पानी पिला दो, नानी!
पानी पिला दो, नानी!
नाम था उसका अंजलि । उसके नाम के साथ जल शब्द जुड़ा था। लेकिन वह प्यासी मर गई । जल नहीं मिला अंजलि को। उसकी नानी का नाम था सुखीदेवी, मगर उसके जीवन में सुख का भयंकर सूखा पड़ा हुआ था। यह इस समय की सबसे भयानक उलटबाँसी है। यहाँ किरोड़ी भी भीख मांगता मिल सकता है। दयाराम नंबर एक का कंजूस हो सकता है । पंडित आचरण से खंडित मिल सकता है। खैर, इस सच्चाई को तो हर कोई जानता है। मैं तो मासूम बच्ची अंजलि की करुण कथा सुनाने बैठा हूँ, जिसे समय पर पानी मिल जाता तो शायद वह बच जाती। लेकिन लॉकडाउन ने न जाने कितनी ही मासूम जिंदगियों को यकायक डाउन कर दिया । अच्छे-अच्छे लोग कोरोनारूपी काल के गाल में समा गए।
अंजलि के गांव पानीपुर से तीस किलोमीटर दूर उसकी नानी सुखीदेवी का घर था। हर साल अंजलि कुछ दिनों के लिए नानी के पास चली जाती थी। तब से जा रही थी, जब वह घुटनों के बल चला करती थी । उसके पिता बहिन सुखी देवी के पास अंजलि को छोड़कर खेती किसानी के काम में लग जाते और बाद में अंजलि को वह वापस ले आते । इसलिए अंजलि नानी से खूब हिलीमिली थी । नानी उसे बड़े प्रेम से रखती। अंजलि के पसंद का खाना बनाती । उसे ढेर सारे खेल-खिलौने देती। हालांकि सुखी देवी बहुत बहुत पैसे वाली नहीं थी लेकिन इतनी गरीब भी नहीं थी कि अंजलि की कोई ख्वाहिश ही पूरी न कर सके। सुखी के पति रामभरोसे गाँव के गौटिया जैसे थे । उनकी पर्याप्त खेतीबाड़ी थी इसलिए साल भर अनाज की कोई दिक्कत नहीं रहती थी । पिछले दिनों कोरोना महामारी फैलने के कारण लॉक डाउन लग गया, तो अंजलि अपने घर वापस न जा सकी। उसे पढ़ाई की बहुत चिंता इसलिए नहीं थी कि विद्यालय बंद हो चुके थे। लेकिन अंजलि को रह-रह कर अपना गाँव पानीपुर याद आ रहा था।
एक दिन उसने नानी से कहा, '' अब मुझे घर जाना है।''
नानी बोली, "मगर जाएगी कैसे ?'लाखडाउन' लगा है बेटी। गाड़ी-वाड़ी चल नहीं रही। पैदल तीस-चालीस किलोमीटर जाना संभव न होगा। तू भी थक जाएगी और इस बुढ़ापे में मेरी हालत भी खराब हो जाएगी । इसलिए कुछ दिन और रुक जा। जब गाड़ी चलने लगेगी, तब आपन चलेंगे ।"
नानी की बात सुनकर अंजलि चुप हो गई लेकिन उसे गाँव की याद आती रही। अपनी सहेली चंपा और सत्यवती के साथ फुगड़ी खलने की याद उसे गांव लौटने के लिए बेचैन कर रही थी। लेकिन वह भी मजबूर थी। इंतज़ार करना होगा। जब कोई गाड़ी चल ही नहीं रही है तब आखिर जाये तो जाये कैसे! हालांकि अंजलि ने टीवी पर देखा था कि लोग लंबी-लंबी दूरी पैदल चलकर पार कर रहे हैं। किसी के पास साइकिल है तो साइकिल से पाँच सौ किलोमीटर की यात्रा कर रहा है। उसने यह भी समाचार देखा था कि ज्योति कुमारी नाम की किसी लड़की ने अपने पिता को साइकिल पर बैठाकर