पार्ट 15 :-क्या अनामिका वापस आएगी ?
पार्ट 15 :-क्या अनामिका वापस आएगी ?
मेरी ये कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है, जिसमें प्रयोग किये गए जगह, नाम ,चरित्र सब काल्पनिक हैं जिसका जीवित या मृत किसी से कोई लेना देना नहीं.. अगर मिलता हुआ पाया जाता है ( जिसकी कोई संभावना नहीं ) तो मात्र संयोग कहलायेगा....
'आपने पिछले भाग में पढ़ा कि रुचिका के एक्सीडेंट के बाद, अंकित और नीरू उसे हॉस्पिटल ले आते हैं और अगले दिन जब अंकित ऑफिस में अपने केबिन में काम कर रहा होता है, तब नीरू उससे आकर बोलती है...कि एक बुरी खबर है..अब आगे--
"क्या हुआ " अंकित ने अपनी सांस रोकते हुए पूछा
"रुचिका ..."फिर मुंह पर हाथ रख रोने लगती है ..अंकित उसके पास जाकर
"मुझे बताओ नीरू...बड़ी घबराहट हो रही है ..रुचिका ठीक है ना?"
"नहीं अंकित ...वो कोमा में चली गयी है...डॉ कहते हैं...उन्हें नहीं पता ...उसे कब तक होश आएगा" दोनों हाथों से अपना मुंह ढँक कर उसने जोर से सिसकी ली
"शै ..."अंकित के मुंह से निकला ...अंकित अपनी दोनों हाथों की उंगलियों को आपस मे फँसा अपने होंठों पर रखते हुए कुछ देर चुप खड़ा रहा उसकी आँखों में आंसू भर आये..फिर दोनों हाथों का पंच बना अपनी डेस्क पर मारते हुए कहा..."कुछ सेकेंड...बस्स कुछ सेकेंड और मिल जाते तो.. वो कमीना मेरे हाथों से बचता नहीं..ओह्ह ...इतनी बड़ी बेवकूफी कैसे हो गयी मुझसे" अंकित ने झुंझलाते हुए कहा
"आप दोनों को सर ने बुलाया है इसी वक्त " संपत ने आकर बोला ...तो दोनों ने खुद को संयत किया और राव सर के केबिन तक पहुँचे..."क्या तुम दोनों को पता लगा रुचिका के बारे ?
उन्होंने पूछा तो दोनों ने हामी में सिर हिलाया...राव सर ने आगे कहा "मैं उसे प्यार से सुरुचि कहता था ..हर काम सुचारू रूप से करने वाली..बेहद होशियार... मेरे ही रिक्वेस्ट पर यहाँ आयी थी...आह ...अंकित... ट्रक का नम्बर ना लेकर गलती हुई है तुमसे, जहाँ एक तरफ वो हॉस्पिटल में हैं वहीं दूसरी तरफ तुम पुलिस के शक के घेरे में"
अंकित और नीरू कुछ देर शांत खड़े रहे ...थोड़ी देर की खामोशी के बाद राव सर ने कहा..
"ईश्वर ने चाहा तो जल्द ही सही होगी वो...मैंने तुम दोनों को रुचिका के एक्सीडेंट के बारे में किसी को भी बताने के लिए इसलिए रोका था...कि मैं नहीं चाहता ऑफिस में बेकार की बातें बने...और काम प्रभावित हो...वैसे भी जो करना है, डॉ को करना है...तुम लोगों का क्या सुझाव है इस बारे में "
"आप ठीक कहते हैं सर" दोनों ने एकसाथ कहा
"हम्म...ठीक है,... नीरू तुम जाओ ...अंकित कैसी रही मीटिंग्स ?"
"सब अच्छी हुई सर...लेकिन मुझे गोपाल दास के साथ हुई मीटिंग सबसे बेहतर लगी"
"वो ...जिनका जैम और जैली है?"
