girish pankaj

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रिया नहीं, सीता

रिया नहीं, सीता

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''सीता ?.... व्हाट? योर नेम इज सीता?..... शिट्। ये भी कोई नाम है। हुँह, इट इज़ बैकवर्ड नेम।''

रितिका ने मुँह बनाते हुए कहा, ''देख सीता, हम लोगों के साथ रहना है, तो ये सीता-गीता टाइप का नाम यहाँ नहीं चलने का, क्या? समझी। अपना नाम बदल। चेंज योर नेम, इमीजिएटली।''

''लेकिन ये तो मार्कशीट में है।'' सीता बोली, ''नाम बदलने के लिए अदालत के चक्कर लगाने होंगे।''

''अरे बाबा, उसकी जरूरत नहीं पड़ेगी। बैंक वगैरह में ये ही नाम चलने दे, लेकिन हम लोगों के बीच तू नया नाम खोज ले। देख, तुझे एक अच्छा नाम देती हूँ, इसे रख ले, 'रिया'। एकदम नया है। बोलते साथ ही लगता है किसी मॉडर्न लड़की का नाम सुन रहे हैं।''

रितिका के सुझाव पर सारी सहेलियाँ हँस पड़ी।

सारा बोली, ''ये रितिका सबके पीछे पड़ जाती है। मेरा नाम था सरस्वती, मगर इसे पसंद नहीं आया।बदल दिया। अब मैं सारा हूँ।''

''सरस्वती तो बहुत अच्छा नाम था। देवी का नाम। सीता भी देवी है। फिर क्यों बदलना?''

सीता की बात सुन कर रितिका भड़क उठी, ''देख रे सीता, अगर तूू हम लोगों के साथ रहना चाहती है, तो हमारे उसूलों पर चलना होगा वरना नमस्ते। बनी रहो, सीता-सावित्री-गायत्री। देवी -फेवी यहाँ नहीं चलेगा। आ नहीं तो।''

इतना बोल कर रितिका मोबाइल देखने लगी फिर मुसकराते हुए कहा, ''रोहित का मैसेज है.मॉल में मिलेगा। ही लव मी, टू मच।''

''योर हसबैंड?'' सीता ने पूछ लिया, तो रितिका हँसी, ''हसबैड? माइ फुट । मैं इन लफड़ों में नहीं पड़ती बाबा। हसबैंड बना लो किसी को तो जीवन भर वो हमारी बैंड बजाते रहेगा। मैं नौकरानी नहीं बन सकती। ये मेराब्वॉय फ्रेंड है। कभी-कभी इसके साथ रहने चली जाती हूँ। लिन-इन वाला फंडा। समझी न?''

''तो क्या शादी करके औरत नौकरानी बन जाती है?''

सीता के इस मासूम किस्म के सवाल पर रितिका इस बार और जोर से हँस पड़ी और बोली, ''अब तुझे नारी-मुक्ति का फंडा समझाना ही पड़ेगा। तू अभी-अभी चैनपुर से आई है। तुझे क्या मालूम कि दुनिया कितनी एडवांस होती जा रही है। अब हम नये ज़माने की लड़कियाँ शादी-वादी के लफड़े में नहीं पड़ती। किसी मुस्टंडे के साथ रहती हैं और बिंदास लाइफ जीती हैं। हमारी कामवाली बाई आकर खाना बना देती है। झाड़ू-पोछा कर देती है। जिस दिन वो नहीं आती तो हमारा ब्वॉय फ्रेंड सारा काम कर देता है। हम लोग आराम से उठती हैं। लाइफ इंजॉय करती हैं।''

सीता का आज बिल्कुल नये संसार से परिचय हो रहा था। चैनपुर में कोई कॉलेज था नहीं, तो पिता ने दिल्ली के मैरी कॉलेज में भर्ती करा दिया। सीता के मन में दिल्ली का क्रेज़ भी था। उसका सपना था आइएएस बनना। उसने डैडी से कहा, ''दिल्ली से ग्रेजुएशन करने के बाद वहीं मुखर्जी नगर में किसी अच्छे सेंटर को ज्वाइन करके कोचिंग कर लूँगी''।

