तब और अब

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अक्षय ने अपने पिता से पूछा कि हमारा मकान गाँव से दूर अलग क्यों बना हुआ है जबकि अन्य गाँववासियों के मकान साथ-साथ हैं। क्या हम सबसे अलग हैं। पिता ने बताना शुरू किया, “बात बहुत पुरानी है। यह उस समय की बात है जब समाज में अंधविश्वास और रूढ़िवादिता कूट कर भरी हुयी थी।

तुम भाग्यशाली हो कि आज के समय में जन्मे हो। हाँ तो मैं बता रहा था कि हम गाँव के अलग कोने में कैसे पहुँचे। मेरे परदादा उन्नीसवीं शताब्दी में शहर गये थे और पता नहीं किस बात से अंग्रेजों से प्रभावित हुए कि जिद कर बैठे कि मैं इंग्लैंड़ जाऊँगा। घरवालों ने साफ मना कर दिया था। सभी ने बहुत समझाया। मगर वे नहीं माने और इंग्लैंड चले गये। परिणाम यह हुआ कि हमारे परिवार का सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया।

उस जमाने में विदेश जाने वाले परिवारों का हुक्का पानी बन्द कर दिया जाता था। लोग मानते थे कि विदेश गमन से धर्म खराब हो जाता था। पता नहीं कि विदेश में क्या-क्या खाए पीए होंगे। जब वापस आए तो लोगों ने उन्हें गाँव में घुसने ही नहीं दिया।

दादाजी दरोगा को बुला लाए जिसने उन्हें गाँव में पहुँचा दिया मगर परिवार को भुगतना पडा़ दण्ड। अपना मकान छोड़कर गाँव के दूर कोने में मकान बनाकर रहना पडा़। इसी बहिष्कार के कारण हम कोने में पहुँच गये।

अक्षय ने कहा, “आज देखिये जिनके बच्चे विदेश में हैं उनका गाँव आने पर स्वागत होता है। लोग बडे़ गर्व से कहते हैं कि हमारा बेटा विदेश में है भले ही वह किस दशा में रह रहा हो। कारण है कि वह खूब पैसा कमा रहा है जिससे घर का स्तर अलग हो जाता है और यह दूसरों से आगे बढ़ने की चाह का नतीजा है। ईर्ष्या व जलन इसका कारण है। जो भी हो, गाँव की स्थिति निरंतर बदल रही है।”

पिता ने कहा, “आज सभी चाह रहे हैं कि उनके परिजन विदेश जाए ताकि समाज में उनका सम्मान बढ़ जाए। वैवाहिक संबंधों में भी इसका महत्व बहुत अधिक हो गया है। दादाजी के जमाने में गाँव से बाहर निकलना ही मुश्किल होता था और आज गाँव में कोई आना ही नहीं चाहता है क्योंकि विदेश में उपलब्ध सुविधाएँ कोई त्यागने को तैयार नहीं है। सुविधा तब भी उपलब्ध थी उस समय के हिसाब से मगर सामाजिक परिस्थितियाँ अलग थी। यहीं अंतर है तब और अब में।"


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