"जी सर"
"उसमें क्या खास लगा तुम्हें "
"इंडिया ही नहीं बल्कि विदेशों में भी गोपाल एक बहुत पॉपुलर ब्रांड बन चुका है...फिर फाइल सौंपते हुए
ये देखिये सर..पिछले दो सालों में इनकी ग्रोथ लगातार बढ़ रही है साथ ही...उनके साथ काम करने के रूल और रेगुलेशन बहुत आसान हैं"
"हम्म ...अगर तुम्हें इतना ही विश्वास जनक लगा तो डील करनी चाहिए थी.. क्यों नहीं की"? राव सर फाइल के पन्ने पलटते हुए बोले
"इतनी बड़ी डील करते हुए.... मुझे बड़ा डर लगता है सर"
"(हँसते हुए ) हम्म ...ठीक है, तुम्हारे डर पर भी काम करते हैं...एक काम करो गोपाल दास से मीटिंग फिक्स करो मेरी "
"जी सर.." कहने के बाद भी जब अंकित वहीं खड़ा रहा तो उन्होंने पूछा
"कुछ और कहना चाहते हो क्या? ...बोलो"
"सर ...वो नवीन ने मुझसे कहा कि उसे, सबसे ज्यादा शक मुझ पर है ...मैं "
"परेशान मत होओ अंकित.....इस ऑफिस में काम करने वाले किसी भी सख़्श को एम्प्लॉयर नहीं मानता मैं, बल्कि परिवार का हिस्सा मानता हूँ...तुम बस्स काम पर ध्यान लगाओ...इतना ध्यान रखना कि उससे कोई भी बात अकेले में मत करना ...मेरे सामने ही करना ...बाकी मैं देखता हूँ"
"बहुत धन्यवाद सर" बोलकर अंकित बाहर निकल आया
राव इंडस्ट्री ,अगले दिन
अंकित राव सर के कहे अनुसार एक लेटर टाइप कर रहा था...
"अंकित ...बिना एच. आर.काम नहीं चलेगा ..लेकिन अभी मैं ये भी नहीं चाहता, कि कोई नया एच. आर .आये, इसीलिए मैंने एक जान पहचान वाले लड़के को बुलाया है ...ताकि काम मिल जुल कर हो जाये, तुम ,नीरू और वो लड़का मिलजुलकर काम संभाल लें..
"ठीक है सर"
"तुम उस पर नजर बनाए रखना ...अब तक तो उसे आ जाना चहिये था"
तभी एक चौतीस पैंतीस साल का युवक पहुंचता है. छरहरे बदन का बेहद औसत नाक नक्श का जिसकी लम्बाई पांच फीट और ग्यारह इंच की रही होगी ..देखने से अनुभवी लगता था...आते ही मुस्कुराहट के साथ बोला
"राव सर,...में आई कमिन "?
"हाँ हाँ ...आओ तुम्हारा ही इंतज़ार था ...अंकित.. ये हैं सूरज और सूरज ये हैं अंकित
...ये तुम्हें नीरू से भी मिला देंगे, फिलहाल तो मैंने डेस्क पर कुछ फ़ाइल रखवा दी हैं...उन्हें देख लो ....फिर अंकित से
"अंकित ,मीटिंग से आकर मिलता हूँ तुमसे...तुम ये लेटर ड्राफ्ट कर दो "
राव सर के जाने के बाद सूरज डेस्क पर जाकर अपना मोबाइल निकाल कर उस पर स्नेक वाला गेम खेलने लगता है ...अंकित जब बाहर आता है तो सूरज को गेम खेलते देख उसे हँसी आ जाती है, लेकिन उससे कुछ ना बोल वो अपने केबिन में आ जाता है, थोड़ी देर बाद..
"क्या आपके पास लाइटर है "
अपने काम में मशगूल अंकित ने जब नजर उठाई तो सामने सूरज केबिन के गेट पर खड़ा था
"माफ करना दोस्त, लाइटर तो नहीं मेरे पास " अंकित ने बड़ी नर्मता से कहा और अपने काम में लग गया ...
"हम्म...तो सिगरेट तो होगी ...लाओ वही दो ...लाइटर कहीं और से ले लूँगा"
सूरज ने ऐसे कहा जैसे वो अंकित को सालों से जानता हो
"सिगरेट भी नहीं मेरे पास " अंकित ने जवाब दिया
"मतलब ....तुम सिगरेट नहीं पीते "? उसने आश्चर्य से कहा
"जी...हाँ ...नहीं पीता " बड़ा सटीक जवाब दिया उसने
"अब ये मत कहना कि तुम अल्कोहल भी नहीं लेते?"
"कहना क्या...जो सच है सो है....नहीं लेता" अंकित बड़े उखड़े मन से बोला
"बहुत सही...मतलब शराफत का कीड़ा लगा है तुम्हें" सूरज मजाक उड़ाने वाली मुस्कुराहट से बोला
अंकित ने उसे,... इस नजर से देखा कि अंकित को उसकी बातों में कोई रुचि नहीं ...और अति व्यस्त होने का दिखावा करते हुए काम में लग गया
"ना शराब ...ना सिगरेट ...ये भी कोई जीना हुआ?
...हम्म ...इससे तो मौत अच्छी. स्साला.."