डैडी सुमनकुमार ने सोचा बच्ची जब कह रही है तो उसकी ख्वाहिश पूरी कर दिया जाए। जब सुरेश को पढऩे मुंबई भेज सकते हैं तो लड़की को क्यों नहीं। लड़का-लड़की एक समान। ठीक है, कुछ आर्थिक बोझ पड़ेगा लेकिन सहेंगे। कपड़े की दुकान पर थोड़ा और ध्यान देंगे। रेडीमेड गॉरमेंट्स भी रख लेंगे। देखेंगे। कुछ करेंगे, लेकिन बेटी के सपने को पूरा करेंगे। बस, दिल्ली ले आए। कॉलेज में भर्ती करा दिया। निवेदिता गर्ल्स हॉस्टल में एक कमरा भी मिल गया, जहाँ पहले से दो लड़कियाँ रह रही थी, दीपिका और सारा। सीता को जब छोड़ कर डैडी सुमनकुमार जाने लगे तो सीता उनसे लिपट कर रो पड़ी थी। कुछ देर तक सुबकती रही फिर बोली, ''दिल्ली में आए दिन लड़कियों के साथ छेडख़ानी होती है। निर्भया कांड के बारे में सोच कर सिहर जाती हूँ। कैसे रहूँगी मैं? मुझे ले चलो वापस।''

डैडी ने हँसते हुए कहा था, ''पगली, हर किसी के साथ हादसा नहीं होता। तुझे अपनी हिफाजत खुद करनी होगी। सावधान रहना होगा। शहर भी अब बड़े-बड़े जंगल सरीखे हो गए हैं, जहाँ आदमखोर घूमते रहते हैं। कमजोर जानवर उनसे बच कर रहते हैं। उसी तरह तुझे भी रहना होगा। चिंता मत करो। यहाँ तेरे साथ और भी लड़कियाँ होंगी। और तेरा नाम तो सीता है। कोई रावण छू नहीं सकेगा। ''

बड़ी मुश्किल से सीता शांत हुई थी। और अब तो छह महीने बाद दिल्ली में रहते-रहते वह दिल्ली वाली हो गई है। बिल्कुल निर्भीक। बेधड़क। लेकिन अचानक आज जब बगल वाले कमरे में रहने वाली रितिका से उसका सामना हुआ तो उसे लगा, अभी वह पूरी तरह से मॉडर्न नहीं हो पाई है। रितिका ने जब कहा कि वह शादी के लफड़े में नहीं पडना चाहती तो सीता पूछ बैठी-

''तो क्या घर वाले शादी के लिए दबाव नहीं डालते?''

''डालते हैं। उनका काम ही यही है। दबाव डालना। औरत को कमजोर करना।'' रितिका तनाव में आ कर बोली, ''हमारी सोसाइटी अभी भी बनी-बनाई लकीर पर चल रही है। वह मॉडर्न होना ही नहीं चाहती। ये क्या कि लड़की की शादी कर दो और गंगा नहाओ। लड़की चूल्हा-चौका करती रहे और अपना शानदार जीवन नष्ट करती रहे। मैं इस चक्कर में नहीं पडऩे वाली। तीन साल तक मैं ग्रेजुएशन करूँ गी, फिर कोचिंग उसके बाद आइएएस की तैयारी और परीक्षा में बैठ कर आइएएस बन कर निकलूँगी। तब तक आज़ाद हूँ। आराम से लड़कों के साथ जीवन बिताती रहूँगी। और क्या?''

''लड़कों के साथ? रोहित तो है न तेरा फ्रेंड?''

रितिका हँस कर बोली- ''अरे, जब तक हैं, तब तक है। ये लड़के साले कलाकार होते हैं। इनकी तो...यहाँ मुझसे चक्कर चला रहे हैं, वहाँ किसी और को पटाए हुए हैं। इनकी नस-नस को मैं जानती हूँ। इसलिए मेरे पास रोहित है, तो राहुल भी है।''

सभी सहेलियाँ हँस पड़ी तो रितिका बोली, ''देख सीता,नहीं-नहीं, रिया। अब तू भी सती-सावित्री वाला फंड़ा भूल जा और जीवन का मस्त-मस्त करने के लिए कोई मुर्गा खोज ले। हाँ, मुर्गा। सावधानी के साथ रहना। प्रिगनेंट मत हो जाना। दवाई मैं बता दूँगा। वरना बाकी तो कई साधन है, जिन्हें तू जानती ही है। चल, पिक्चर चलते हैं। मॉल में कोई फॉरेन मूवी लगी है। रोहित से मैंने कह दिया था, चार टिकट बुक कर देना। कर दिया होगा। हुकुम का गुलाम है अपना। मज़ा तो तब है जब मर्द हुकुम का गुलाम हो, औरत नहीं। समझी?''

