पद्म विभूषण
पद्म विभूषण


इस कहानी में "अंधे की लकड़ी" मुहावरे का प्रयोग किया गया है।
"भैया जी" गणतंत्र दिवस की तैयारियों में व्यस्त थे। "कार्यक्रम शानदार होना चाहिए तभी तो खुद की और पार्टी की इमेज चमकेगी। पिछले छ सात सालों से न जाने किसकी नजर लग गई है पार्टी को कि 2014 में "पंच रत्न" चुनकर आये थे और 2019 में भी "पंच रत्न" ही चुनकर आये थे"। भैया जी का मुंह लटक गया था। 2022 ने तो कबाड़ा ही कर दिया था। भैया जी ने तो एक नया "जोधपुरी सूट" तैयार करवा लिया था मुख्य मंत्री पद की शपथ लेने के लिये। मगर होनी को तो कुछ और ही मंजूर था , अपना सा मुंह लेकर बैठ गए। सब मजा किरकिरा हो गया। अब 2024 में भी कहीं ऐसी तैसी ना हो जाये इसलिए वे अभी से मेहनत करने में लग गये थे। सभी कार्यकर्ताओं को निर्देशित कर दिया था कि ग्राम स्तर पर गणतंत्र दिवस मनाना है जिसमें अधिकतम लोगों को बुलाना है और उन्हें पार्टी से जोड़ना है। इस तरह वे अपनी पार्टी का विस्तार करना चाहते थे। वे स्वयं भी लखनऊ में पार्टी कार्यालय पर झंडारोहण करने वाले थे। आखिर अपनी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जो हैं वे। राज्य की राजधानी में कार्यक्रम करेंगे तो मीडिया में भी आने का मौका मिलेगा।
इतने में एक "चमचा" दौड़ा दौड़ा आया और हांफते हांफते बोला "भैया जी भैया जी, बधाई हो"
भैया जी चौंक पड़े। अब ये किस चीज की बधाई दे रहा है ? अब तो बच्चों का कोटा भी पूरा हो चुका था इसलिए "खुशखबरी" वाली बधाई तो हो नहीं सकती थी वह। " बधाई किस बात की बे" ? भैया जी चिल्ला पड़े।
"अपने नेताजी को सरकार ने 'पद्म विभूषण' पुरस्कार देने की घोषणा की है, इसी शुभ समाचार की बधाई दे रहा था आपको भैया जी" चमचे ने विस्फोट करते हुए कहा।
इस समाचार को सुनकर भैया जी को सांप सूंघ गया। वे जहां खड़े थे वहीं जड़वत हो गये। इस पर क्या प्रतिक्रिया व्यक्त करें, कुछ भी नहीं सूझा उन्हें। उन्हें यह भी पता नहीं चल पा रहा था कि यह समाचार शुभ है या अशुभ। इस पर खुशी व्यक्त करें या अपना सिर कूट लें ? "नेताजी" अर्थात उनके पिताजी को सरकार ने 'पद्म विभूषण' पुरस्कार से सम्मानित किया है , वो भी मरणोपरांत। अब सोचने की बात यह है कि सरकार ने नेताजी को अभी ही यह पुरस्कार क्यों दिया ? उनके जीते जी क्यों नहीं दिया ? क्या सरकार की इसमें कोई चाल है ? सरकार नेताजी को वास्तव में सम्मानित करना चाहती है या इसमें कोई षड्यंत्र है ? भैया जी का दिमाग घूमने लगा।
इतने में पार्टी के थिंक टैंक के नाम से मशहूर चतुर सुजान बोल पड़े "भैया जी, ये तो गड़बड़ है। सरकार का षडयंत्र जान पड़ता है ये। हमारी पार्टी तो हमेशा ही सरकार को कोसती रहती हैं , गाली देती रहती है फिर भी सरकार ने पद्म विभूषण पुरस्कार नेताजी को दिया है , यह आश्चर्य जनक है और हमें यह उसकी सोची समझी चाल लगती है"।
भैया जी चतुर सुजान की बात ध्यान से सुन रहे थे और उसमें षडयंत्र ढूंढ रहे थे। मगर षडयंत्र कहीं दिखाई नहीं दे रहा था। मगर वे चतुर सुजान की बातों को भी इग्नोर नहीं कर सकते थे। भैया जी अच्छी तरह जानते थे कि सरकार का मुखिया कोई साधारण आदमी नहीं है, बहुत ही घाघ आदमी है।
"नेताजी ने ऐसा कोई काम तो किया नहीं जो उन्हें पद्म पुरस्कार से सम्मानित किया जाये। उन्होंने तो कारसेवकों पर गोली चलवाई थी। अलग प्रदेश की मांग पर अबलाओं का चीर हरण करवाया था और उनका बलात्कार करने का प्रयास भी किया गया था। विधान सभा को उन्होंने अपनी पहलवानी का अखाड़ा बना दिया था और माइक , टेबल, कुर्सी वगैरह को अस्त्रों के रूप में खूब प्रयोग किया था उन्होंने। यहां तक कि अपनी विपक्षी नेत्री का गेस्ट हाउस में चीरहरण करने का पूरा प्रयास किया था मगर वह बचकर भाग गई थी। उन्होंने तो आतंकवादियों से केस तक वापस ले लिये थे मगर हाईकोर्ट के अड़ियल रुख के कारण ऐसा हो नहीं पाया था। लड़कियों के बलात्कार होने पर वे कहा करते थे कि लड़कों से गलतियां हो जाया करती हैं। तो ऐसे "गुणी" नेताजी को ऐंवई तो पद्म विभूषण नहीं दिया होगा ? कोई तो बात होगी जो सरकार के विरोधी होते हुए उन्हें यह पुरस्कार दिया गया है। यह सोचने की बात है" चतुर सुजान ने अपनी विद्वता का पिटारा खोलते हुए कहा।