हजार किलोमीटर की यात्रा की । अंजलि यह सोच कर चकित थी कि कैसे कोई इतनी हिम्मत कर लेता है । अंजलि इस बात से भी दुखी थी कि कोरोना वायरस के कारण लोग मर रहे हैं। पता नहीं यह बीमारी कहां से आई है। लेकिन गाँव-गाँव तक पहुँच गई । हर समय नाक और मुँह ढँक के रखना है। बाहर निकलो तो हर समय मास्क लगाए रखो। पता नहीं कब बीमारी नाक के जरिए अंदर घुस जाय। इसलिए जब अंजलि नानी के घर आई थी तो मास्क लगाकर ही आई थी। घर के बाहर भी खेलने निकलती तो वह मास्क लगाए रखती । हालांकि मास्क लगाए रखने से उसका दम भी घुटने लगता लेकिन यह जरूरी था।
अंजलि नानी के साथ दो किलोमीटर दूर पानी भरने जाती। गाँव में कोई बावली न थी। दो किलोमीटर दूर बावडी पानी भरा रहता, जो किसी चमत्कार से कम नहीं था। वरना तो गाँव वाले बिना पानी के दम ही तोड़ देते। गाँव के लोग तपती दोपहरी में पैदल जाते और एक-दो गगरी जल ले कर लौटते। अंजलि भी छोटी- सी गगरी लेकर नानी के साथ चली जाती और उसे भरकर लौटती । हालांकि रास्ते में बहुत-सा पानी छलक कर गिर भी जाता लेकिन अंजलि को बड़ा अच्छा लगता क्योंकि पानी अंजलि के शरीर पर ही गिरता । तब उसे लगता कि मेरा नहाना हो गया। गाँव के लोग बड़ी सावधानी के साथ पानी का उपयोग करते । थोड़ा पानी खाना बनाने और पीने के लिए रखते और थोड़े से पानी से नहाना कर लेते। नहाना क्या, कपड़ा गीला करके लोग बदन को पोंछ लेते, फिर गमछे को निचोड़कर पानी किसी बर्तन में बचा कर रख लेते, जिससे कुछ बर्तन साफ करते। पानी की ऐसी भयंकर किल्लत अंजलि के गाँव पानीपुर में भी थी । वहां तो चार-पाँच किलोमीटर दूर तक कहीं कोई हैंडपंप न था। कहीं कोई बावड़ी भी नहीं। हालांकि सरकार ने घर-घर पानी की योजना की घोषणा जरूर कर रखी थी लेकिन घोषणा केवल घोषणा होती है। पानी की कोई व्यवस्था सरकार कर ही न सकी। मजबूरीवश गाँव की महिलाएं सुबह उठकर पानी भरने पाँच किलोमीटर पैदल जातीं और पानी भर कर वापस लौटतीं । थकी-हारी। दिन भर गर्दन दुखती रहती। गाँव के मर्द कमाने शहर चले जाते और वे भी देर रात लौटते। मगर लॉक डाउन के चलते वे भी घर बैठ गए। सबके सामने यही चिंता थी कि लॉक डाउन लंबा चला तो भोजन की व्यवस्था भी मुश्किल हो जाएगी । घर का रखा अनाज खत्म हो रहा था। ऐसी स्थिति में सुखी देवी ने यही सोचा कि घर का अनाज खत्म हो जाए, इसके पहले अंजलि को उसके गाँव पहुँचा देना ठीक रहेगा। इसी बहाने एक व्यक्ति का बोझ तो कम होगा। यही सोच कर सुखी एक दिन अंजलि को लेकर पानीपुर के लिए रवाना हो गई। उसे उम्मीद थी कि रास्ते में शायद कोई गाड़ी वाला मिल जाएगा,लेकिन वह निराश हो गई। रास्ते में कोई वाहन नहीं मिला। चालीस किलोमीटर की पदयात्रा मजबूरी थी।
नानी ने अंजलि से पूछा, ''पैदल चल लेगी ?"
