फिर ना न कहना
फिर ना न कहना


मैंने आवाज़ सुनकर दरवाज़ा खोला तो अपने मित्र आदर्श को पाया। मैंने कहा, 'आइये! आज आपने कई दिनों के बाद दर्शन दिए।’
आदर्श ने कहा, “कुछ घरेलू कार्यों की व्यस्तता के कारण निकल नहीं पा रहा था वैसे भी रिटायरमेंट के बाद घरेलू काम काफी बढ़ जाते हैं।”
औपचारिकता के बाद हम दोनों इधर उधर की बातों में मशगूल हो गए। पत्नी दो कप चाय रख गयी थी। हमारी बातें राजनीति, देश दुनिया आदि पर ही होती हैं। आखिर यही सब तो अब जरिया बचा है समय व्यतीत करने का। आखिर कब तक कोई टीवी, इंटरनेट या फ़ोन से जुड़ा रहे। कुछ समय बाद बोरियत होने लगती है। हमारे ज़माने में तो हमने इनके बारे में सुना भी नहीं था, देखने की बात तो दूर रही। हमारे ज़माने में तो घर के बाहर ही हम लोग कई प्रकार के खेल खेल लेते थे। अब तो बच्चे घर पर ही आधुनिक यंत्रों के साथ मस्त रहते हैं। आदर्श ने बातों में पूछा, 'अमित का विवाह कब कर रहे हो?, अब तो उसे जॉब में आये भी काफी समय हो गया है।'
मैंने कहा, 'बताओ कोई अच्छा सा प्रस्ताव, बस लड़की अच्छी होनी चाहिए।’
उसने कहा कि उसके पड़ोस में एक परिवार रहता है। उनकी एकमात्र लड़की है जो जॉब करती है। लड़की के पिता अब नहीं हैं, लेकिन माँ अभी भी नौकरी में है। मैंने पत्नी निशा को आवाज़ दी, 'ज़रा इधर तो आओ, आदर्श अमित के लिए विवाह प्रस्ताव लाए हैं।' पत्नी आई और महिलाओं की रूचि के मुताबिक लड़की के बारे में जानने लगी। शायद निशा आदर्श बहू की खोज करना चाह रही हो। यह सच है कि हर माँ बाप अपने बेटे के लिए एक आदर्श बहू चाहते हैं जो उनके अनुसार निर्वाह कर सके। मैंने आदर्श और निशा के बातों के क्रम को तोड़ते हुए कहा, “आदर्श, तुम अगले रविवार उनको अपने साथ यहाँ ले आओ।’ पहले लड़की की माँ से परिचय एवं बातचीत हो जाएगी, तभी विवाह सन्दर्भ को आगे बढ़ाना उचित होगा।”
थोड़ी देर बाद यह कहते हुए आदर्श चला गया कि रविवार को तैयारी रखिएगा, मैं उन्हें लेकर आऊंगा।’
आदर्श के जाने के बाद हम पति पत्नी अमित के विवाह को लेकर बातचीत करने लगे। मैंने कहा, “अमित की राय भी ज़रूरी है। उससे भी इस बारे में पूछ लो तभी कोई कदम आगे बढा़ना ठीक होगा। कहीं ऐसा न हो कि उसने कोई अपनी पसंद की लड़की देख रखी हो।”
निशा ने प्रतिवाद करते हुए कहा, “अपने बेटे के बारे में आप कैसी बात कर रहे हैं। आजतक उसने हमसे बिना पूछे कोई कार्य किया है? एक टाई भी खरीदता है तो मोबाइल पर हमसे पूछता है।”मैंने कहा, “वह मेरी राय थी, लेकिन तुम उससे इस बारे में अवश्य बात कर लेना ताकि हम रविवार को उचित वार
रविवार को प्रातःकाल ही आदर्श का फ़ोन आ गया कि हम लोग सांयकालीन बेला में पहुंचेंगे। भाभीजी से कहना कि वह खाने पीने की पूरी व्यवस्था कर लें। मैंने निशा को आदर्श का मैसेज पहुंचा दिया। शाम को आदर्श लड़की की माँ को लेकर हमारे यहाँ पहुंचा तो लड़की की माँ को देखकर मैं हतप्रभ रह गया।मैंने पूरी तरह से सामान्य बने रहने की कोशिश की और कहा, “आइये आपका स्वागत है।”
आदर्श ने लड़की की माँ का परिचय कराते हुए बताया की आप अरुणा जी हैं। इसी शहर के एक स्कूल में पढ़ाती हैं। इनके पति सरकारी सेवा में अधिकारी थे। दो वर्ष पूर्व उनका स्वर्गवास हो गया। मैंने आपसे इन्हीं की बेटी के बारे में चर्चा की थी।
निशा ने आदर्श की बात के क्रम को तोड़ते हुए अरुणा से पूछा, “आपकी बेटी कितनी पढ़ी लिखी है?' अरुणा ने कहा, 'वह एम सी ए है और यहाँ एक प्राइवेट कंपनी में कार्य करतमैंने कहा, “यह तो बहुत अच्छी बात है कि आपकी बेटी इसी शहर में है, लेकिन हमारा बेटा इस शहर में नहीं है। क्या आपकी बेटी विवाह उपरांत नौकरी कर पाएगी?”
