्छा लगता है" उसने कहा। "क्या?" मैंने कहा और उसकी और यूँ देखा कि मैने सुना ही न हो, ज़ाहिर था साफ मेरी आँखों से की मैं दोबारा अपनी तारीफ उसके मुंह से सुनना चाहती थी।

दिल धक से.....लगा जैसे रुक ही जायेगा। जैसे ही उसने कहा "काव्या, मैं तुम्हें बहुत पसंद करता हूँ। तुम्हारा साथ, तुम्हारी बातें, मुझे लगता है कि एक पल भी जैसे तुमसे दूर न जाऊं। तुम्हारे साथ होता हूँ तो यूँ लगता है मानो समय ने पंख लगा लिए है।। इधर काव्या ये सुनते सुनते अपने मैं ही मानो धंस रही थी। उसके रोंगटे खड़े थे मानो वो सिर्फ कान से नही बल्कि पूरे शरीर के हर रोमछिद्र से इस प्यार के इज़हार को सुनना चाहती थी। इस एक पल के लिये उसने कितने दिन इंतज़ार किया था। कितने दिन ठीक आरती के वक़्त मंदिर पहुँची और मन्नत में बस यही मांगा।

ये समझो पहली नज़र वाला प्यार ही था। काव्या जिस कोचिंग में पढ़ने गयी उसके ठीक सामने की चेयर पर वह बैठा करता था। दिखने का साधारण, परिवार से साधारण पर काव्या के मन ने पता नही क्यों उसे बहुत असाधारण मान लिया था। वैसे भी प्यार में जिससे प्यार हुआ है वो कई बार अपने आपको बहुत असाधारण मानते है पर वास्तविकता में ये उनकी नही बल्कि प्यार करने वाले कि खूबी होती है कि वो असाधारण हो जाते है। अभी तक मतलब 19 साल की उम्र तक वो जितने पुरूषों से मिली उनमें से सबसे ज्यादा इसी ने उसे प्रभावित किया। पर स्त्री के पास अब भी हमारे समाज में वो छूट नही आई कि वह प्रेम का इज़हार आगे से कर सके।

ये पहली नज़र का प्यार था। वो पहली बार उसे कोचिंग क्लास में दिखा था टी-शर्ट जिस पे ब्लू लिखा था और थी भी ब्लू कलर की, नीचे कुछ बिना मैचिंग वाली जीन्स थी। पर फिर भी जिस रवैये से वो बात कर रहा था वैसा उसने पहले किसी लड़के में नही देखा था। कुछ नही होते हुए भी वो उस पूरी क्लास में सबसे अलग लग रहा था। "ये मेरी जगह है में यहीं बैठूंगा" उसकी आवाज़ कानों में पड़ी ये सुकून का अहसास, या मंज़ूर हुई पूजा या मंदिर की घंटी क्या था बस उसकी आवाज़ थी। जगह के लिए बच्चों से कौन लड़ता है अब, एक मुस्कुराहट काव्या के होंठो पर छा गयी जो फैलते हुए आंखों तक जा पहुंची। पलकें खुली और वो गेहुए रंग का चेहरा गलती से दिल के अंदर चला गया।


अब बस रोजाना उसका काव्या के ठीक सामने बैठना और काव्या का उसे नज़रे बचाते हुए देखना ,,,,,,,,,,, प्यार शायद इसे ही कहते है।








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