हमने क्या किया

हमने क्या किया

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हम मानव क्यों नहीं बन सकते। कब तक हम एक पशु की खाल में मानव होने का ढोंग करेंगे। विधाता ने हमें मानव बनाया था और हम एक नृशंश पशु से भी अधिक कठोर बन गए हैं और आने वाली पीढ़ी को भी यही बनने की शिक्षा दे है हैं। हमें बस आज़ादी चाहिए चाहे वह किसी भी चीज़ की क्यों न हो जैसे-अपने हिसाब से कपड़े पहनने की,जो जी चाहे वो करने की,जो मुँह में आये वो बक देने की,अपने से बड़े-बूढो की अवज्ञा करने की उन्हें पुरातन और खुद को नवीनतम दर्शाने की,समाज के सहारे समाज से ऊपर उठ कर समाज को नीचा दिखलाने की आदि-आदि।

मानव को जो क्रमिक विकास ने बुद्धि दी है उसका प्रयोग हमारे पूर्वजों ने खुद को जंगली जानवरों से भिन्न करने के लिए किया था,खुद को नियम और कानूनों में बाँधा था जैसे सुबह की पहली किरण से पहले उठना, समय और भोजन करना,आपस मे मेलजोल करना,शादी-विवाह में सोच समझकर आगे बढ़ना,बुरे लोगों से खुद को और बच्चों को दूर रखना,गलत और बुरी सोंच को मन न पलने देना इत्यादि। लेकिन आजकल हम वापिस एक पशु की भांति व्यवहार कर रहे हैं। एक पशु जो किसी भी बंधन से जुड़ा नहीं रहता अगर वो जुड़ा रहे तो उसकी पशुता कम हो जाती है। वह जो मर्जी करता है,जहाँ मन वहाँ सोता है,जब मन किया उस समय आपस में लड़ाइयाँ करता है। ज्यादातर पशुओं का यही हाल है। एक जंगली पशु सिर्फ मौसम के बंधन को छोड़ किसी और बन्धन से जुड़ा नहीं रहता।

गाय और कुत्तों की बात अलग है क्योंकि वे हमारे बीच बहुत दिनों से हैं और देखा जाए तो कुत्ते प्रकृति में प्राकृतिक रूप से पाए भी नहीं जाते क्योंकि उन्हें मानव ने अपने इस्तेमाल के लिए हजारों हजार साल पहले भेड़िये या सियार के हाइब्रिड के रूप में बनाया था,इसलिए उनकी पशुता बाकी के जानवरों से कम है और मानवीय गुण जैसे प्यार-दुलार,लगाव,बुद्धिमत्ता आदि ज्यादा है।

लेकिन आज के मानव हज़ारों वर्ष पहले के प्रथम कुत्ते से भी अधिक पशुता वाला बन चुका है। कोई भी शिकारी जानवर बिना मतलब के शिकार नहीं करता उसे जितनी भूख लगती है उतना ही खाता है और इंसान ट्रॉफी हंटिंग के लिए शिकार करते हैं। आदमियों में मानवीय गुण धीरे-धीरे विलुप्त होते जा रहे हैं। न कोई आजकल एक दूसरे की मदद करना पसन्द करता है और न हीं मिलना जुलना। आजकल मानव सिर्फ पैसे कमाने के लिए जन्म लेते हैं, कुछ क्रिएटिव करना जो उनकी सहज प्रवृत्ती में जन्मजात था वो खत्म ही हो चुका है। आजकल 12-13 साल के बच्चे माँ-बाप बन रहे हैं, किशोरावस्था से पहले वे एडल्ट होने के सभी गुर सीख ले रहे हैं जब कि उन्हें पहले बच्चा/किशोर कैसे बना जाए यह सीखना चाहिए और इनके जिम्मेदार कोई और नहीं उनके बड़े ही हैं।