सूरज के ऐसे बोलने पर अचानक अंकित के चेहरे पर हँसी आ गयी...एक पल पहले ही जहाँ वो ये चाहता था कि सूरज वहां से चला जाय वहीं उसके मुड़ने भर से ...अंकित फुर्ती से अपनी कुर्सी से उठा और उसे रोक लिया ...
"सुनो सूरज, मेरे पास तो नहीं लेकिन मैं करता हूँ कुछ ..यहीं रुको .."
एक कुलीग से सिगरेट और लाइटर लाकर उसने सूरज को पकड़ाते हुए कहा...चलो, बाहर चलकर पीना ..
बाहर आकर सूरज ने एक सिगरेट जलाई .
"तो जो सिगरेट या शराब ना पिये उसकी जिंदगी बेकार...हुम्म "अंकित ने मुस्कुराते हुए पूछा
"अमा यार ...मेरे खयाल से तो है बेकार ..जिंदगी है... तो हर चीज़ का मजा लेना चाहिए "उसने कश खींचते हुए कहा..
अंकित को उसकी बातें अच्छी लग रही थी, तो बड़े ध्यान से सुन रहा था..
"जहाँ तक मुझे लगता है, तुम्हें ये शराफत का कीड़ा इसलिए है कि तुम चाहते हो कि, कोई अच्छी लड़की मिले तुम्हें ...तुम शादीशुदा तो नहीं"
"नहीं ..अभी नहीं" अंकित ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया
"तो कोई महबूबा तो होगी ही " उसने पूछा
अंकित को लगा बता दे फिर तुरंत ये खयाल आया कि अभी अनामिका अकेली है, सुरक्षा की दृष्टि से ठीक नहीं होगा, सो बोला
"नहीं वो भी नहीं "
"फिर क्यों साधु बने घूमते हो..मेरी मानो, ऐसे लड़कों को लड़कियां लल्लू समझती हैं ...इन्हीं आदतों की वजह से तुम अकेले हो, यकीन करो .....लो (अपनी सिगरेट देते हुए ) एक कश ले लो ...जन्नत महसूस होगी "
अंकित ने हँसते हुए मना कर दिया ...तो उसने बोलना चालू रखा
"तो क्या नॉनवेज भी नहीं खाते"? उसने पूछा और अंकित के ना में सिर हिलाने पर
"हम्म...मेरी मानो ...छत से कूद ही जाओ ...जिंदगी खराब है तुम्हारी ...मेरे भाई " उसकी ये बात सुन अंकित बहुत देर तक हँसता रहा ..
"अपने बारे में कुछ बताइये " अंकित ने पूछा
"क्या बताएं ...ट्रेजडी हो गयी हमारे साथ ...पूछो करने वाला कौन?"
"कौन ?"
"हमारे पिता ...बीमार थे ...एक दिन अपने पास बुलाकर पूछा "मेरी बात मानोगे ?" भला कौन मना करता है ? मैंने भी हाँ में सिर हिला दिया ...तभी तकिये के नीचे से एक लड़की की फ़ोटो निकाल मेरे हाथ में थमा दी, और बोले शादी कर लो इससे ...
"फिर ?" अंकित ने पूछा
"फिर क्या...खेल गए मेरे ज़ज़्बातों से ...अपने जीते जी, हमें यहां नरक में फँसा कर, खुद बुढ़ऊ निकल लिए स्वर्ग में..
ये पेरेंट्स भी ना. बड़े राजनीतिक होते हैं कब कौन सा दांव खेलना है... उन्हें पता है" उसने एक सिगरेट और जलाते हुए कहा..बड़ा मजाकिया अंदाज में कहा..
अंकित को उसकी बातों में बहुत मजा आ रहा था, बोला
"तो क्या आप खुश नहीं आप अपनी वाइफ के साथ "
"खुश? ...उसने मुझे स्वर्ग और नर्क यही दिखा दिया है ..मुझे दुख और सुख ...सब एक समान लगे हैं ....मेरे भाई"
सूरज के यूँ फिल्मी अंदाज में बोलने पर अंकित अपना पेट पकड़ जोर से हँसने लगा
अंकित :---हा हा हा
और सूरज ने उसका साथ दे दिया ...दोनों बहुत देर तक बातें करते रहे और हँसते रहे...
अनामिका ने उसका मन रखने को थोड़े से सामान की लिस्ट दे दी थी... लेकिन अंकित तीन चार महीने का राशन उठा लाया ...
आज पहले से दरवाजा खुला था ...सोफे पर उसकी कुछ किताबें रखी थी ...अंकित के मन में आया 'कहीं ऐसा तो नहीं कि आजकल ये लड़की पढ़ाई करती ही ना हो उसके प्यार में पड़...नहीं ...नहीं ये तो बहुत गलत हो जाएगा...