सीता और आसपास के कमरे में रहने वाली सारी सहेलियाँ जोर से हँसी। फिर रितिका ने कहा, ''देख रिया, अब तेरा नाम बदल गया है तो हुलिया भी बदल। बहुत हो गया। सलवार-कुरता और उस पर चुन्नी? क्यों? हमारा जिस्म है। अगर कुछ दिख भी रहा है तो किसी को क्या दिक्कत ? बंद कर ले अपनी आँखें? हम क्यों ढँकें? मर्द तो अपनी शर्ट पर चुन्नी नहीं डालता , हम क्यों डालें?''

''इसलिए कि हम औरत हैं। हमारी छाती आदमी की छाती नहीं है। मर्दों की पहली नजऱ सबसे पहले यहीं पड़ती है इसलिए इसे ढँकने के लिए दुपट्टा बना।''

'':छी, ये दुपट्टा नहीं, बंधन है। औरत को कमजोर करने की साजिश है। हम क्या अपनी मर्जी से कपड़े भी नहीं पहन सकते? मर्दों की आदत होती है घूरने की । वो दुपट्टे वाली को भी घूरेगा और टॉप वाली को भी, तो क्यों न टॉप ही पहनें। अब तू हमारे साथ चलेगी तो टॉप में चलना होगा। सलवार -कुरते वाली के साथ जा कर मैं अपनी नाक नहीं कटाने वाली।''

''लेकिन मेरा पास तो ऐसे कपड़े भी नहीं।''

''अरे, सारा के पास तो हैं। दोनों की बॉडी एक जैसी है। सारा का टॉप और जींस तुझे आ जाएगा।''

और सचमुच सारा के के कपड़े सीता को फिट आए। सीता पहले से ज्यादा स्मार्ट लगने लगी। उसे देश कर रितिका बोली, ''हाय मर जावाँ , लगता है तेरे साथ ही शादी कर लूँ। चल देखते हैं। रोहित से नहीं जमी तो तेरे साथ ही रहने लगूँगी। तू खाना-वाना तो बना लेती हैं?''

''अरे, मैं गाँव की हूँ। सब कुछ बना लेती हूँ।''

''तब तो ठीक है, तू मेरी दुल्हनियाँ बन सकती है।''

रितिका जोर से हँसी । सारा, रोशनी, वन्या, नेहा सब हँसने लगी। सीता भी मुस्करा पड़ी। लेकिन वह मन-ही-मन घबरा रही थी कि कहीं ये रितिका सचमुच उसके पीछे न पड़ जाए। बाप रे! अभी वह इतनी मॉडर्न नहीं हो पाई है।

मॉल में रोहित बाहर ही मिल गया। रितिका उसके गले से लग गई। दोनों ने एक-दूसरे को चूम लिया। फिर रितिका ने सबका परिचय कराया,

''ये है सारा, ये है रिया और ये सोनिया। सब तुमको चूना लगाने आई हैं।''

''ओह नो पॉब्लम । मालदार बाप का मालदार बेटा हूँ। ऐसे झटके झेलते रहता हूँ। चलो। रिया को पहली बार देखा। आप दिल्ली से ही है?''

''नहीं, मैं छत्तीसगढ़ की हूँ।''

''ओह, छत्तीसगढ़? फास्ट ग्रोविंग स्टेट है। आइ नो एबाउट छत्तीसगढ़। छत्तीसगढिय़ा सबले बढिय़ा। राइट?''