अंजलि ने मुस्कुराते हुए कहा , "चल लूँगी नानी ।"
लेकिन अंजलि को क्या पता था कि उसे आधा किलोमीटर नहीं, चालीस किलोमीटर तक पैदल चलना है । एक-दो किलोमीटर चलने के बाद ही अंजलि को लगा, आगे की यात्रा कठिन होने वाली है । लेकिन उसे पानीपुर तो पहुँचना ही था इसलिए वह नानी के साथ चलती रही । सफर लंबा था। बीच-बीच में अंजलि को प्यास भी लगती ,तो आसपास कहीं बावड़ी देखने पर अंजलि अपनी प्यास बुझा लेती ।
पास में रखी बोतल में पानी भर कर के घूँट घूँट पानी पीते हुए अंजलि अपनी नानी के साथ आगे बढ़ रही थी। लेकिन दोपहर की गर्मी ने कहर बरपाना शुरू किया तो प्यास और भी तेज होती चली गई । घूँट घूँट पीते हुए अंततः पूरी बोतल ही खाली हो गई। जब व्यक्ति के पास पानी की व्यवस्था न हो तब न जाने क्यों प्यास और तेज हो जाती है । अब अंजलि को खूब जोर की प्यास लगी। पास रखी खाली बोतल को उसने उल्टा करके मुँह से लगाया तो दो बूँदें हलक तक उतरीं लेकिन प्यास न बुझ सकी।
तब नन्हीं अंजलि ने नानी से कहा, " नानी! प्यास लग रही है। मुझे पानी पीना है।''
नानी का भी गला सूख रहा था । उसने कहा, " कुछ दूर और चलते हैं बेटी। शायद कहीं पानी मिल जाए।"
अंजलि ने सिर हिलाकर कहा, ''ठीक है, नानी !"
लेकिन बहुत देर तक चलने के बाद भी कहीं कोई बावड़ी नहीं मिली । एक हैंडपंप दिखाई दिया तो लगा अब प्यास बुझ जाएगी। अंजलि जी भर का पानी पीयेगी। मगर ऐसा न हो सका। हैंडपंप चालू करने करने के बावजूद पानी की एक बूँद भी नहीं निकली । अचानक पास ही एक घर नज़र आया तो नानी खुश होकर बोली, " चल बेटी ! वहां शायद पानी मिल जाए।"
नानी ने दरवाजा खटखटाया । एक महिला बाहर निकली, तो नानी ने कहा, ''थोड़ा पानी पिला दो बहन।"
महिला ने हाथ जोड़ते हुए कहा," हमारे पास पानी नहीं है। माफ करना ।"
सुखी देवी ने गिड़गिड़ाते हुए कहा, ''दो घूंट पानी ही पिला दो। मुझे ना सही, मेरी अंजलि को दो बूँद पानी मिल जाए तो उसका गला तर हो जाएगा वरना बेचारी नन्हीं जान मर ही जाएगी ।"
अंजलि की दशा देख कर महिला भीतर गई और एक कटोरी में थोड़ा-सा जल लेकर आई और बोली, "हमारे पास भी ज्यादा पानी नहीं है । मैं इतना ही दे सकती हूं ।"
अंजलि कटोरी में रखे जल को गटगट पी गई तो उसकी जान में जान आई। सुखीबाई ने महिला को धन्यवाद दिया और आगे बढ़ गई। रास्ते में कहीं कोई गाड़ी नहीं दिखी। कहीं कोई घर भी नज़र नहीं आया। इक्का-दुक्का घर दिखे भी मगर किसी ने दरवाजा नहीं खोला। शायद सब जानते थे कि कोई राहगीर होगा। पानी ही मांगेगा। अगर सामने वाले को पानी दे देंगे तो उनके लिए क्या बचेगा। मजबूरी में लोग निर्मम बन गए। लाख खटखटाने के बावजूद दरवाजा नहीं खोला।
"उफ़्फ़!! न जाने अभी कितनी दूर का सफर बाकी है"। सुखी देवी बुदबुदाई, "शायद अभी तो शायद दस किलोमीटर भी नहीं चल सके हैं और ये हाल है।"
सुखी नानी का भी गला सूख रहा था । अंजलि भी बेचैन हो रही थी । वह बार-बार एक ही रट लगाए हुए थी, '' नानी ! पानी पिला दो!... नानी! पानी पिला दो!" मगर नानी कहां से पानी लाए?
