स्थिति डरावनी है
स्थिति डरावनी है
यह धरती सिर्फ इंसानों की नहीं है। आधुनिक इंसान को धरती पर आए हुए सिर्फ 10 हजार साल ही हुए हैं। हमारे विकास से पहले यह पृथ्वी यहाँ पाए जाने वाले पशुओं की थी और वे एक दूसरे के फलने फूलने को मानवों की तरह सीमित करने की चेष्टा नहीं करते थे और न ही आज कर रहे हैं। उदाहरण के लिए जब एक पेड़ की टहनी बढ़ कर हमारे घर की दीवार के ऊपर से अंदर आ जाती है तो हम उसे यह बोल कर कटवा देते हैं कि अरे मेरा आंगन को गंदा कर देगी। लेकिन इंसान तो न जाने कब से दूसरे जीवों और प्राणियों के आंगन को हड़प रहा है। आज स्थिति ऐसी आ गयी है कि जंगलों के कटाव से हवा में ऑक्सीजन की मात्रा कम होने लगी है। हवा में कार्बन डाइऑक्साइड इतनी बढ़ गयी है कि समंदर और नदियों का पानी एसिड में बदल जा रहा है। दुनिया मे पायी जाने वाली 75-80 % ऑक्सीजन गैस समंदर में रहने वाले प्लवक बनाते हैं जो कि समंदर के पानी का एसिड में बदलने से धीरे- धीरे मर रहे हैं। इधर हर साल लाखों वर्ग मीटर वन भी काटे जा रहे हैं। कोई भी जीव बिना ऑक्सीजन के जीवित नहीं रह सकता। एक ऐसा वक़्त भी आएगा जो कि काफी निकट है और आज से सिर्फ 30 से 40 वर्ष दूर ही खड़ा है, जिस दिन न तो प्लवक होंगे और न ही वन बचेंगे साथ ही हवा में ऑक्सिजन भी नहीं बचेगी। उस दिन क्या होगा। सारी सृष्टि को मरने में 5 मिनट भी नहीं लगेंगे। इंसान का दिमाग ऑक्सीजन के बिना 2-5 मिनट में मृत हो जाता है। यह हमारे लिए डरने की ...बहुत ज्यादा डरने की स्थिति है। मीडिया ये खबरें नहीं दिखायेगी और कानून के ठेकेदार इन चीजों पर कभी बहस नहीं करेंगे क्योंकि उन्हें अपना भविष्य छोड़ कर सिर्फ नोट ही दिखता है। ये भी जान लें कि इस डर का इलाज सिर्फ इंसानों के पास ही है।