नया जीवन
नया जीवन
दो दिन हो गये थे शादी को सारे रीति रिवाज हो गये थे संजना के अपने पति रजत के संग। बस रिश्तेदारों की भीड छट गई थी। आज वो दिन आ गया जिसका हर लडकी सपने संजोऐ रखती है, पहला स्पर्श एक सुखद अहसास का सुहागरात का।
संजना पलंग पर फूलों की सेज नही, जरूरी भी नही था, पर चाहत थी एक। दुलहन बनी मुँह ढका था सोचा रजत चुनर उठाकर ढोडी पकडकर घुंघट उठाकर कहोगे, "संजू आप चाँदनी हो मेरी..." कितने विचार थे संजना के मन में।
रजत आऐ कमरे में बोले, "सो जाओं, थकी हो तुम..." और हमारे बीच दो तकियों की दीवार एक छत, एक कमरा, एक पलंग अजनबियों की तरह।
नींद न आयी आँखों में! अगली सुबह रजत बोले, "मेरा जीवन आपके साथ नही मैं चाहता हूँ... तुम मेरे भाई के साथ रहो समाज-संसार के लिए तुम मेरी बीवी रहोगी, बच्चा भी भाई का होगा !!!!!!"
सन्नाटे की गूँज... संजना अवाक थी, नवविवाहिता और ये कैसा षडयन्त्र। संजना के पापा चाचा और रिश्तेदार आये थे सजना को लेने मायके पहले फेरे में पापा जी मैं नही रह सकती यहाँ धोखेबाज़ी मे फँस गये हम।
रजत ने शादी की मुझसे पर अपने भाई के लिए क्या आप मुझे नया जीवन दोगे या नर्क। आज संजना एक वकील है औरतों का केस लडती है और रजत जेल में।