नानी की आँखों में आँसू आ गए । उसने रोते हुए कहा, "बेटी! लगता है अब हमारी किस्मत में पानी लिखा ही नहीं है ।भगवान जाने आगे क्या होगा।"
नानी को रोते देखकर अंजलि ने कहा, "रो मत नानी। मैं बर्दाश्त कर लूँगी । चलते हैं आगे। शायद कहीं पानी मिल जाए।''
सुखी देवी और अंजलि चलते गए ..चलते गए । लेकिन कहीं पानी नहीं मिला तो नहीं मिला। दो-तीन किलोमीटर चलने के बाद आखिरकार अंजलि ने प्यास के सामने घुटने टेक दिए। वह सड़क के किनारे ही गिरकर बेहोश हो गई। नानी जोर से चीखी, " अंजलि !!" फिर उसे गोद में उठाकर सड़क के किनारे एक सूखे दतख्त के किनारे बैठ गई और फूट-फूट कर रोने लगी, "हाय! मेरी अंजलि को ये क्या हो गया!.. हाय मेरी अंजलि!"
अंजलि बेसुध पड़ी थी। सुखी देवी ने उसकी छाती पर कान रखकर धड़कन सुनने की कोशिश की। फिर दहाड़ मारकर रो पड़ी," मेरी अंजलि !"
अंजलि ने प्राण त्याग दिए थे । "अब मैं क्या करूँ, कहाँ जाऊं, सोचकर सुखी देवी छाती पीट-पीट कर रोए जा रही थी । तभी अचानक वहाँ से पुलिस की गाड़ी निकली । सड़क के किनारे एक महिला और बच्ची को लेटे देखकर गाड़ी रुक गई। गाड़ी में बैठे पुलिस अधिकारी को सुखी ने पूरी कहानी सुनाई तो अधिकारी सन्न रह गया । पुलिस महकमे में होने के बावजूद उसमें इंसानियत बची हुई थी । उसने फौरन अंजलि को गोद मे उठाया और सुखी को गाड़ी में बिठा कर तेजी से आगे बढ़ गया। आधे घंटे बाद गाड़ी एक सरकारी अस्पताल के बाहर खड़ी थी । अधिकारी अंजलि को गोद में उठाकर भीतर ले गया । डॉक्टर ने अंजलि को चेक किया और कहा, " बहुत देर हो गई है । बच्ची डिहाइड्रेशन का शिकार होकर मर गई है।"
सुखी का गला भी बुरी तरह सूख गया था। वह बोली, "साहब!अब शायद मैं भी मर जाऊंगी। मुझे भी प्यास लगी है।"
इतना सुनना था कि पुलिस अधिकारी ने अपनी गाड़ी में रखी पानी की बोतल लाकर सुखी को दी । सुखीदेवी ने बोतल को मुँह से लगाया। थोड़ा-सा पानी हलक से नीचे उतरा मगर पानी पीते-पीते ही वह बेहोश हो गई। अचेत होते-होते सुखी देवी के कानों में एक ही वाक्य रह-रहकर गूँज रहा था, "पानी पिला दो नानी! पानी पिला दो!!"
