पागल कौन?
पागल कौन?
अनिल एक विद्यार्थी था, जिसके होस्टल के कमरे के पास ही एक जलेबी की दुकान थी। जहाँ वो और उसके दोस्त रोज़ शाम को जाया करते थे। आज भी अनिल और उसके कुछ दोस्त रोज़ की तरह अपनी मनपसंद जलेबी की दुकान पर जा रहे थे। वैसे तो हर रोज़ वे उस पगली भिखारन की ओर कोई ध्यान नहीं देते थे लेकिन आज बात कुछ और थी। रास्ते में चलते हुए उन्हें कहीं से कराहने की आवाज़ आ रही थी। अनिल और उसके दोस्तों ने जा कर देखा तो पगली भिखारन प्रसव पीड़ा में अर्धमूर्छित अवस्था में थी।
दोस्तों ने आपस में कहा, "अरे ये तो वही भिखारन है जो रोज़ यहाँ पड़ी रहती है। ये गर्भ से कब और कैसे हो गयी?"
अनिल और दोस्तों को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें। सारे लड़के दिल के अच्छे थे और चाहते थे कि भिखारन का कष्ट किसी तरह कम हो जाये। उन्होंने राह चलती कुछ महिलाओं से रुक कर भिखारन की सहायता करने का अनुरोध किया लेकिन किसी न सुना। फिर फोन लगा कर अपने साथ पढ़ रही छात्राओं को हालात की गंभीरता समझते हुए बुलाने की कोशिश की, जिन्होंने हाँ तो कह दिया पर मौके पर उपस्थित नहीं हुईं। अनिल ने लोकल स्वास्थ्य केंद्र का नम्बर घुमाया लेकिन किसी ने फोन का उत्तर नहीं दिया। आखिर में जब दोस्तों से रहा नहीं गया तो सब ने हिम्मत बांध कर भिखारन और उसके बच्चे को खुद ही बचाने का निर्णय लिया।
कुछ देर की मशक्क़त के बाद बच्चे की रोने की आवाज़ आयी। बच्चा सुरक्षित था और माँ की सांस तो चल रही थी पर मूर्छित थी। उस नवजात को उठाये वह और उसके दोस्त सोंच में पड़ गए कि आखिर इंसानियत इतनी गन्दी कैसे हो गयी है? पढ़ लिख कर हम क्या सीखे हैं? एक नाले का गंदा पानी भी नाले की गंदगी को बहा कर ले जाता है पर इंसानो की गंदगी जहाँ भी जाएगी उस जगह को दूषित ही कर देगी। नवजात को लिए वो खड़ा था और लोग उसके पास से चले ही जा रहे थे।
दोस्तों में से एक ने कहा,"इसे गर्भवती बनाने वाला ज़रूर ही कोई नीच इंसान होगा, इस बेचारी को तो पता भी नहीं कि ये माँ बन चुकी है। आखिर ये भी क्या करे ये तो पागल है न"
तभी अनिल ने जोर से कहा, "पागल ये नहीं, पागल हम दुनिया वाले हैं"
तभी पगली उठी और सिर के बालों को मुँह में चबाते, आंसू टपकाते और हँसते हुए भीड़ में चली गयी। शिशु रोने लगा, लोगों के भीड़ और मोटर वाहनों के आवाज़ के बीच नवजात के रोने की आवाज़ खोती सी चली गई।