झूठा सम्मान
झूठा सम्मान
“ज्योति इण्टर में अनुत्तीर्ण हो गयी है। फेल हो गयी है। क्या कहेंगे लोग? तुमने इसकी पढ़ाई का ज़रा सा भी ध्यान नहीं रखा। जहां तुम पढ़ाती हो, वहीं तो पढ़ती थी।” उमेश अपनी पत्नी रानी पर चिल्ला रहा था।
रानी भी कम नहीं थी। वह भी ज़ोर से बोली, “ आप तो बड़े अधिकारी है। बहुत पढ़ें लिखे हैं। मैं तो बस एक टीचर हूं। आपने क्या किया? कौन सा उस पर ध्यान दिया। बस अपने ऑफिस के काम में उलझे रहे। अब मुझ पर चिल्ला रहे हो।”
“ तुम चुप रहो। ज्योति ने हमारी इज़्ज़त खराब कर दी। हम हाई फाई कालोनी में रहते हैं। यहां सबके बच्चे टाॅप करते हैं। मैं तो कालोनी में मुंह दिखाने लायक भी नहीं रहा।” उमेश बोलता रहा।
“क्या आवश्यकता है किसी को बताने की? कौन जानता है कि यह पास हुई कि फेल? हम किसी को नहीं बताएंगे।” रानी ने कहा।
“तुम्हारे न बताने से लोग क्या चुप रहेंगे। जान तो जाएंगे ही।” उमेश बोला।
“कैसे जान जाएंगे? हमें किसी को प्रमाण देने की क्या जरूरत है।” रानी ने कहा।
“अजीब बात करती हो? सामने फ्लैट में रहने वाला राघवन सब पर नजर रखता है। कालोनी की हर बात उसे मालूम रहती है। तुम तो जानती हो कि उसे दूसरों की हँसी उड़ाने में कितना मज़ा आता है।” उमेश ने कहा।
रानी बोली, “ऐसे तो कालोनी में बहुत लोग हैं। मिसेज कौल तो अभी पहुंच जाएंगी। कहेंगी कि ज्योति पास हो गई है तो पार्टी हो जाए। इस कालोनी में तो पार्टी और मज़ा लेने का कोई अवसर चाहिए।”
“अगर ज्योति पास हो जाती तो हम बहुत ग्रांड पार्टी देते। मगर इसने फेल होकर सब गुड़ गोबर कर दिया। ऑफिस में लोग पूछेंगे तो क्या कहूंगा? तुम्हारी सहेलियां रात दिन कुरेदती रहेगी।” उमेश ने कहा।
“बेकार ही हमने सबसे कहा कि ज्योति होशियार है। इससे अच्छा तो हम चुप रहते।” रानी बोली।
उमेश एक बड़ा अधिकारी था। आफिसर्स कालोनी में बंगला मिला हुआ था। पत्नी रानी एक अंग्रेजी स्कूल में टीचर थी। इस कालोनी का रिवाज़ बन गया था कि सभी अपनी उपलब्धियों का बखान ज़ोर शोर बघारते। विशेषकर महिलाएं एक दूसरे को नीचा दिखाने के प्रयास में लगी रहती।
इन सबसे कैसे बचें? यह सवाल उमेश और रानी के दिमाग में घूम रहा था। आखिर उनकी इज़्ज़त का सवाल था। उमेश रानी से बोला, “मेरे पास एक आइडिया है। क्यों न हम ज्योति का एडमिशन किसी दूसरे शहर में करवा दें। लोगों से कह देंगे कि ज्योति को कोचिंग संस्थान में एडमिशन लेना था इसलिए हम को आज अचानक निकलना पड़ा। कुछ दिन ज्योति वहीं रह लेगी। हम लोग भी घूम फिर कर वापस आ जाएंगे। कोई हमसे मार्कशीट दिखाने को तो कहेगा नहीं। मान लो कोई दिखाओ कहेगा तो कह देंगे कि ज्योति के पास है। मैं तो सोच रहा हूं कि कालोनी में एक पार्टी दे दूं ताकि लोग शक न कर पाएं। लोग सोचेंगे कि बेकार में ही कोई अपना पैसा खर्च थोड़े ही करता है।