भैया जी को अब षडयंत्र साफ साफ दिखाई देने लग गया। उसके खाते में है ही क्या ? उसके पिता द्वारा बनाये गये "वोट बैंक" के अलावा और कुछ है नहीं उसके पास। इस वोट बैंक में भैया जी कुछ भी जोड़ नहीं पाये। यद्यपि उन्होंने उलटबांसियां खूब खेली। कभी "दो लड़के" का मंत्र फूंका तो कभी "बुआ" के पैरों में गिर पड़े। मगर हाय रे दैव ! कुछ भी हाथ नहीं लगा उलटे कुछ जातियां उनकी पार्टी से छिटक कर दूर चली गईं। अब "नेताजी" की विरासत ही तो बची थी भैया जी के पास। वही भैया जी के लिए "अंधे की लकड़ी" थी। अब वह लकड़ी भी छीन लेना चाहता है यह तानाशाह ? यह तो सरासर अन्याय है। श्रीकृष्ण भगवान के वंशजों के वोटों में भी सेंध लगाना चाहती है सरकार। ले देकर ये "वंशज" और "तुष्टीकरण" का वोट बैंक रह गया है। नेताजी एक साम्राज्य बनाकर गये थे मगर अब तो वह साम्राज्य भी छिन्न भिन्न हो चुका है। अब भैया जी को समझ में आ गया कि नेताजी को पद्म विभूषण पुरस्कार देना महज इत्तेफाक नहीं है बल्कि यह एक षड्यंत्र है।
चमचा इस पुरस्कार से बहुत उत्साहित था इसलिए वह लड्डू ले आया था और सबको लड्डू बांट रहा था। भैया जी की नजर जब लड्डुओं पर पड़ी तो वे बिफर पड़े
"कौन लाया ये लड्डू ? किसके कहने से लाया है " ? भैया जी के नेत्र अंगारे बरसा रहे थे। भैया जी के इस रौद्र रूप को देखकर सारे चमचे सिहर गये और वहां पर सन्नाटा व्याप्त हो गया।
भैया जी को जब जवाब नहीं मिला तो वे उखड़ गये और उन्होंने लड्डू वाला डिब्बा लपक लिया और लड्डू बांटने वाले चमचे के मुँह पर उलट दिया। वह चमचा हतप्रभ होकर भैया जी को देखता रह गया। बोलने की हिम्मत तो कभी थी नहीं उसकी , अब तो खड़े रहने की भी हिम्मत नहीं रही इसलिए वह दुम दबाकर भाग खड़ा हुआ।
"खबरदार जो किसी ने लड्डू बांटे ! ना कोई किसी को बधाई देगा और ना कोई इस बारे में कुछ कहेगा। मीडिया से केवल मैं बात करूंगा या तुम्हारी भौजी बात करेंगी, और कोई नहीं। चलो भागो यहां से "। भैया जी से "नेताजी" का यह सम्मान न तो निगलते बन रहा था और न ही उगलते। इतने लाचार तो वे तब भी नजर नहीं आ रहे थे जब वे बुआ जी के कदमों में झुक रहे थे। वे वहीं पर रखी एक कुर्सी पर धम्म से गिर पड़े।
इतने में एक चमचा हाजिर हुआ और डरते डरते बोला
"भैया जी , कुछ न्यूज चैनल्स वाले आये हैं। कहो तो भगा दूं उन्हें" ?
भैया जी ने उसे ऐसे देखा जैसे कि वे उसे कच्चा चबा जायेंगे। भैया जी उसके मस्तिष्क के विकास पर मन ही मन हंसे। "इसे कौन बताये कि मीडिया वालों के सामने एक्टिंग करनी पड़ती है। मना करने पर वे कुछ का कुछ छाप सकते हैं। इसलिए उन्हें ढंग से ब्रीफ करना पड़ेगा"। भैया जी ने उस चमचे से कहा
"जाओ, सभी मीडिया पर्सन्स को इज्जत से लिवा लाओ और उनके लिये बढिया सी खाने और "पीने" की व्यवस्था करो। और हां, वो "सी" कैटेगरी वाले लिफाफे भी लेते आना और एक एक लिफाफा सबको पकड़ा देना"। भैया जी ने अपने चेहरे पर गजब की हंसी ओढ ली थी। चमचा भैया जी के बदले हुए रूप को देखकर दंग रह गया। इतनी बढिया एक्टिंग तो मंझे हुए कलाकार भी नहीं कर सकते हैं जितनी भैया जी कर रहे हैं।
सभी न्यूज चैनल्स वाले अंदर आ गये। भैया जी ने सबसे मुस्कुरा कर हाथ मिलाया और उन्हें बैठने को कहा। सभी मीडिया पर्सन्स का एक ही प्रश्न था
"भैया जी, सरकार ने नेताजी को पद्म विभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया है इस पर आपकी पहली प्रतिक्रिया क्या है" ?
भैया जी कुछ सोचने की एक्टिंग करते हुएबोले "नेताजी का व्यक्तित्व इतना विशाल था कि उन्हें "भारत रत्न" दिया जाना चाहिए था। सरकार ने नेताजी को पद्म विभूषण पुरस्कार देकर सम्मानित नहीं बल्कि अपमानित किया है"। राजनीति में राजनीति का जवाब भी राजनीति से ही दिया जाता है। अब भैया जी के चेहरे पर मुस्कुराहट तैरने लगी थी।