अरुणा ने कहा, “यह सब बातें बाद की हैं। नौकरी करना आवश्यक नहीं है।”
वार्ता का क्रम चलता रहा। दोनों पक्ष एक दूसरे के बारे में आवश्यक ज्ञान प्राप्त कर रहे थे। अरुणा निशा से लड़के के बारे में और निशा अरुणा से उनकी बेटी के विषय में पूछ रही थी। महिलाओं के मध्य बातचीत शुरू हो जाए तो वह कब समाप्त होगा, इसका अनुमान लगाना कठिन है।
इनकी बातों के बीच में मैंने आदर्श से कहा, “इन्हें बातें करने दो। हम लोग बाहर बैठकर अपनी बात करें। बहुत दिनों से राजनीति पर कोई चर्चा नहीं हुई। हम लोग दोनों महिलाओं को अंदर छोड़कर बरामदे में आ गए। मैंने आदर्श से पूछा, “तुम इस परिवार को कब से जानते हो।”
आदर्श ने जवाब दिया, “हम तो पड़ोसी हैं!हमारी कॉलोनी में इनका मकान है। अच्छे लोग हैं, यहाँ रिश्ता करना बेहतर रहेगा दोनों परिवारों के लिए।’
काफी देर तक बात चलती रही तो आदर्श बोले, “अब चलना चाहिए।” अन्दर पहुँचकर मैंने अरुणा की ओर देखकर कहा कि हम लड़की को देखना चाहते हैं और फिर अमित भी उसे देख ले, दोनों आपस में मिल लें तो सुविधा रहेगी। कृपया अपना मोबाइल नंबर हमें दे दीजिए ताकि भविष्य में वार्तालाप हो सके। वैसे आदर्श का नंबर तो मुझे मालूम है लेकिन हर छोटी बात के लिए इन्हें क्या डिस्टर्ब करना सही होगा।
दोनों परिवारों के मध्य मोबाइल नम्बरों का आदान प्रदान हो गया। अरुणा आदर्श जाने लगे तो निशा ने कहा, 'आपकी बेटी के ऑफिस का पता हमें दे दीजिये ताकि हम उसे दूर से एक बार देख लें, अगर आपको कोई आपत्ति न हो।’ अरुणा ने समृद्धि का पूरा विवरण निशा काे दे दिया और कहा कि हमे इस मामले में कोई आपत्ति नहीं है। अरुणा और आदर्श के जाने के बाद हम पति पत्नी ने समृद्धि की फोटो को कई कोणों से देखा। समृद्धि हमें अच्छी लगी। एक दिन ऑफिस के समय समृद्धि को ऐसे देखा जाए कि उसे मालूम न हो। मैंने कहा, “यह तो ठीक है हमे उसके ऑफिस में कोई कार्य तलाशन होगा ताकि हम वहाँ जाकर उसे देख सकें।
अपनी इस योजना को कार्यरूप देते हुए हम समृद्धि के आंफिस गए क्योंकि उसकी फोटो हमारे पास थी, इसीलिए उसे पहचानने में हमे कोई परेशानी नहीं हुई। हम पति पत्नी ने उसे देखा लेकिन बातचीत करना उचित नहीं समझा। शायद अरुणा ने उससे इस मुलाकात का बातों बातों में उल्लेख किया हो। हम उसे देखकर बिना बातचीत किए घर वापस आ गये। शाम को निशा ने अमित को समृद्धि के बारे में सारी जानकारी फ़ोन पर उपलब्ध करा दी तथा उससे कहा कि वह समय निकाल कर समृद्धि को देख ले और चाहे तो बातचीत कर ले ताकि हम अरुणा को इस सन्दर्भ में उत्तर दे सकें। अमित ने कहा कि उसकी फोटो भेज दो, उसका मोबाइल नंबर दे दो ताकि मैं उससे बात कर सकूँ।' निशा ने कहा, “मैंने समृद्धि का मोबाइल नंबर उसकी माँ से नही लिया क्योंकि यह मुझे अच्छा नहीं लगा। तुम आकर एक बार देख लो। कभी कभी फोटो और वास्तविकता में अंतर आ जाता है।”