''बिल्कुल।'' रिया उर्फ सीता हँस पड़ी।

सभी सखियों ने सिनेमा में सिनेमा भी देखा। रितिका और रोहित अगल-बगल बैठे रहे और पूरे समय चुहुलबाज़ी करते रहे। हालत यह हुई कि पीछे बैठे एक दर्शक को कहना पड़ा, ''ऐ मिस्टिर, घर जा कर करो ये सब। यहाँ नहीं।'' तब जाकर दोनों शांत हुए।

सीता मन-ही-मन सोचती रही, दोनों एक-दूसरे से कितना प्यार करते हैं।

विदा होने से पहले रोहित ने रिया से कहा, ''इफ यू डोंट माइंड, अपना मोबाइल नंबर दे दें। मुझे छत्तीसगढ़ के बारे में कुछ पूछना है। एक खास प्रोजेक्ट में काम कर रहा हूँ।''

रिया ने नंबर दे दिया।

दूसरे दिन सीता के वाट्सेप पर रोहित का संदेश था, ''हाय, रिया, आइ एम रोहित। कल तुमसे मिल कर अच्छा लगा। तुम्हें कैसा लगा?''

सीता ने लिखा- ''मुझे भी अच्छा लगा।''

फिर रोहित ने दिल वाली 'इमोजी' भेजी। सीता को यह ठीक नहीं लगा। उसने फौरन रिएक्ट किया- ''इट इज़ नॉट फेयर। विहेब प्रॉपरली।''

''ओह सॉरी, गलती से सेंड हो गया है। फूल भेजने वाला था, दिल भेज दिया। बुरा लगा तो माफी दे दो।''

सीता ने कहा, ''कोई बात नहीं, इन फ्यूचर ध्यान रखना।''

कुछ दिन बीत गए। एक दिन रोहित का मोबाइल आ गया।

''कैसी हैं रियाजी?''

''ठीक हूँ।''

''आज क्या कार्यक्रम है? समय है तो शाम को मिलें? साथ-साछ चाय पीएँगे।''

''ठीक है, रितिका के साथ आती हूँ।''

''क्यों, अकेले आने में डर लगता है?''

''नहीं, ऐसी बात नहीं है।''

''तो फिर अकेले आइए। छत्तीसगढ़ के बारे में कुछ बात करनी है। होगी तो ठीक से बात नहीं हो पाएगी। ''

''अच्छा, देखती हूँ।''

शाम को रिया पश्चिम विहार पहुँच गई। मेट्रो से उतरते ही रोहित सामने आ गया। फिर दोनों पास के रेस्टोरेंट में कोने की कुरसी तलाश कर बैठ गए। रिया मन-ही-मन घबरा रही थी। सोच रही थी कि ये ठीक नहीं हुआ। उसे अकेले नहीं आना था। रितिका को बता देना था। यह धोखा है उसके साथ। कल को अगर उसे पता चल गया तो क्या सोचेगी मेरे बारे में? इसी उधेड़बुन में वह लगी रही , तभी रोहित की आवाज़ ने ध्यान भंग किया,

''हे, क्या सोच रही हो?''

''कुछ नहीं।''

''क्या लोगी? कॉफी या चाय? कुछ स्नेक्स ले लेते हैं पहले।''

''जैसी तुम्हारी मर्जी?''

रोहित ने पिज्ज़ा का ऑर्डर दे दिया।

''और सुनाओ, कैसी कट रही है? पढ़ाई ठीक चल रही है? कोई दिक्कत हो तो बताया, मैरी कॉलेज का प्रेसिडेंट कुणाल मेरा मित्र है।''

''नहीं, कोई दिक्कत नहीं? तुम छत्तीसगढ़ के बारे में कुछ पूछना चाहते थे न?''

''अरे हाँ, लेकिन छोड़ो, बाद में बात कर लेंगे। तुम फिर मिलोगी न? ये अपनी आखिरी मुलाकात तो है नहीं ?''

