पैगाम
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पुरस्कार सम्मान तालियों की गड़गड़ाहट के बीच चल रहा है। सांत्वना, विशिष्ट, अतिविशिष्ट पुरस्कार प्रदान किए जा चुके हैं। सामाजिक और साहित्यिक संस्था की महासचिव ने अपने सर्वाधिक प्रतिष्ठित पुरस्कार "विश्व हिंदी सृजन विभूति" की घोषणा की। सभागार एक बार फिर तालियों से गूँज उठा। देश के कोने-कोने से आए लोगों में अपार उत्साह के मध्य तृतीय, द्वितीय पुरस्कार प्रदान किए गए। जब प्रथम स्थान की घोषणा हुई तो सभागार में सन्नाटा छा गया। अनुरोध के बावजूद कुछेक लोगों ने आधे-अधूरे मन से तालियां बजाईं।
सम्मान समारोह के उपरांत जल पान गृह में एक युवा महिला पत्रकार ने "विश्व हिंदी सृजन विभूति" के प्रथम पुरस्कार विजेता को बधाई देते हुए कहा - "कभी अपनी रचनाएं पढ़वाइए।"
रमा सकपकाहट भरी मुस्कान छोड़कर आगे बढ़ गई। महिला पत्रकार को अजीब-सा लगा। तभी एक व्यक्ति ने कहा - "बंजर भूमि की फसल में तेल ढूंढ रही हो ?"
"मतलब।" तपाक से आश्चर्यचकित हो कर महिला पत्रकार ने कहा।
वह व्यक्ति मुस्कुराया और बोला - "इस तरह की संस्थाएं पहले आकर्षण बनती हैं, फिर आकर्षित करती हैं और इसके बाद आगम-निगम के आधार पर फैसला सुनाती हैं पुरस्कारों का।"
"आगम-निगम….. मैं मतलब नहीं समझी आपका।" सोचते हुए पकौड़ी को मुंह में डालते हुए बोली।
"बिना लाग-लपेट के कहूं तो ख़रीद-फरोख्त।"
"मुझे शक हुआ था तभी तो रमा के पास पहुंची थी। मगर वह तो मेरी बात का जवाब दिए बिना ही चली गई।"
व्यक्ति ने ज़ोर से हंसते हुए कहा - "यही तो है इनका भाईचारा।" उसने अपनी हंसी रोकते हुए कहा -
"हमें खिलाओ, इनाम पाओ, अगली बार किसी और को लाओ। मौज़ मनाओ- खुशी मनाओ। जेब हमारी भरते जाओ या बदले में कुछ करते जाओ।"