उनके बड़े यानी हम लोगों ने उन्हें ऐसा वातावरण दिया है जिसमे उनका बचपन रहा ही नहीं है,टेलिविज़न पर जो अश्लील गाने के साथ नँगा नाच होता है वह उनका किशोर दिमाग समझ नहीं पाता और उसे ही सच्चाई मां बैठता है। मुझे याद है कि बचपन के दिनों में जब भी कोई गलत लफ़्जों वाला या शॉर्ट ड्रेस वाला गाना टेलेविज़न पर चलता था तो हमारे माता पिता चैनल चेंज कर के न्यूज़ लगा देते थे पर आजकल के माता-पिता शायद ऐसा नहीं कर रहे हैं। बड़े बुजुर्ग बोला करते थे की टेलेविज़न से 8 फ़ीट की दूरी ओर बैठो वरना आंखे खराब हो जाएंगी पर अब तो माता और पिता बच्चे के रोने से अपना पिण्ड छुड़ाने के लिए उसके हाथ में मोबाइल दे देती हैं जिसे वो निहारते रहता है जो कि उसकी कोमल आँखों से महज कुछ इंच ही दूर रहता है 8 फ़ीट तो भूल ही जाइये, जिसके चलते उनकी कोमल आंखों में अभी से डार्क सर्कल्स बनने लगे हैं। ऐसा इसलिए क्योंक अब बड़े बुजुर्ग ओल्डएज होम में भेज दिए जाते हैं या न्यूक्लीयर फ़ैमिली में सिर्फ बच्चे और उनके बिजी माता पिता रहते हैं।

कुछ बात खान-पान की कर लें,मानव इतने हद तक गिर चुके हैं कि वे खाने की चीज़ों में अधिक से अधिक मिलावट कर रहे हैं। सब्जियों में ऑक्सीटोसिन के इंजेक्शन और नकली दूध बेच रहे हैं। आजकल किशोर- किशोरियों को रेप्रोडक्टिव समस्याएं हो रहीं हैं वो इन्हीं की देन है । मांसाहार भी हमारी समस्या बढ़ा रहा है। मुर्गे और मुर्गियों के डिंबों में स्टेरॉयड और एंटीबायोटिक की अत्यधिक मात्रा रहती है जिसके चलते इन्हें खाने वाले बच्चे और उनके माता-पिता मोटापे और कमजोर हड्डियों वाली बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। ऑक्सीटोसिन जो कि सब्जियों में सुई के रूप में दिया जाता है उस से गर्भपात होने की समस्या हो सकती है।

आये दिन हमलोग अखबार में ivf के बारे में पढ़ते ही रहते हैं। मानव शरीर के अंदर बाहरी दुनिया से हवा,पानी और खाने के अलावा कुछ और अंदर नहीं जाता और हमने इन तीनो को दूषित और अब तो जहरीला बना दिया है वो भी ऐरफ पैसे के लालच में, क्या जीवन बस पैसे कमाने के लिए है ?

जिस तरह एक जानवर को पता नहीं होता की अगले पल क्या होने वाला है उसी तरह आज हमें पता नहीं होता कि आगे क्या होने वाला है,क्योंकि हम बस पैसे कमाने में व्यस्त है,मानव आने वाले भविष्य को समझ सकने वाला एकमात्र प्राणी है पर हम सिर्फ आज में जीने वाले एक पशु बन कर रह गए हैं और दूसरों को प्रोत्साहित भी करते हैं कि प्रेजेंट में जियो,कुछ साल पहले दूरदर्शिता को एक गुण माना जाता था पर अब नहीं। आजकल लोग वाचाल/बातूनी बन गए हैं, वाचाल/बातूनी होना आजकल एक टैलेंट पर कुछ ही दिनों पहले एक गाली माना जाता था।

हम जिस समाज के टैक्स पर पलते- बढ़ते हैं उसी से पूछते हैं कि समाज ने हमारे लिए किया क्या है। आखिर हमने यह किया क्या,हमने आसमान से साफ हवा खत्म कर दी,धरती से स्वच्छ पानी खत्म कर दी, भोजन को हमने दूषित कर दिया, अपने बच्चो से उनकी मासूमियत छीन कर उन्हें समय से बहुत पहले मानसिक और शारीरिक रूप से एडल्ट बना दिया,बड़े-बुज़ुर्गों को अकेला छोड़ दिया और खुद के वैवाहिक सम्बंध को भी पाक न रख सके।

हमने आखिर किया क्या?क्या इसी को खुली सोंच वाला होना कहते हैं? क्या इसी को किसी भी तरह का एम्पावरमेंट(वुमन/सोशल/इकनोमिक/पोलिटिकल आदि) कहते हैं? क्या यही एक विकसित सोंच है?क्या यही आज़ादी है? क्या मानव जीवन सिर्फ नाम और पैसा है ?क्या मानव होना दूसरे को नीचा दिखाना है ? क्या मानव सिर्फ पृथ्वी का और एक दूसरे का दोहन करने के लिए जन्मे हैं ? इन सवालों का जवाब कब और कौन देगा और क्या दे भी पायेगा ?


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