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रंजना उपाध्याय

Drama

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रंजना उपाध्याय

Drama

पड़ोसी हो तो ऐसा

पड़ोसी हो तो ऐसा

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सुधा की शादी के बाद एक साल के अंदर ही सासू माँ को हार्टअटैक की वजह से इस दुनिया को त्याग कर अपनी दुनिया में जाना पड़ा। सुधा और सासु माँ का रिश्ता बहुत ही प्यारा था। सासु माँ के जाने के बाद सुधा टूट गयी। धीरे धीरे समय बीतता गया, लगभग 3 साल गुजर गए। अब अगल बगल से लोग पूछने लगे। कब तक बच्चे का विचार किया है? सुधा चुप होकर कुछ नहीं बोलती थी और कमरे के अंदर चली जाती थी।

एक दिन सुधा के पड़ोस में ही रहती थी मीरा आंटी आयी और समझाने लगी, बेटा तुझे कोई प्रॉब्लम है या तुम दोनों नहीं चाहते हो। बात क्या है?

सुधा- नहीं आंटी कुछ नहीं, बस ये डर लगता है कि यहाँ मेरा कोई नहीं है, न ही कोई मायके में है। एक भाई है लेकिन मुझे देखना नहीं चाहता। ये लोक लाज से शादी कर ड़ी। यहाँ आयी तो सासु माँ को ईश्वर ने उठा लिया। एक वही थीं जिससे मुझे प्यार मिला। मुझे भी लगा कि इस दुनिया में कोई तो है जो मुझे अपनी बेटी कह रहा है। लेकिन ईश्वर को नहीं पसन्द आया उन्हें भी छीन लिया।

मीरा आंटी- अरे बेटा तुम अकेली नहीं हो। मैं हूँ न मैं सब करूँगी। तुम चलो मेरी परिचित डॉक्टर सिंघानिया जी हैं। एक बार दिखा लो फिर ईश्वर नाम लेकर प्लान करो।

सुधा- आप इतना कहती हैं तो अब संजय से बात करूँगी। तब तक आप चाय पी लीजिये। चाय खत्म होते ही आंटी जाने को तैयार होती हैं।

मीरा आंटी- अच्छा चलती हूँ बेटे, कल तुम तैयार रहना फिर चलते हैं।

सुधा- ठीक है आंटी।

संजय आते हैं और सुधा संजय आपस में समझ कर तैयार होते हैं कि चलो इतना सहारा आंटी ने दिया। वैसे आंटी शुरू से ही बहुत हम सबको प्यार करती थीं। मम्मी को तो एक सेकेंड अकेले नहीं छोड़ती थीं। मम्मी भी यही बोलती थी। तुम मेरा इतना ख़्याल रखती हो, तो सजंय की शादी के बाद बहु तुम्हारा खूब ख़्याल रखेगी।"

सुधा- आप ऑफिस जाते समय हमें और आंटी को डॉक्टर के पास छोड़ते हुए चले जाइयेगा।

संजय- अच्छा फिर आंटी को बोल दो और छोड़ दूंगा। फ्री होना तो बता देना मैं कैब कर दूंगा। घर आ जाना, मन करेगा तो कहीं घूम लेना।

सुधा- नहीं घर ही आऊंगी। कैब की कोई जरूरत नहीं है। हम लोग मैट्रो से आ जाएंगे।

संजय -जैसा तुम समझना।

डॉक्टर की क्लीनिक आ गयी। चलो आप लोग उतर जाओ हम निकले ऑफिस के लिए..........बाय सुधा बाय आंटी जी।

कहते हुए सजंय ने गाड़ी आगे बढ़ा ली। सुधा और मीरा आंटी क्लीनिक के अंदर प्रवेश कीं।

डॉक्टर-कैसी है मीरा जी ?बहुत दिन बाद आपके दर्शन हुए। ये आपकी बहु है।

मीरा-मैं बिल्कुल ठीक हूँ। आप कैसी हैं। ये मेरी बहु तो नहीं है लेकिन बहू से कम भी नहीं है। समझ लीजिए मेरी बहू ही और मुस्कुराने लगी।

डॉक्टर- बताइए क्या परेशानी है। फिर सुधा ने सब बताया इसीप्रकार की प्रॉब्लम थी जिसकी इस वजह से नहीं कर रहे थे।

 डॉक्टर-कुछ दवा लिख रही हूँ। ले लीजिए बाकी सब ठीक है।

दो महीने बाद..............।

सुधा-आंटी जी आप दादी बनने वाली हैं।

मीराआंटी-अरे वाह आज का दिन बहुत अच्छा है। जो इतनी बड़ी खुशखबरी मिली। इधर सजंय अपने पापा जी को यह खुशखबरी दे दिया। पापा जी बहुत खुश हुए।

शाम को मिठाई के साथ आंटी आयी अगल बगल सबका मुह मीठा करवाई। बहू सुधा आज से तुम कोई काम नहीं करोगी हम हैं न तुम्हारी सास से कम नहीं हूं। सुधा- अरे आंटी मुझे कोई दिक्कत नहीं हैं जब होगी तो आप फिर करिएगा।

