वो शाम
वो शाम


शाम होने वाली थी मैं बहुत बेचैन हो रही थी। वो बहुत सालों बाद मुझसे मिलने के लिये निकल चुका था और मैं अब तक भी तय नहीं कर पा रही थी कि उसका सामना कर भी पाउंगी या नहीं। मन आज और बीते कल के बीच भँवर में डगमगा रहा था। ये बिल्कुल 12 साल 3 महीने और 4 दिन पहले जैसी
बेचैनी थी। उस दिन भी वह ऐसे ही मुझसे मिलने निकला था बहुत भारी था एक एक पल क्योंकि वह मुझसे प्यार होने के बाद भी किसी और को अंगूठी पहना चुका था और उसी गुनाह को अपने आंसूओं से धोने आ रहा था।
मैं स्तब्ध थी पर उसे मिलने के लिए मना करना ना मेरे बस मे तब था ना अब है। सामने उसकी गाड़ी रुकी आंसूओं से पूरा चेहरा भीगा हुआ था कुछ आँसू लुढ़क कर शर्ट की कॉलर पर भी गिरे थे। "काव्या, मैं माँ को मना नहीं पाया, क्या तुम मुझे माफ़ कर पाओगी, मैं तुम्हारा साथ छोड़ना नहीं चाहता" वो अक्सर अपनी नाकामी को सहानुभूति में बदलने की कोशिश करता था आज भी वही कर रहा था। "तुम मेरे साथ रहना चाहते हो या मेरे बिना रह नहीं सकते में से किसी एक लाइन को चुनना होगा, चुनाव तुम्हारा है," मैंने बस इतना ही कहा। एक एक कदम जो मेरे घर की और मैं बड़ा रही थी उससे अपने आपको छुड़ा रही थी हालांकि इसमें बहुत साल लगे। पर मैं अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ गयी थी। वो भी शायद बढ़ा ही होगा। अपना फ़ोन नम्बर ना उसने बदला ना मैंने शायद हम दोनों को ही उम्मीद थी कि कभी वापस जीवन के किसी मोड़ पर किसी को किसी की ज़रूरत पड़ जाए। और आज वो शाम आ ही गयी।।