वो आती दिखी ...अपने बालों को मोड़ जूड़ा बनाती हुई ..अंकित ने उसे रोक दिया "खुले रहने दो ना ...वो मुस्कुराई और बालों को छोड़ दिया ...गोल गोल घूमते हुए वे खुले और बिखर गए ...उसने उन्हें हल्के से पीछे की ओर धकेल दिया ...और कुछ बाल मनमानी सी करते हुए उसके चेहरे पर आ गए ... अंकित के चेहरे पर मुस्कान आ गयी
"आज खुश दिख रहे हो" उसने पूछा
"हम्म ...एक नया लड़का आया है सूरज, बहुत मजाकिया है ...
"तुमसे जरा सा सामान मंगाया था, पूरा मार्केट उठा लाये तुम तो"
"मेरा बस चले दुनिया तुम्हारे कदमों रख दूँ.... अभी देखी ही कहाँ है तुमने चाहत मेरी "
"ओह्ह ....हा हा हा बस्स भी करो " वो हँसने लगी और कॉफी ले आयी ... कॉफी में चीनी डालने लगी"
अंकित उसे रोकते हुए..."अरे ...अरे बस्स आधा चम्मच
...कम चीनी लेता हूँ अब....
सुनो...तुमने पढ़ाई बन्द कर दी क्या ? "कॉफी सिप करते हुए अंकित ने पूछा
"नहीं तो ...मुझे याद है गोल्ड मेडल चाहिये मुझे "
"बहुत अच्छे ...मैं तो घबरा ही गया था...मैं चाहता हूँ ..तुम किसी रिसर्च वर्क से जुड़ो ताकि लोग भी जाने मेरी आनामिका कितनी होशियार है..मैं पैसे कमाऊंगा तुम नाम कमाना "और अनामिका के हाँ में सिर हिलाते ही..
....चलो तुम्हारी टेरेस पर चलें" कहते हुए वो सीढ़ियाँ चढ़ने लगा...मौसम बहुत सुहावना था...अंधेरा होने लगा था ...उसके बाल उड़ उड़ कर अंकित को छू रहे थे ...उसे हल्की गुदगुदी का एहसास हो रहा था बोला..
"जानती हो ...जब तुम पहली बार मिली थी ...ये मुझे ऐसे ही छू रहे थे...पहली नज़र बालों पर ही गयी थी तुम्हारे...इनका खास ख्याल रखा करो ...बहुत खूबसूरत हैं और मुझे बहुत पसंद भी हैं"
वो मुस्कुरा दी और अपना सिर उसके कंधे पर रख दिया
"हमेशा मुझसे पूछती हो ...कितना प्यार करते हो...अनामिका ...तुम कितना करती हो "?
"बेहद ..." उसने आंखें बंद किये ही जवाब दिया..
"हे ...तुम सूरज से मिलोगी ..चलो ना अनामिका ..तुम्हें उससे मिलकर बहुत अच्छा लगेगा "
"..पता नहीं कौन कैसा हो ...मैं नहीं मिल सकती किसी से "
"क्यों भला ..मैं हूँ फिर तुम्हें सोचने की क्या जरूरत"?
"तुम क्यों नहीं समझते "वो चिढ़ती सी बोली ...दोनों थोड़ी देर चुप रहे ...
"मैं बताता हूँ ना, कि कैसे समझाना है मुझे.... ये जो तुम्हारे सामने पड़ा है ...क्या है ये "? अंकित ने कहा
"ये ?( उसने हाथ में उठाते हुए पूछा )
अंकित :--"हम्म ये"
अनामिका:--"पत्थर है"
अंकित:- भारी होगा?
अनामिका:-- हूँ... है तो
अंकित:--इसे उठाओ और मेरे सिर पर दे मारो
अनामिका:--ये क्या ...तुम भी ? उसने आँखें दिखाते हुए कहा
अंकित:-- मैं भी क्या ? जब समझ में कुछ आता नहीं तो ये सिर किस काम का... बोलो ..ऐसे ही समझाना पड़ेगा ना"
अनामिका:-- हा हा हा तुम भी ....हा हा ओह्ह कितनी प्यारी बातें करते हो तुम ....मन करता है तुम्हें ले जाऊँ कहीं दूर सबसे
अंकित :--"ये तुम्हें प्यारी बाते लग रही हैं?
(बनावटी गुस्से से) हद्द है ..हुम्म तुम ले जाओगी मुझे..मुझे ? बिना दिमाग वाले अंकित को "?
