पानी : मेरा डर (13)
पानी : मेरा डर (13)
दक्षिण भारत के कुछ चुनिंदा पर्यटन स्थल देखने हम परिवार सहित वर्ष 1998 में गये थे।
मदुरै के बाद हमारा अगला पड़ाव, कन्याकुमारी था। होटल के कमरे में ही मैंने पत्नि और तीनों पुत्रों से कहा, "अब हमारा अगला पर्यटन स्थल, कन्याकुमारी है जो यहाँ से 245 किलोमीटर पर है। कन्याकुमारी समुद्र तट पर बसा है।"
सभी ने सहमति व्यक्त की। हम कन्याकुमारी में (दोपहर से देर रात तक) विवेकानंद मेमोरियल, सरवानी शक्तिपीठ, बीच स्थलों को देखा।बच्चों ने कहा, "पापाजी अब और नहीं। कल देखेंगे।” पत्नि भी होटल चलो कहने लगी।
मैंने सभी से कहा, “हमें प्रातः जल्दी उठकर कन्याकुमारी का सूर्योदय देखना है। जीवन का अद्भुत दृश्य और वह भी समुद्र के ऊपर पड़ती सूर्य की सुनहरी किरणें।”
प्रातः 5.30 बजे उठकर, हम सभी समुद्र के तट पर पहुँच गये, जो कि होटल के बाजू में ही था।
हमारा बड़ा लड़का युवा था और दोनों लड़के छोटे थे। सूर्योदय और समुद्र का दृश्य मनमोहक, अद्भुत और उर्जा से भर देने वाला था। बच्चे तट के ऊपर खड़े हुए एक दूसरे पर पानी डालते हुए मस्ती कर रहे थे।
बच्चों से कहा गया था कि वे ऊपर ही रहें। बाद में उन्हें नीचे लाया जायेगा।मैंने दृश्य को आत्मसात करते हुए आनंदित हो उठा और मेरा कवि मन गुनगुनाने लगा।
पत्नि ने हंसते हुए मुझसे कहा, "कविराय मस्ती में खो मत जाना। मैं तुम्हें जानती हूँ। और मेरा हाथ पकडे रखना।”
एक लहर आसमां तक ऊंची उठी और हमें पूरी तरह भीगो गयी। हड़बड़ी में पत्नि के हाथ से मेरा हाथ छूट गया और मैं पानी की प्रचंड धारा में बहने लगा, मुझे तैरना नहीं आता था।
हाथ छूटते ही पत्नि का ध्यान मेरी तरफ गया और पत्नि ने बिना सोचे हुए ही, तुरंत मेरे ऊपर छलांग लगा दी और मेरे ऊपर कूदकर, पूरी ताकत से मुझे पकड़कर, पानी के बाहर निकालने लगी।
इस तरह पत्नि की बुद्धिमत्ता ने मेरे जीवन को बचा लिया। मेरे साथ ही सभी घबरा गये थे और भयवश कांपने लगे थे। मैंने साक्षात यमराज के दर्शन जो कर लिए थे।
पत्नि और बच्चों ने मिलकर मुझे संभाला और मेरे शरीर को पम्प कर पानी बाहर निकालने लगे। माहौल बदलने पत्नि ने कहा, "शुक्र मनाओ डाक्टर साहब हम अपने समय में स्पोर्टस परसन रहे है, वर्ना तो तुम अपने धाम के लिए निकल ही गये थे।”
आज भी पानी का भंडार देखकर मेरी रूह कांप जाती है। पानी ने तो डरा दिया था मुझे।