सजंय-मजाकियां लहजे में चलो आज से जली भुनी रोटी खाने के दिन गए। वाह आंटी अब आप अपने हाथ की मोटी रोटी और आलू बैंगन का भरता बनाना।

आंटी-बिल्कुल बेटा सब तुम्हारे बचपन का खाना बनाउंगी । ताकि तुम्हारा बच्चा भी तुम्हारी तरह खूब खाने वाला हो। कहते हुए किचन में घुस गई। सजंय से लेकर सुधा सबका बखूबी ख्याल रखती थी। अपने घर बस नहाने और अपने लड्डू गोपाल जी को भोग लगाने जाती थी।

अकेली थी बच्चे बाहर विदेश निकल गए थे। पति थे नहीं। सुधा के साथ समय बीत जाता था।

3 महीने बाद अल्ट्रासाउंड हुआ तो डॉक्टर ने बता दिया । दो बच्चे हैं। लगता है जुड़वां बच्चा होगा बहु रानी को कहते हुए मुस्कराने लगी।

सुधा-मन ही मन में सोचने लगी कि हे प्रभु दोनों दे देना एक लड़की एक लड़का ।

धीरे धीरे समय बढ़ रहा है। नौवां महीना लग गया। सबको बेचैनी हो रही है।

........समय बीत रहा है। और सुधा को घबराहट हो रही है। मीरा आंटी को रोज आंटी कहती थी जब दर्द होने लगा। तो अचानक सुधा के मुह से अचानक माँ शब्द निकला माँ .......माँ....... देखो न पता नहीं क्यों बहुत तेज का दर्द हो रहा है।

मीरा जी यह सुन विह्वल हो उठी। और डॉक्टर से बात की और कैब लेकर क्लीनिक पहुचीं और उधर सजंय ऑफिस से भागता हुआ क्लीनिक पहुँचा। जब तक पता लगाते हुए रिसेप्शन पर पहुँचा की अचानक से नर्स ने आवाज दी कि सुधा जी के साथ कौन आया है। आंटी बोलने को थी तब तक सजंय ने जोर से आवाज दी मैं हूँ। नर्स ने मुस्कुराते हुए बोला कि दो बच्चे एक बेबी बॉय एक बेबी गर्ल यह सुनते ही आंटी का पैर छूकर प्रणाम किया। थैंक यू भी बोला आप न होती तो हम और सुधा नहीं सोच पाते।

अच्छा पापा जी को बता दूं।

फोन करके अपने पापा जी को बताया कि आप दो बच्चों के दादू बन गए। पापा जी इतना सुनते ही बाजार चले गए। और ढेरों नारियल,छुहारे, काजू,किसमिस, इत्यादि। सब भर कर ले आये। घर पर रख कर फिर बहु और बच्चों को देखने गए। मीरा जी को धयन्वाद किया आप न होती तो मेरे घर में खुशियां नहीं आती। आपने तो पूरा फर्ज निभाया जो मेरी पत्नी सरला से वादा किया था। मीरा जी दो दिन बाद घर ले आई। पूरी सेवा किया दोनों बच्चों को मालिश करना और सुधा को समय से खाना दूध सब खूब किया।

सुधा अब आंटी न कह कर अपनी माँ का दर्जा दे दिया। मन में सोच लिया कि मेरे बच्चे बोलने लायक होंगे तो नानी ही बोलेंगे।

बच्चे धीरे धीरे बड़े होने लगे मीरा जी को नानी ही जानते थे। मीरा जी भी बहुत खुश होती थी। बच्चों को साथ में खिलाना अपने पास सुलाना जब सुधा बुलाती तो बच्चे आने को तैयार नहीं होते। मुझे नानी के पास रहना है।

दोनों परिवार खुश रहने लगा। सुधा के पड़ोसी जो बहुत पास में रहते थे बोलते थे "पड़ोसी हों तो ऐसे। सरला से दोस्ती थी, लेकिन सरला के मरने के बाद भी बहुत अच्छा ताल मेल बना कर रह रहे हैं ये लोग। दोस्ती की मिसाल बनी मीरा जी।

अगर आप दोस्ती किये हैं तो उसे बखूबी निभाना भी सीखें। कहने वाला रिश्ता नहीं होना चाहिए। करने वाला रिश्ता होना चाहिए। जब उसको जरूरत थी तब तुम मुह मोड़कर चल दो। जब उसको जरूरत नहीं है तो अच्छा तालमेल बनाओ। पड़ोसी हो तो ऐसा ही जो जरूरत पड़ने पर आपका सहयोग करे और साथ खड़ा भी हो। मैं भी इसी तरह की दोस्ती पसन्द करती हूं। मेरे पास दोस्त बहुत कम हैं लेकिन जो हैं वो एक दूसरे के लिए मर मिटते हैं।


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