वो बेतहाशा हँस रही थी ..हँसते हँसते उसने अपना सिर उसने फिर उसके कंधे पर रख दिया ....अंकित भी थोड़ी देर बाद हँसने लगा ..हल्की ठंडी हवा से उसके बाल उड़ उड़ कर अंकित को छूने लगे....
राव सर ने इंस्पेक्टर नवीन को देर शाम अपने ऑफिस में बुला लिया था.. वो सादा ड्रेस में राव सर के सामने बैठा था ...और राव सर का मंगाया नॉनवेज डिनर जो कि सिर्फ नवीन के लिए था...उसे बड़े चाव से खा रहा था ...
"पुलिस की मदद करनी चाहिए जैसा कि लोग कहते हैं" राव सर ने कहा
"हम्म" चिकन के लेग पीस को दांतों से दबाते हुए नवीन के मुँह से निकला
"नवीन...पता है तुम्हें ... एक दूर की रिश्तेदारी में तुम मेरे भतीजे भी लगते हो " राव सर बहुत मीठे शब्दों का प्रयोग कर रहे थे
नवीन :--"हम्म"
राव सिर :--"तो अंकित के पीछे क्यों समय बर्बाद करते हो...इस केस को दूसरे एंगल से क्यों नहीं देखते ...
नवीन :--"अंकित ने कहता है ...ट्रक का नंबर नोट नहीं किया उसने...आपको लगता है ऐसा हो सकता है ?" उँगलियों पर लगे चावलों को जीभ से चाटते हुए बोला
राव सर:--"वो कर सकता है ऐसा... बल्कि तुम भी होते तो ऐसा ही करते ...पुलिस के नजरिये से ना देख कर सामान्य इंसान की तरह सोचो ...तो लगेगा ...स्वाभाविक है..समय रहते वो उसे ना बचाता तो रुचिका मर जाती ....समय ही खराब करना है अंकित पर शक करके " राव सर ने बड़े विश्वास से कहा
"आप उसे बचाने में इतना जोर क्यों लगा रहे हैं " नवीन ने चिकन करी में मिले चावलों का गोला सा बना मुंह मेंमे रखते हुए कहा
राव सर:--"क्योंकि पिछले पैंतीस सालों के अनुभव है मुझे, इंसान को पहचानने का, जानता हूँ वो बेकुसूर है ...तुम दोनों ही ...जरूरी हो मेरे लिए... अंकित से ध्यान हटेगा तुम्हारा, तब तो असली गुनाहगार सामने आएगा ...और अंकित मेरे ऑफिस के लिए बहुत जरूरी है ....जहां तक यकीन है मुझे... तुम भी जानते हो, कि वो बेवकूफ़ ....बेकसूर है "
नवीन :--"हम्म " बीयर की बोतल उठा नवीन ने मुँह में उड़ेल ली
राव सर:--"एक लड़की की जान बचाने का ये सिला मिलना चाहिए उसे ?"
नवीन:--"हम्म...मुझे भी लगता तो यही है ..कि किसी ट्रक वाले ने ज्यादा नशे में होने के कारण रुचिका की गाड़ी में टक्कर दे मारी ...लेकिन फाइल बन्द कैसे करें?"
राव सर:-- एक छोटा सा बैग उसकी ओर खिसकाते हुए "ऐसे"
नवीन ने बैग खोला हज़ार-हज़ार की नोटों की गड्डी दिखी ...लगभग अस्सी हजार से एक लाख के बीच रुपये होंगे...
राव सर:--"इतने काफी होंगे ना " राव सर ने पूछा
नवीन :--"हम्म...अब रिश्तेदार हैं आप.. .तो इतने में चला लूंगा काम "
नवीन ने बीयर बोतल उठा, मुंह से लगाई और एक बार में ही खाली की और मेज पर धमक दी... रुपयों का बैग उठाया और बाहर निकल गया ..........
उसके जाते ही राव सर ने तेज़ आवाज में कहा
"बाहर आ जाओ ...वो चला गया"
राव सर के केबिन के अंदर बने दूसरे केबिन से एक हट्टा कट्टा नौजवान बाहर आकर राव सर के सामने बैठ गया .........
और दोनों एक दूसरे को देख मुस्कुरा दिए
. ..................................क्रमशः........................
आप लोगों में से कुछ लोगों को "हज़ार के नोट की गड्डी " और स्नेक वाला गेम "पढ़ अटपटा लगा होगा, ऐसा इसलिए कि कहानी की पृष्ठभूमि 2008 के आसपास के समय की ली हुई है .जैसा कि कहानी के शुरुआत में बताया भी है मैंने....