नसीहत
नसीहत
अवकाश प्राप्ति के बाद शर्मा जी लोक कल्याण का काम करने लगे। काम था लोगो को शिक्षा देना। जहाँ कोई कुछ गलत करता शर्माजी उसे टोक देते और तब तक इसके पीछे पड़े रहते जब तक वह सही नहीं कर लेता।
इस दरम्यान वह लोगों के साथ मिल उन्हें बहुत कुछ करना सिखाते रहते।
आज वह घर से निकले ही थे कि मोहन को देखे अपनी बकरी लेकर जा रहा था और लगातार खांस रहा था। आदतन शर्मा जी उसे टोक दिए। दवा लेने की सलाह दे कर थोड़ा आराम करने कहने लगे। वो बकरी चराना अपनी मजबूरी बता रहा था और शर्मा जी उसे तबीयत का ख़्याल रखने की नसीहत दिए जा रहे थे।
अंत में मोहन अपबे हाथ की छड़ी उनके हाथों में पकड़ा कर कहा - "बकरी यहीं छोड़े जाता हूँ केवल देखते रहिएगा कि किसी के खेत में नहीं जाए मैं दवा लेकर थोड़ी देर में आता हूँ।" कहते हुए वह बिना उनकी तरफ देखे आगे बढ़ गया।
बेचारे शर्मा जी अवाक हो उसे देखते रह गए। बकरियाँ कभी इस खेत में जाति और कभी उस खेत में और शर्माजी डंडा पटकते हुए अपनी दांत पीसते रहे। देखते देखते ही बकरियाँ उनके हाता के सारे फूलों को चर गई और मकई के खेत की तरफ बढ़ी ही थी कि शर्माजी चिल्लाते हुए अपने सर के बाल नोचने लगे।