इतना बोल कर रोहित हँसा। रिया भी मुसकरा पड़ी।कुछ देर दोनों चुप रहे। पिज़्ज़ा खाते रहे। फिर रोहित बोला- ''रितिका मेरी बेस्ट फ्रेंड है, लेकिन सच बोलो तो अब उससे ऊब होने लगी है। वह मेरा इस्तेमाल करती है। किसी और से उसका कोई लफड़ा चल रहा है। मुझसे भी प्यार करती है, और ललित से भी । ये क्या बात हुई? इसलिए अब धीरे-धीरे उससे दूर हो रहा हूँ।''

इतना बोल कर रोहित चुप हो गया। नीचे देखने लगा। रिया कुछ बोल नहीं पाई। उसे लगा रोहित रो रहा है। उसे सांत्वना देने के लिए रिया ने उसके हाथ को पकड कर कहा, ''ऐसा नहीं सोचते रोहित। वो तुम्हे प्यार करती है।''

''वो मैं जानता हूँ लेकिन दिक्कत यही है कि वो मुझे भी प्यार करती है और ललित को भी। दो-दो नाव में पैर रखना ठीक नहीं। और यह बात उसने मुझसे छिपाई इसलिए अब मैं तुमसे साफ-साफ कहना चाहता हूँ आइ हेट रितिका एंड आइ लव यू, रिया।''

अब राहित ने भी रिया का हाथ पकड़ लिया। ''प्लीज़ रिया, मना मत करना । आइ लव यू। उस दिन जब पहली बार तुमको देखा तभी तुमको दिल दे चुका था। तुम जींस और टॉप में थी लेकिन तुम्हारी आँखों में शालीनता थी इसलिए तुम मुझे अच्छी लगी। अपने मन की बात बताने के लिए तुम्हें यहाँ बुलाया। अब अगर तुमको मैं पसंद हूँ तो ठीक, वरना कोई बात नहीं।''रिया सोच में पड़ गई। कुछ बोल नहीं पाई।

''तुम्हारी खोमोशी को क्या तुम्हारा इज़हार मान लूँ?''रिया कुछ नहीं बोली, बस, मुसकरा दी।

रोहित समझ गया कि तीर निशाने में लगा है। वह बोला- ''समझ गया, मैं पास हूँ। है न ?''रिया ने सिर हिला दिया।

उसके बाद से सिलसिला जो शुरु हुआ तो दौडऩे लगा। वाट्सएप पे रोज बातें होने लगीं। मैरी कॉलेज के बाहर अकसर रोहित पहुँच जाता फिर अपनी कार में बिठाकर इधर-उधर घूमता रहता। रितिका ने एक दिन फेसबुक खोल कर बैठी थी, तो उसने देखा रोहित 'नियरबाइ गुडग़ाँव' दिखा रहा है. उसके नीचे रिया के बारे में भी यही आ रहा था, 'नियरबाई गुडग़ांव'।

रितिका ने रोहित को फोन लगाया तो उसका मोबाइल इंगेज बता रहा था। फिर रिया को लगाया तो उसने उठा लिया?

''हाँ, बोलो रितिका, क्या हाल है?''

''ठीक हूँ। तू कैसी है? कहाँ है?''

''मैं...मैं फरीदाबाद में हूँ। अपनी कज़िन से मिलने आई हूँ।''

'लेकिन मेरा मोबाइल तो तुम को गुडग़ांव में दिखा रहा है?''

इतना सुनना था कि रिया घबरा गई?

''अरे, ये ...ये कैसे हो सकता है। हाँ, कुछ घंटे पहले मैं गुडग़ाँवा जरूर कगई थी, लेकिन अ...अब फरीदाबाद में हूँ।''

''फरीदाबाद में कहाँ हो?''

रिया इसका जवाब नहीं दे पाई?

''ओह, इसके मतलब है तुम गुडग़ाँव में ही हो और रोहित भी तुम्हारे साथ है? एम आइ राइट?''

''न..... नहीं..नहीं, वो यहाँ नहीं है? मैं तो अपनी सहेली शुचिता के साथ हूँ।''

''अच्छा, तो बात कराना उससे?''

रिया बुरी फँसी । कैसे बात कराए। '''वो..वो टायलेट गई हैं। अभी कराती हूँ। ... मोबाइल की बैटरी लो हा रही है। देखती हूँ। हैलो..हैलो... '' करने के बाद रिया ने फोन स्विचऑफ कर दिया। वह पसीना-पसीना हो गई। रोहित भी समझ गया था कि रितिका का फोन है।

''क्यों, किसका फोन था। परेशान लग रही हो?''

''रितिका का फोन था, उसे कैसे पता चला कि हम एक साथ हैं?''