निशा ने शाम को बैठे बैठे कहा कि हमें अन्य श्रोतों से भी अरुणा जी के परिवार के विषय में जानकारी प्राप्त करनी चाहिए। मात्र आदर्श जी पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। निशा की बातों का प्रतिवाद करते हुए मैंने कहा, “अधिक जानकारी प्राप्त करना व्यर्थ है। ऑफिस में काम करती है, पढ़ी लिखी है। वैसे भी जब तक अमित और समृद्धि मिलकर एक दूसरे के बारे में तसल्ली न कर ले, इधर उधर से जानकारी प्राप्त करने से कुछ नहीं होगा बल्कि विवाह की बात अन्य लोगों तक पहुँच जाएगी।”
एक दिन निशा ने अरुणा से फ़ोन पर बात करके अमित और समृद्धि की मुलाकात के विषय में कहा। दोनों की राय से अगले रविवार के शाम का समय निश्चित कर दिया गया। आदर्श भी अक्सर आकर इस बारे में चर्चा करते, आखिर उनकी भूमिका मध्यस्थ की है। एक दिन आदर्श ने मुझसे कहा कि एक बार आकर अरुणा जी का घर देख लें। मैंने कहा तुम्हारी पड़ोसी हैं, वहां तो हम कई बार आये हैं। अरु के घर जाना उचित नहीं होगा जबतक कि अमित और समृद्धि कुछ तय नहीं कर लेते। अचानक एक दिन अरुणा जी का फ़ोन मेरे पास आया कि मैं आपसे अकेले में मिलना चाहती हूँ। नितांत अकेले। आप निशा जी को भी साथ लेकर मत आइए
गा। मैंने कहा, “ठीक है, आप समय और स्थान निश्चित करके मुझे बता दीजिएगा। मैं वहाँ पहुँच जाऊँगा।”शहर के एक रेस्टोरेंट में हम दोनों ने मुलाकात का समय निश्चित किया। शाम को जब मैं पहुंचा तो अरुणा ज्ञ मेरी प्रतीक्षा कर रही थी। औपचारिक बातों के बाद मैंने पूछा, ‘अब बताइए, आज किस कारण से मुझे यहाँ आमंत्रित किया?” अरुणा ने कहा, “'बात यह है कि वर्षों पूर्व मेरे विवाह का प्रस्ताव आपके लिए रखा गया था। हम दोनों ने एक दूसरे से मुलाकात भी की थी, बातचीत भी हुई थी लेकिन आप और आपके परिवार ने एक खूबसूरत आवरण लगा कर इस प्रस्ताव के लिए मना कर दिया।”
मैंने बात काटते हुए कहा, “आज इन बातों का क्या अर्थ है? वैसे भी विवाह ईश्वर इच्छा पर निर्भर होते हैं। हम लोग तो मात्र एक माध्यम हैं।”अरुणा ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा,' “बात यह नहीं है कि आपने मुझसे विवाह किया या नहीं, हर व्यक्ति अपने व्यक्तिगत मामलों में निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है। मुझे आपसे कोई शिकायत नहीं है। मैं तो मात्र निवेदन करने आई थी इस बात का ज़िक्र आप किसी से मत कीजिएगा। अगर समृद्धि को यह बात पता चल गयी तो उस पर हमेशा के लिए मनोवैज्ञानिक दबाव बना रहेगा।” मैंने उसकी बात का उत्तर देते हुए कहा, “बिलकुल ठीक कहा आपने। यह बात हम दोनों के बीच रहेगी।”अरुणा ने कहा, “आपसे विनती है कि अगर अमित और समृद्धि एक दूसरे से विवाह के लिए सहमत हो जाते हैं तो आप फिर ना न कहिएगा।” मैं चुपचाप सुनता रहा और फिर बोला, !”यह मेरे हाथ में नहीं है क्योंकि फैसला अब अमित और समृद्धि के निर्णय पर निर्भर है।”
हम दोनों उठकर चलने लगे तो अरुणा पुनः कहने लगी, “परिवार के मुखिया की आवाज़ ऐसे प्रकरणों पर महत्त्व रखती है। मैं फिर से आपसे निवेदन करती हूँ कि मेरी बातों पर गौर कीजिएगा, अपनी ओर से ना न कीजिएग!” मैंने उनकी बात सुनी और चुपचाप अपने घर की ओर कदम बढ़ाने लगा।