रानी ने उमेश की बात पर हामी जतायी और अगले दिन सुबह ही अपनी कार से चले गए ज्योति का एडमिशन करवाने। रास्ते भर ज्योति को सुनाते रहे, “पढ़ती नहीं थी। खाली किताब खोलकर बैठी रहती थी। पढ़ेगी तब जब इसे अन्य बातों से फुर्सत होगी। सुबह से मोबाइल पर गेम खेलने से टाइम मिले तब किताब खोले।”
“ सही कहती हो रानी। हर विषय की कोचिंग लगा रखी थी। पता नहीं वहां जाकर क्या करती थी? जाती भी थी कि नहीं?” उमेश ने कहा।
ज्योति सब सुनती रही। सुनना तो उसे था ही क्योंकि फेल तो वही हुयी थी। ज्योति सोचने लगी क्या सभी टाॅप कर सकते हैं? क्या फेल होना कोई गुनाह है? कुल अस्सी प्रतिशत पास हुए हैं। आखिर बीस प्रतिशत फेल भी तो हुए हैं। इन्हें मेरे फेल होने से बड़ी परेशानी हो गयी है। इस वर्ष नहीं तो अगले वर्ष परीक्षा दे दूंगी। पता नहीं ये लोग कहां जा रहे हैं।
सोचते-सोचते ज्योति बोली, “फेल ही तो हुईं हूं। किसी के साथ भाग तो नहीं गयी हूं।”
रानी ने तत्काल कहा, “अब तेरे लिए यही तो बचा है। एक तो हमारी इज़्ज़त खराब कर दी, उलटा ज़बान लड़ा रही हो।”
“ अरे मां! कितने लोग फेल होते हैं। क्या हर व्यक्ति मन मुताबिक काम कर पाया है।” ज्योति बोली।
“ तेरी ज़बान बहुत चलने लगी है। इस कालोनी में फेल होने वाली तू पहली लड़की है। तुझे तो फेल होने पर इनाम मिलना चाहिए, आखिर तूने कालोनी में फेल होने का रिकॉर्ड बनाया है।” रानी चिल्लायी।
“हां! बनाया है। तुम तो कोई रिकॉर्ड नहीं बना पायी हो। कालोनी के लोगों की बातों से भय खाकर भाग रही हो।” ज्योति ने जवाब दिया।
“ चुप कर।” रानी बोली
“ मैं क्यों चुप रहूं? बात मुझ पर हो रही है।” ज्योति ने कहा
“ सुन ज्योति! मेरी बात। हम तेरा एडमिशन एक कोचिंग इन्स्टीटयूट में करा रहे हैं। कुछ दिन तू पेइंग गेस्ट बन कर रहेगी। हम लोगों से कह देंगे कि तुम कोई कोर्स कर रही हो। इससे कोई जान भी नहीं पाएगा। तुम्हारी और हमारी दोनों की इज्जत बच जाएगी। तुम्हें हम किसी अन्य जगह से इण्टर की परीक्षा दिलवा देंगे।” मां ने कहा।
“पापा! आप दोनों अजीब हैं। आपको मात्र अपनी इज्ज़त की पड़ी हुई है। मेरे बारे में सोचो। मैं क्यों कुर्बानी दूं? झूठी बातों और कामों में मैं उलझना नहीं चाहती।” ज्योति बोली।
“तब तुम क्या करोगी? पूरी कालोनी के ताने सुनना। सब तेरी हँसी उड़ाएंगे।” मां बोली।
“ मां! बहुत हो गया। मुझे फेल होने का कोई ग़म नहीं है। यह सब होता रहता है। अगर आप लोग अपने झूठे सम्मान के लिए यह सब कर रहे हैं तो मैं आपका बिलकुल साथ नहीं दे सकती।” ज्योति ने कहा
“तो तेरा इरादा क्या है?” मां ने पूछा।
“मैं अपनी जगह में रहकर पढ़ाई करूंगी। दोबारा परीक्षा दूंगी। पास होकर दिखाऊंगी। आप लोगों ने ज़बरदस्ती करने की कोशिश की तो मैं अपनी टी शर्ट पर “मैं फेल हो गई हूं।” लिखकर पूरी कालोनी में घूमूंगी। देखती हूं कौन क्या करता है? जिसे जो कहना हो, कहता रहे। मैं किसी की परवाह नहीं करती। मैं अपने विवेक से काम करूंगी।” ज्योति ने कहा।
उमेश ने कार में ब्रेक लगाए और कार को रिवर्स कर कालोनी की ओर बढ़ा दी।