''ओह, आजकल मोबाइल से पता चल जाता है कि कौन व्यक्ति कहाँ है? फेसबुक में तुमने देखा होगा 'नियरबाइ' आता है। अपने परिचितों की लोकेशन बताता रहता है। कोई बात नहीं। वो पूछेगी तो कह देना आइ लव रोहित। अब मैं भी उससे कोई संबंध नहीं रखने वाला । आई हेट रितिका। शी इज़ चीटर।''

और वही हुआ। दूसरे दिन हॉस्टल में रितिका और रिया में जम कर हॉट-टॉक हुई और दूसरे दिन ही रिया ने हॉस्टल छोड़ दिया और रोहित के घर चली गई। रोहित पश्चिम विहार के शुभम अपार्टमेंट में रहता था। पिता जी उसके लिए एक फ्लैट खरीद लिया था। रोहित राजस्थान से आया था। पिता का पत्थरों को कारोबार था। रोहित की रुचि देखकर दिल्ली भेज दिया था पढऩे। रोहित ने वादा किया था कि वह आइएएस बनेगा। लेकिन पाँच साल में वह ग्रेजुएट भी न हो सका था। कभी सुनीता, कभी अनुष्का, कभी रितिका तो कभी प्रीता। इनके चक्कर में हर बार फेल होता रहा। रितिक के बाद अब वह रिया को कब्जे में ले चुका था

रितिका रोहित को याद कर-कर के गंदी-गंदी गालियाँ देती रही लेकिन वो रोने-पीटने वाली लड़की नहीं थी। अब वो राहुल के साथ रहने लगी। हॉस्टल उसने भी छोड़ दिया। राहुल की अच्छी-खासी नौकरी थी। सॉफ्टवेयर इंजीनियर । राहुल को पता भी नहीं था कि रितिका किसी रोहित के साथ रहती थी। राहुल दो महीने पहले तक रीता के साथ रहता था। रीता उसी के साथ रह रही थी साल भर से। लेकिन एक दिन वह बोली, ''राहुल मुझे माफ कर देना। यहाँ अब मेरा दम घुटता है। बहुत हो गया। अब मैं संदीप के साथ रहने जा रही हूँ।''

'क्यों ?'' पूछने पर रीता ने कहा, ''ये मत पूछो। बस, एक साल बहुत होते हैं। मैं लम्बे समय तक एक ही मर्द के साथ नहीं रह सकती। पता नहीं क्यों? मैं अपने तरीके से जिंदगी एन्ज्वॉय करना चाहती हूँ। तुमसे मुझे कोई शिकायत नहीं, लेकिन संदीप मुझे तुमसे भी ज्यादा प्यार करने वाला लगता है। तुमसे भी अधिक कमाता है। वह फॉरेन टूर कराने वाला है। अगले महीने थाइलैंड ले जाएगा, फिर सिंगापुर।''

राहुल ने मन-ही-मन सोचा, ठीक ही हुआ। रीता चली गई। अब रितिका को लाया जा सकता है। फिर रितिका आ गई। अब रितिका गई, तो रिया है। राहुल भीतर -ही-भीतर हँस रहा था, जब इतनी आसानी से लड़कियाँ मिल जाती हैं तो शादी क्यों करूँ? पिता शादी के लिए कहते तो उसका ज़वाब होता, ''जैसे ही पसंद की कोई लड़की मिलेगी, शादी कर लूँगा''। पिता भी बदले हुए परिवेश को समझते थे। उनकी पत्नी ज़िद करती तो वे समझाते, ''आज के लड़के-लड़कियों पर दबाव डालना मूर्खता है। यह देश पहले जैसा नहीं रहा। पश्चिम की हवा ने इसके संस्कारों का हिला कर रख दिया है। भारत अब इंडिया हो गया है। पहले जैसे संस्कार न लड़कों में रहे, न लड़कियों में। आगे बढऩे की चाह में नई पीढ़ी ने अपनी संस्कृति और मूल्यों का ही पीछे धकेल दिया है. इसमें कुछ गलती तो हम लोगों की भी है.'' राहुल के पिता बड़बड़ाते और चुप हो जाते। एक बार तो उन्होंने गुस्से में कह भी दिया था, ''जब शादी कर लो तो सूचित कर देना। हम धन्य हो जाएँगे।'' तो, पिता की हरी झंडी पा कर राहुल और अधिक आजा़द हो गया था। रितिका को उसके अतीत से भी कोई खास मतलब नहीं था। वह इस मानसिकता की थी कि न उसे सीता बनना है, न सावित्री। वह आज की लड़की है। उसकी अपनी जिंदगी है। उसने कभी 'डेल रॉबर्ट' की पुस्तक पढ़ी थी, 'आइ ए फ्री बर्ड'। जिसमें वान्ना नामक एक लड़की पंछी की तरह उडना चाहती है। वह समाज की सारी मर्यादाओं को ताक पर रख कर अनेक मर्दो के साथ साल-दो साल रहती और जीवन को भरपूर भोग लेने के बाद किसी नए मर्द से रिश्ता बना लेती। उस नोबेल को पढ़ कर रितिका का दिमाग ही घूम गया। उसे लगा, मुझे भी वान्ना की तरह जीवन जीना है। रितिका के माता-पिता भी समझ गए कि लड़की हाथ से निकल गई। वे बेहद दुखी थे और जब कोई रितिका के बारे में कुछ पूछते तो कह देते 'आइएएस' की तैयारी कर रही है। लेकिन कहाँ की पढ़ाई, कैसी तैयारी? सात साल हो गए, वह ग्रेजुएशन पूरा नहीं कर सकी। सात सालों में वह तीन लड़कों के साथ एक-एक साल रही और उन्हें छोड़ती रही। राहुल चौथा लड़का था।

एक दिन रितिका ने गुस्से में भर कर फेसबुक में लिखा, ''एक लड़की सीता बन कर आई मगर अब वह शूर्पनखा हो गई है।''

रिया ने अपने फेसबुक में लिखा, ''पुरानी कहावत कितनी सही है कि सौ-सौ चूहे खा कर बिल्ली हज का चली। लोग अपना चरित्र नहीं देखते, और दूसरे पर उँगली उठाते हैं।''

आए दिन रिया और रितिका संकेतों में एक-दूसरे को कोसते रहते। फेसबुक भड़ास निकालने का नया साधन बन चुका था। रिया और रोहित दोनों मस्ती के साथ रह रहे थे। लेकिन रोहित के जीवन में इस बीच एक और लड़की प्रवेश कर चुकी थी, वो थी रोशनी। जब रिया कॉलेज चली जाती तो रोहित रोशनी को घर बुला लेता। एक दिन रिया कॉलेज पहुँची तो कुछ देर बाद सूचना दी गई कि भृत्य के निधन के कारण छुट्टी दी जा रही है। रिया खुश हो गई कि आज दिन भर रोहित के साथ प्यार करेगी। उसने 'ओला' बुलाया और सीधे घर पहुँच गई। फ्लैट बंद था। रिया ने कॉल बेल बजाई और इंतजार करती रही। बहुत देर तक दरवाजा नहीं खुला। वह परेशान । दरवाजा भीतर से बंद है। लगता है रोहित घोड़ा बेच कर सो रहा है। हद है. रिया बार-बार उसे फोन भी करे, मगर हर बार स्विच्ड ऑफ। थक-हार कर वह फ्लैट के बाहर ही बैठ गई। थोड़ी देर बाद दरवाजा खुला और रोहित ने सिर बाहर निकाल कर झांका। सामने रिया को बैठे देखा तो घबरा गया?

''अरे, तुम?''

''हाँ मैं. आधे घंटे से यही बैठी हूँ। सो रहे थे क्या?''

''हाँ-हाँ, नींद लग गई थी। आ...आओ।''

रोहित घबराया हुआ था। शंकित नज़रों ऱों से इधर -उधर देख रहा था।

''ऐ रोहित, इधर-उधर क्या देख रहे हो? कोई और है क्या घर में?''

''न..नहीं तो।''

रिया को शक हो गया कि मामला गड़बड़ है। वह उठी और हर कमरे को झाँक-झाँक कर देखने लगी, लेकिन कोई नहीं मिला, तो निश्चिन्त हो गई। अचानक उसे याद आया बाथरूम तो देखा नहीं। वह फौरन उधर गई। दरवाजा खोलने लगी तो वह भीतर से बंद था। समझ गई कि भीतर कोई लड़की है। वो जोर से चीखी, ''रोहित! कौन है भीतर?''

''अरे, वो सारा है, तुम्हारी सहेली। किसी काम से आई थी। अचानक तुम आ गई तो बेचारी घबरा गई।''

इतना बोल कर रोहित ने आवाज़ दी, ''सारा, बाहर आ जाओ, अपनी रिया है।''

सारा शमी हुई बाहर निकली और मुँह लटका कर बोली ''सॉरी रिया, मुझे ऐसा नहीं करना था। माँ कसम, मैं रोहित से केवल मिलने आई थी। तू घंटी बजाई तो मैं घबरा गई। मैं जानती हूँ रोहित तेरा है। इस पर मेरा कोई हक नहीं।''

रिया गुस्से में थी। कुछ बोली नहीं। सारा चुपचाप बाहर निकल गई। उसके पीछे-पीछे रोहित भी चला गया। रिया जोर-जोर से रोने लगी। बहुत देर तक रोती रही। उसे एक साल पहले की घटनाएँ याद आने लगी जब उसने रितिका के कहने पर अपना नाम बदल लिया था। सीता से रिया हो गई थी। उसे दिल्ली की हवा ने कितना बदल दिया था। अपने आप को कोसती सीता ने तय कर लिया कि अब मुझे सीता ही रहना है। सलवार-कुरता और दुपट्टे वाली सीता बने रहना है। बाकी सहेलियाँ जो भी समझें । बैकवर्ड कहें, पिछड़ी कहें, गँवार कहें। जो भी कहें, मगर यह चक्कर ठीक नहीं। ये भी क्या जिंदगी है। आज इसके साथ, कल उसके साथ। लड़के भी यही कर रहे, तो लड़कियाँ भी? ये तो कोई बात नहीं हुई । क्या जिंदगी बंजारों की तरह भटकने का नाम है? क्या लम्बे समय तक ऐसा जीवन जीया जा सकता है? शायद नहीं। एक स्थायी जीवन ही सुख-शांति की बुनियाद है।

सीता रोती जाती और विचार-मंथन करते जाती। काश, ये सब पहले सोचा होता तो ये दिन न देखने पड़ते। गनीमत है, अभी बहुत देर नहीं हुई है। देह तो खैर बर्बाद हो गई, लेकिन आत्मा अभी भी पाक-साफ है। ज़िंदा है। वह अभी अपनी जड़ों से पूरी तरह से कटी नहीं है। यहाँ की हवा उसे रितिका नहीं बना सकती, क्योंकि भले-बुरे का उसका विवेक अभी मरा नहीं है। उसने ठान लिया कि अब वह वापस हॉस्टल जा कर रहेगी और मन लगा कर पढ़ाई करेगी। उसे 'आइएएस' बनना है। उसके माता-पिता का सपना पूरा करने के लिए वह दिल्ली आई है, किसी की रखैल बनने नहीं। 'लिव इन रिलेशनशिप' क्या है, स्त्री किसी-न -किसी की रखैल बन कर ही तो रहती है। ऐसी औरतो के चरित्र पर लोग उँगलियाँ भी उठाते हैं और बदमाश लोग पीछे पड़े रहते हैं. उफ्, किस छिछोरे जीवन में धँस गई थी मैं ?

आधे घंटे बाद रोहित आया और बोला, ''सॉरी रिया, माफ कर देना। मुझे फौरन दरवाजा खोल देना था। तुम्हारी कसम, हमने कुछ नहीं किया। जब तुमने कॉलबेल बजाई, उसी समय सारा भी आई थी। लेकिन बाहर झांक कर उसने तुम्हें देखा, तो घबरा गई।''

"माफ़ करना , मैं रिया नहीं, सीता हूँ. मेरा असली नाम यही है। खैर, मैं सब समझ रही हूँ। तुमको और सारा को भी। सफाई देने की ज़रूरत नहीं। अब तुम सारा के आराम साथ ही रहो। मैं जा रही हूँ।''

इतना बोल कर रिया उठी, अपना सूटकेस निकाला और उसमें अपने कपड़े भरने लगी।



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